बात 1954 की है। विश्वकप फुटबाल का फाइनल होने वाला था। शुरूआती दौर में मौसम ठीक ठाक रहा लेकिन जैसे जैसे फाइनल शुरू होने का समय नजदीक आता गया मौसम बिगड़ने लगा। इधर दोनों टीमों ने स्टेडियम में प्रवेश किया और उधर बारिश शुरू हो गई। मैदान में घास तो थी लेकिन इसके बावजूद वहां फिसलन होने लगी। खिलाड़ी फुटाबाल के पीछे दौड़ते, लेकिन जहां पानी जमा हुआ दिखाई देता वहां वह स्वयमेव ही धीरे हो जाते और गेंद निकल जाने देते। नतीजतन खेल की गति में ठहराव होने लगा। लगभग सभी खिलाड़ी ऐसा कर रहे थे, सिवाय दो या तीन केे। इसकी वजह थी कि उन तीनों ने एक विशेष कम्पनी द्वारा खास तौर पर ऐसे ही किसी अवसर के लिए बनाए गए जूते पहन रखे थे। इन जूतों के तल्लों पर छोटे-छोटे धातु के स्टड लगे थे, जिनकी वजह से यह खिलाड़ी पूरे मैदान में आसानी से कहीं से कहीं भी दौड़ जाते और गंेद पर कब्जा कर लेते। उन्हें पानी में फिसलने या गिर जाने का जरा भी डर नहीं था। यह सभी खिलाड़ी जरमनी के थे और इन्हीं के बूते अन्ततः जरमनी ने विश्वकप फुटबाल का फाइनल जीत लिया।
फाइनल स्कोर था 3-2। हालांकि उस समय हंगरी को इस फाइनल के जीतने का प्रबल दावेदार माना जाता था लेकिन जरमनी ने 3-2 से उन्हें परास्त करके हर दावे को खारिज कर दिया। इस फाइनल में जीत के लिए जरमनी के खिलाड़ियों द्वारा पहने गए जूतों का भी काफी योगदान रहा। तभी से लोगों का ध्यान इन विशेष प्रकार के जूतों की ओर आकर्षित हुआ। आज इन्हीं जूतों को उनकी कंपनी एडिडास के नाम से जाना जाता है। इस कंपनी की भी अपनी एक मनोरंजन कहानी हे। इसकी शुरूआत दो सगे भाइयों एडी डैसलर तथा अडोल्फ डैसलर द्वारा की गई थी। आरम्भ में तो दोनों भाइयों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा था और बहुधा वे अपनी रसोई या बाथरूम में बैठकर जूते बनाते थे। एडी को बचपन से ही स्पोर्ट में रुचि थी और उनको अक्सर यह बात सालती थी खिलाड़ी प्रायः ही साधारण पीटी वाले जूते ही पहना करते थे। लेकिन कुछ मामलों में यह जूते बिल्कुल निरर्थक सिद्ध होते थे। फिर यह जूते पहनकर ज्यादातर भागा दौड़ी करने पर पैर के तलुओं और घुटनों पर काफी दबाव पड़ता था। यह देखकर उनके मन में विचार आया कि क्यों न कुछ इस प्रकार के जूते बनाए जाएं जो खिलाड़ियों के लिए काफी मददगार हों। उनके भाई रुडोल्फ को भी उनके विचार पसन्द आए और दोनों भाइयों ने अपनी माता के घर के बाथरूम में बैठकर जूते बनाने का काम शुरू किया उन्होंने अपने ब्रान्ड का नाम रखा डैसलर शूज। इससे पहले भी उन्होंने कई खिलाड़ियों से सम्पर्क किया था और उनकी समस्याओं का जिक्र किया था।
1920 में शुरू किये गये उनके उद्योग को बाजार में खुद बखुद जगह मिलती गई क्योंकि वे अपने जूतों को स्पोटर््स श्रेणी का बताकर ही बेचते थे। 1925 में उन्होंने स्पाइक वाले जूते बाजार में उतारे। इन जूतों में पंजों के बल कीलनुमा स्पाइक लगे थे। इसका आइडिया उन्हें खुद एक धावक ने दिया जब उसने उनको दौड़ने और खासकर पंजों के बल तेजी से दौड़ने का जिक्र करते हुए यह आशा व्यक्त की कि पंजों के नीचे अगर स्प्रिंग हो तो दौड़ना आसान बन जाएगा। हालंाकि कई खिलाड़ियों को यह जूते पहनने में हिचकिचाहट महसूस हुई अरे! कीलों वाले जूते पहन कर कौन दोड़ेगा न बाबा न! लेकिन कई अन्य खिलाड़ियों ने 1928 में ओलम्पिक में इन जूतों को पहना। जब 1936 के बर्लिन ओलम्पिक में जेसी ओवेन्स ने ऐसे ही जूते पहन कर लगातार चार स्वर्ण पदक जीते तो डैसलर जूतों की धाक सारे विश्व में जम गई। तब तक खिलाड़ियों के लिए बने इन जूतों का नाम डैसलर ही कहलाता था। लेकिन विश्वयुद्ध छिड़ते ही बाजार में मन्दी आ गई।
1945 में विश्वयुद्ध को समाप्ति हुई और डैसलर भाइयों की फैक्ट्री फिर से चल पड़ी। लेकिन 1948 में अनहोनी हो गई। दरअसल हुआ यह था कि विश्वयुद्ध छिड़ते ही रूडोल्फ जरमनी से बाहर जा बसे थे। एडी को नाजियों ने जबर्दस्ती जरमनी में रोके रखा था, इससे उन्हें नाजियों पर काफी रोष था। जब रूडोल्फ जरमनी लौटैे तो एडी से मिलने गए। उस समय किसी वजह से वह नाजियों को बुरा भला कह रहे थे। इतिफाक से वैसे ही रूडोल्फ कक्ष में प्रविष्ठ हो रहे थे, और एडी के मुंह से निकला लौट आए कम्बख्त इत्यादि। रूडोल्फ उल्टे पांव वापस चले गए और दोनों भाइयों में अलगाव हो गया। एडी ने लाख समझाया पर एन्डोल्फ इसी बात पर अड़े रहे कि एडी का यह डायलाग उन्हें लक्षित करके ही कहा गया था। फैक्टरी और बिजनेस में साझा हो गया और रूडोल्फ ने ’प्यूमा’ नामक ब्रांड की शुरूआत की। उधर एडी ने अपनी कम्पनी का नाम रखा एडिडास। लेकिन यह नाम एडी डैसलर का संक्षेपीकरण नहीं बल्कि इसका पूरी व्याख्या है आल डे आई ड्रीम अवाउट स्पोर्ट्स। धन्धा बदला तेवर बदले और रूडोल्फ की नाराजगी इतनी बढ़ गई थी कि अगर उनके दफ्तर या फैक्ट्री में कोई एडीडास जूते पहनकर आ जाता तो वह उससे जूते उतरवा उसे प्यूमा के जूतों की एक जोड़ी मुफ्त में दे देते थे। कई बार तो शरारती तत्व जानबूझ कर ऐसा करते थे। लेकिन इसे मुकद्दर की बुलंदी ही कहंे कि दोनों ही ब्रांड बराबर तरक्की करते चले गए। यह सिलसिला एडी की मृत्यु (1978) तक चलता रहा। बाद में उनके उत्तराधिकरियों ने 1987 मेें कंपनी बेच दी लेकिन उसका नाम यही चलता रहा।
2006 में एडिडास ने 11.8 अरब डाॅलर (1 डालर=52 रुपये) में एक प्रतिस्पर्धी कंपनी रीबाॅक का भी अधिग्रहण कर लिया और इसके साथ ही स्पोर्ट की दुनिया में एडिडास की स्थिति काफी मजबूत हो गई। इस समय इस कम्पनी में लगभग 43 हजार कर्मचारी हैं और इसका सालाना टर्न ओवर 12 अरब यूरो (1 यूरो=66 रुपये) है। एडी डैसलर पहले व्यक्ति थे जिन्होंने खेलों के बार में नई राह चुनी और प्रोफेशनल स्पोर्ट शूज की एक नई श्रेणी बना दी। जैसा कि उनका कथन कि वह हमेशा स्पोर्ट के बारे में सोचते हैं वैसे ही उनकी कंपनी की पालिसी भी रही। वह जूतों के बारे में खिलाड़ियों से संपर्क बनाए रखते थे और उनसे मिले सुझावों पर अमल करके जूतों की नई डिजाइने बनाया करते थे। आश्चर्य नहीं कि एडोल्फ डैसलर के नाम पर इस क्षेत्र में सात सौ से भी ज्यादा पेटेन्ट रजिस्टर्ड है। एडिडास की तीन पट्टियां अब इतनी मशहूर हो चुकी हैं कि दूर से ही इन्हें देखकर लोग समझ जाते हैं कि यह एडिडास के जूते हैं। अपने सपनों को साकार बनाने का इससे बेहतर उदाहरण नहीं! (हिफी) फोटो Pinterest से