एलोवेरा का सादा जूस खपत से काफी कम पड़ गया है। इसे दवाई के रूप में लोग पीते हैं इसलिए इसका व्यवसाय होने लगा है। घृतकुमारिका जिसे बोलचाल में घी कुंआर या एलोवेरा कहा जाता है, वास्तव में एक प्रकार का पौधा है। इसमें मांसल दांतेदार पत्तियां होती हैं और लाल या पीले रंग के फूल होते हैं। इसे उगने के लिए समशीतोष्ण व सूखा क्षेत्र चाहिए। यह कैक्टस जैसा दिखता है इसलिए गलती से इसे इसी प्रजाति का मान लिया जाता है, लेकिन यह वास्तव में कुमुदनी व प्याज प्रजाति का एक सदस्य है।
भारत में यह सदियों से लोकप्रिय है और इसे कई नामों से जाना जाता है। जैसे, कोरफड़ कुमारी आदि।
इसके अधिकांश पौधों की बनावट मिलती-जुलती होती है। इसे परिपक्वता पाने में लगभग 3-4 साल लग जाते हैं। इस समय इसमें फूल लगने शुरू हो जाते हैं। इसके प्राय: 400 प्रकार हैं लेकिन इनमें से केवल पांच प्रकारों में ही चिकित्सीय या औषधीय गुण अथवा लाभ देने वाले तत्व पाये गये हैं। ये पांच प्रकार हैं एलो बार्बाडेसिस मिलर, एलो पेरी बेकर, एलो फेरॉक्स, एलो एर्बोरेसेन्स व एलो सेपोनेरिया।इनमें भी हम एलो बार्बाडेसिस मिलर ही उपयोग में लाते हैं, जो अकेले खाने योग्य व एलो की उपलब्ध किस्मों में सर्वाधिक पोषण शक्ति से भरपूर है। एलो बार्बाडेसिस मिलर किस्म में एलो पत्तों में ही जेल होती है जिसमें पोषक मूल्य होते हैं। एलो के पत्तों में 75 पोषक तत्व व 200 अन्य घटक हैं। इनमें 20 मिनरल खनिज 18 अमाइनो एसिड व 12 विटामिन शामिल हैं। सदियों से एलोवेरा अलग-अलग समाजों के द्वारा उपयोग में लायी जाती रही है। प्राचीन, ग्रीक, रोमन, बेबीलोनियन, भारतीय व चीनी सभी एलोवेरा को चिकित्सीय पौधे के रूप में उपयोग में लाते रहे हैं। एलोवेरा का ज्ञान कई प्राचीन संस्कृतियों को था। इनमें फारस, मिस्र, ग्रीस, अफ्रीका शामिल हैं। ये केवल कुछ ही नाम हैं हालांकि एलोवेरा के प्रयोग का अभिलेखीय विवरण सबसे पहले प्राचीन मिस्र में मिलता है। यहां तक कि सिकन्दर ने अपनी युद्धरत सेना के लिए एलोवेरा प्राप्त करने के लिए सोकोट्रा द्वीप (यमन में) को जीता। क्यियोपेट्रा के समय से लेकर महात्मा गांधी तक ने एलोवेरा जिसे प्रकृति का खामोश उपचारक भी कहा जाता है, के लाभ उठाये हैं। सालों से एलोवेरा को पॉटेड फिजीशियन, वान्ड आफ हैवन, वंडर प्लांट, स्वर्ग का आशीर्वाद व जीवन का पौधा जैसे नामों से पुकारा गया है।सदियों पूर्व इसे लोग जिस रूप में पहचानते थे और इसकी जो सीमित पहुंच थी, आज एलोवेरा इससे काफी आगे बढ़ गया है। अब लोग इसके उपयोगों व लाभों के प्रति अधिक जागरुक हो गये हैं। वे अब शक्तिशाली एलो की दिन-प्रतिदिन के जीवन में शक्ति से परिचित हो गये हैं। ऐलोवेरा बाहर से लगाने के साथ खाया भी जा सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार इसमें कैल्शियम, फासफोरस, पोटेशियम, लौह, सोडियम, क्लोराइन, मैग्नीज, तांबा तथा यसद (जिंक) जैसे आवश्यक तत्व भरपूर मात्रा में होते हैं। एलो की मॉलिक्यूलर बनावट इतनी सूक्ष्म है कि यह त्वचा की ऊपरी पर्त तक पहुंच जाता है। सबसे ऊपर की पर्त होती है एपिडर्मिस फिर डर्मिस और नीचे की पर्त हाइपोडर्मिंस कहलाती है। एलो में एक तत्व होता है, जिसे लिगनिन कहते हैं। यह इसे सेल्युलर स्तर तक घुसने में मदद करता है। इसमें एक और तत्व होता है जिसे सोपोनिन कहते हैं। यह प्राकृतिक क्लिजिंग की तरह काम करता है। ये दोनों तत्व मिलकर काम करते हुए त्वचा के सेल्युलर स्तर तक पहुंच कर त्वचा की पर्तों की सतह पर जमा टॉक्सिन खत्म कर देते हैं और अंतत: पूरी प्रणाली का टॉक्सिन निकाल देते हैंं। इसके साथ ही ये त्वचा का पोषण से इसकी पुन: पूर्ति करते हैं। कहा जाता है कि एलोवेरा अन्दर से बाहर की ओर काम करती है। इसका मतलब यह अन्दर घुसकर सारे विषैले तत्वों को हटाकर या साफ कर इन्हें प्रणाली से नष्ट कर देता है। आयुर्वेद के अनुसार घृतकुमारिका यकृतजन्य रोगों में रामबाण की तरह आरोग्यकारक होता है। शोधकर्ता अब मानते हैं कि 90 प्रतिशत बीमारियां पाचनतंत्र में शुरू होती हैं। इसलिए अच्छे व अनुकूल स्वास्थ्य के लिए पोषकों का समुचित पाचन, अवचूषण व आत्मसात्करण आवश्यक है।
विषैले तत्व लाइनिंग में बाधा डाल देते हैं। इससे पोषकों व विटामिनों के अवचूषण के प्रभाव में कमी आती है। इस कारण वे आपकी प्रणाली से अवचूषित हुए बिना सीधे गुजर जाते हैं। ये तत्व हैं जो शरीर में संचित होते रहते हैं और शरीर को नुकसान पहुंचाते हैं। जब आपका शरीर भोजन से पोषण प्राप्त नहीं करता, तो आपके शरीर में इनकी कमी उत्पन्न हो जाती है जिससे बीमारी पैदा होती है। जब एलोवेरा का उपभोग किया जाता है तो यह पाचन तंत्र से विषैले तत्वों को निकालने में मदद करता है। इसमें उन्हें ढीला करने व शनै:-शनै: से नष्ट करने की क्षमता है। इससे पाचन क्रिया साफ हो जाती है वह हम जो खाते हैं शरीर उसके पूरे लाभों का अवचूषण करने में सक्षम होता है। तथ्य यह है कि पाचन प्रक्रिया में विष जमा होने के कारण हमारा शरीर भोजन के स्रोतों से पोषण प्राप्त नहीं कर पाता। शक्तिशाली पोषण का अतिरिक्त पूरक आहार व एलोवेरा लाभ देकर प्रणाली में सन्तुलन पैदा करता है।
हमारे देश में इसका प्रयोग तो बहुत पहले से हो रहा था लेकिन योग गुरु बाबा रामदेव ने इसे व्यापक रूप से प्रचारित कर दिया। अब स्थिति ऐसी आ गयी है कि एलोवेरा का प्लेन जूस उतना मिल नहीं पाता है जितनी इसकी डिमांड है इसलिए एलोवेरा को अब लोग व्यावसायिक स्तर पर भी उगाने लगे हैं। घरो में गमले में एलोवेरा तो सभी उगाते हैं और उसका सेवन भी करते हैं लेकिन अब तो बाकायदा इसकी खेती होने लगी है। इस प्रकार एलोवेरा हमें सेहत के साथ दौलत भी दे रहा है। (हिफी)