वाकया 1976 का है। मैं गोरखपुर के राज टाकीज़ में पिक्चर देख रहा था। मेरे साथ में था बबुआ,बैडमिंटन का ताजा ताजा जूनियर नेशनल चैम्पियन, सैय्यद मेंहदी हैदर उर्फ सैय्यद मोदी। पिक्चर की शुरुआत के दस मिनट के भीतर ही वहां प्रशंसकों ने धावा बोल दिया था। मोदी को नजदीक से देखने, हाथ मिलाने और आटोग्राफ लेने का सिलसिला देर तक नहीं रुका, पिक्चर छोड़ कर हमलोग बाहर निकल आए।गोलघर में गुड्डू अर्थात संजय श्रीवास्तव के घर पहुंचे। संजय जूनियर नेशनल डबल्स में मोदी के जोड़ीदार हुआ करते थे। तय हुआ कि अगले दिन प्रैक्टिस के लिए सरदारनगर चलेंगे।वहां शुगर मिल परिसर में ही शानदार बैडमिंटन कोर्ट था।मोदी के बड़े भाई प्यारे जी मिल के मुलाज़िम थे और वहीं मिल कालोनी के एक घर में मोदी का पूरा परिवार रहता था।अगले दिन संजय की वेस्पा स्कूटर से हम दोनों सरदारनगर चले। उसी दिन संजय ने मुझे स्कूटर चलाना सिखाया। पहली बार स्कूटर चला कर मैं फुटहवा इनार से सरदारनगर तक गया। बताते हैं कि सरदार सुरेंद्र सिंह मजीठिया ने ही बबुआ को मोदी नाम दिया था। मोदी की लगन देखकर उन्होंने वहीं सरदारनगर में इनडोर कोर्ट बनवा दिया था। प्यारे भाई के दो कमरे के घर में बाहरी कमरे की दीवाल पर मोदी द्वारा तमाम टूर्नामेंट्स में जीती हुई शील्ड ट्राफी कप और अन्य स्मृति चिन्ह जैसे गांज कर रखे हुए थे।बाद में इसी संग्रह में शामिल हुआ 1980 का नेशनल बैडमिंटन कप,1981 का अर्जुन पुरस्कार,1982 का कॉमनवेल्थ , 1983 और 1984 का आस्ट्रेलियाई ओपन खिताब और लगातार 1987 तक के कुल आठ नेशनल बैडमिंटन चैम्पियन कप।
कॉमनवेल्थ जीतने के बाद एक बैठकी में मोदी अपनी यात्रा के रोमांच बता रहा था।तब तक मैंने कभी हवाई जहाज को नज़दीक से नहीं देखा था। मैनें पूछा,” अंदर से कैसा होता है जहाज ?”मेरी उत्कंठा पर मोदी हंस कर बोला,“एक दिन आपको जहाज जरूर दिखाऊंगा।”गोरखपुर का रेलवे स्टेडियम, जो अब मोदी स्टेडियम है, में इंटर रेलवे बैडमिंटन चल रहा था। गोलघर में बॉबीज़ रेस्टोरेंट के ऊपर वाले होटल में खिलाड़ियों को टिकाया गया था।मोदी के कमरे में हमलोग चकल्लस कर रहे थे।वेटर नाश्ता लाया तो ब्रेड के साथ मक्खन की छोटी सी गोली देख कर मोदी का रिऐक्शन था,” एत्ति सी मक्खन त एक्के शॉट में भुस्स हो जाई, तनि मजे के ले आव ।” ऐसी ही सरलता थी इस बड़े खिलाड़ी में। इसी टूर्नामेंट का किस्सा है। मोदी के ही मैच में लाइन जज बैठे थे संजय।मैं मैच देख रहा था।शायद किसी फौरी जरूरत से मुझे अपनी जगह बिठा कर संजय थोड़ी देर के लिए चले गए।मेरी लाइन पर विपक्षी खिलाड़ी का एक शॉट बहुत बारीक सा आउट गिरा।मैनें क्रिकेटिया टर्म में उंगली उठा कर अपनी समझ से आउट सिग्नल दे दिया जबकि बैडमिंटन के टर्म में यह राइट सिग्नल है।मोदी ने प्वाइंट लूज किया, एक बार घूरकर मुझे देखा, तब मुझे अपनी गलती का एहसास हुआ। मैच तो मोदी ही जीता मगर यह बात आनी ही थी। बहुत दिनों तक क्रिकेट और बैडमिंटन की यह उलटबांसी मित्रों के बीच चकल्लस में बनी रही।
जागरण गोरखपुर का मैं खेल डेस्क इंचार्ज था। 1980 का विजयवाड़ा नेशनल चैम्पियनशिप का सिंगल फाइनल मुकाबला चल रहा था। मोदी के सामने थे दिग्गज प्रकाश पादुकोण, लगातार आठ वर्षों के नेशनल चैम्पियन,अजेय भारतीय बैडमिंटन मिथक । जागरण के टेलीप्रिंटर पर मैच के एक एक प्वाइंट का टीपी टेक आ रहा था। पहला गेम मोदी 15-10 से जीतकर दूसरे गेम में 13-9 से लीड कर रहा था। मोदी की सर्विस पर प्रकाश का रिटर्न साइड लाइन से आऊट गिरा…स्कोर 14 -9…अगली सर्विस पर प्रकाश का रिटर्न बैक गैलरी से बाहर और मोदी ने 15-9 से गेम और मैच प्वाइंट जीत कर इतिहास रच दिया। उस दिन मैनें अपने लुबिडल टू ब्लैक एंड व्हाइट कैमरे से खींची गई मोदी की ओरिजिनल फोटो इस खबर के साथ लगाई थी।पता नहीं क्यों अमिता कुलकर्णी से मोदी की नज़दीकियों को लेकर कोई भी दोस्त खुश नहीं था।सबको यही लगता था कि ये इतना भोला भाला सीधा लड़का, मुम्बई की तेजतर्रार लड़की के साथ कैसे निभाएगा। जब अमिता का मिसकैरेज हुआ, हम और संजय बिछिया की मेडिकल कालोनी वाले घर गए।मोदी उदास तो लगा किन्तु भविष्य के प्रति आश्वस्त भी दिख रहा था। शायद खेल के प्रति उसका समर्पण दुनियादारी के लिए उसमें पूरी समझ नहीं पैदा कर सका था।बैडमिंटन के राष्ट्रीय कोच दीपू घोष के कहने पर मोदी का ट्रांसफर रेलवे ने लखनऊ किया।लखनऊ के केडी सिंह बाबू स्टेडियम के मेन गेट पर 28 जुलाई 1988 की शाम, प्रैक्टिस से लौट रहे बैडमिंटन के राष्ट्रीय चैम्पियन सैय्यद मोदी की गोली मार कर हत्या की खबर मैनें अपने घर में टीवी पर देखी और सुनी। 34 साल पहले, 29 जुलाई को ,राज्य सरकार के विशेष हवाई जहाज से मोदी का शव गोरखपुर एयरपोर्ट पर आया।फोर्स के अधिकारियों ने गेट पर खड़े शोकमग्न हुजूम में से जो कुछ लम्बे नौजवानों को जहाज से ताबूत उतारने के लिए छांटा, उनमें से एक मैं भी था। ज़िन्दगी में मैनें पहली बार हवाई जहाज को तभी अंदर से देखा । बबुआ….ऐसे तो कभी नहीं कहा था मैने अंदर से जहाज दिखाने को। रवि राय जी की फेसबुक वॉल से