जयन्ती पर विशेष। एजेन्सी । शाह नवाज़ ख़ान ऐसे नेता हुए हैं, जिन्होंने चार बार मेरठ से बड़े अंतर से लोकसभा का चुनाव जीता। शाह नवाज़ ख़ान आजाद हिंद फौज के बड़े अफसर भी थे । राजनीति में बड़े नेता के रूप में उभरे। मंत्री भी बने। उन्होंने 1952 में मेरठ में पहला चुनाव जीता तो उनका परिवार और बेटे पाकिस्तान में थे। उन्होंने भारत में रहना मंजूर किया था लेकिन उनके परिवार ने पाकिस्तान से भारत आने के लिए साफ मना कर दिया था। जब वो मेरठ में 1952 में पहला आमचुनाव लड़ रहे थे तो इस शहर ने उन्हें हाथों हाथ लिया, क्योंकि आजाद हिंद फौज के बड़े सेनानी थे और पाकिस्तान की जगह उन्होंने भारत में जिंदगी बिताने का फैसला किया था। उसी समय उनका बेटा पाकिस्तानी सेना में भर्ती हुआ था। उसके बाद दोनों ने तरक्की की। शाहनवाज ने भारतीय राजनीति में सीढियां चढ़ीं तो बेटे ने पाकिस्तानी फौज में तरक्की की। शाहनवाज खान का पूरा परिवार रावलपिंडी में ही रहता था. उनके तीन बेटे और तीन बेटियां थीं. आजादी के समय जब देश का बंटवारा हुआ तो वो हिन्दुस्तान से मोहब्बत के चलते यहां आ गए। उनका परिवार यहां नहीं आया। बस वो अपने एक बेटे के साथ भारत आ गए। जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें अपने मंत्रिमंडल में भी शामिल किया। वो लंबे समय तक केंद्रीय मंत्री रहे। 1956 में भारत सरकार ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मौत के कारणों और परिस्थितियों के खुलासे के लिए कमीशन बनाया था, इसके अध्यक्ष भी जनरल शाहनवाज खान ही थे। कुछ साल बाद जब वो भारत सरकार में मंत्री बने तो बेटा पाकिस्तानी फौज में बड़ा अफसर बन चुका था। शाहनवाज ने 1952 से लेकर 1962 लगातार तीन संसदीय चुनाव मेरठ से जीते। 67 के चुनावों में वो हार गए लेकिन 1971 में वो फिर मेरठ से जीते. वो केंद्र में कई विभागों के मंत्री बने।
वो पाकिस्तान (तब अविभाज्य भारत) के रावलपिंडी जिले के मटोर(24 जनवरी, 1914) गांव में पैदा हुए थे। पढाई भी वही हुई. बाद में वह ब्रिटिश सेना में कैप्टेन बने. लेकिन असल में तब चर्चा में आए जब नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिन्द फौज में शामिल हो गए. वहां नेताजी के करीबी लोगों में रहने के साथ आजाद हिंद फौज में मेजर जनरल थे। जब आजाद हिन्द फौज ने समर्पण किया, तब ब्रिटिश सेना ने उन्हें पकड़कर लाल किले में डाल दिया। प्रसिद्ध लाल किला कोर्ट मार्शल ट्रॉयल हुआ। देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उनके लिए वकालत की। आज़ाद हिन्दुस्तान में लाल किले पर ब्रिटिश हुकूमत का झंडा उतारकर तिरंगा लहराने वाले जनरल शाहनवाज ही थे। आज भी लालकिले में रोज़ शाम छह बजे लाइट एंड साउंड का जो कार्यक्रम होता है, उसमें नेताजी के साथ शाहनवाज की आवाज़ सुनाई पड़ती है।
उनके जीवन में एक अजीब सी बात हुई. जब भारत और पाकिस्तान के बीच 1965 का युद्ध छिड़ा तो शाहनवाज तब लाल बहादुर शास्त्री की सरकार में कृषि मंत्री थे। अचानक ये खबर फैलने लगी कि उनका बेटा पाकिस्तानी सेना की ओर से भारत के खिलाफ लड़ाई में हिस्सा ले रहा है। उनके इस बेटे का नाम महमूद नवाज अली था। वो बाद में पाकिस्तानी सेना में बड़े पद तक भी पहुंचा। ये बात देश में आग की तरह फैली। सनसनी फैलने लगी। विपक्ष ने उनसे इस्तीफा मांग लिया। वह सियासी दलों और संगठनों के निशाने पर आ गए। शाहनवाज इतने दबाव में आ गए कि इस्तीफा देने का मन बना लिया। देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री पर उन्हें मंत्रिमंडल से हटाने का दबाव पड़ने लगा। तब शास्त्री ने न केवल उनका बचाव किया बल्कि इस्तीफा लेने से भी मना कर दिया। लाल बहादुर शास्त्री ने विपक्ष से भी दो टूक कह दिया कि वो कतई इस्तीफा नहीं देंगे। अगर उनका बेटा दुश्मन देश की सेना में बड़ा अफसर है तो इसमें भला उनकी क्या गलती। वैसे आज भी शाहनवाज के परिवार के लोग पाकिस्तान में ऊंचे पदों पर हैं। जब तक महमूद नवाज पाकिस्तानी सेना में रहे, तब तक अपने पिता से कभी नहीं मिल सके, क्योंकि सेना का नियम उन्हें इसकी इजाजत नहीं देता था लेकिन रिटायरमेंट के बाद वो पिता से मिलने जरूर भारत आए। आज भी शाहनवाज के परिवार के कई लोग पाकिस्तानी सेना में बड़े पदों पर हैं। कुछ साल पहले पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के प्रमुख बने लेफ्टिनेंट जनरल जहीर उल इस्लाम उनके सगे भतीजे थे। शाहनवाज के भाई पाकिस्तानी सेना में ब्रिगेडियर पद तक पहुंचे थे। 69 साल की उम्र में उनका नई दिल्ली में 9 दिसम्बर, 1983 में निधन हो गया. अब उनकी याद में बनाया गया जनरल शाहनवाज मेमोरियल फाउंडेशन गरीब बच्चों की पढाई लिखाई में मदद करता है. इस फाउंडेशन का मुख्यालय नई दिल्ली के जामिया मिलिया इलाके में है।