दमदार अभिनेता फारुख शेख अपने सीधे-साधे छवि व अपनी सादगी के लिए पहचाने जाते थे। फारुख शेख ने सीधे-सादे, भोले-भाले और प्रेम के प्रपंच से अनजान नायक के रोल को जिस सादगी के साथ परदे पर उतारा है वो बेमिसाल है। शायद ऐसे रोल उनकी शख्सियत पर फबते थे। फिल्म गमन (1978) में उत्तर प्रदेश के ग्रामीण अंचल से पैसे कमाने के लिए मुंबई रवाना हुआ मुस्लिम युवक महानगर के आतंक से ग्रसित है। फिल्म में शहरयार का गीत ‘सीने में जलन आँखों में तूफान-सा क्यों है, इस शहर में हर शख्स परेशां-सा क्यों है’- फारुख शेख की फिल्म करियर की असली दास्तान है।
पर्दे पर अपने किरदार को जीवंत करने वाले अभिनेता फारुख पांच भाई बहनों में सबसे बड़े थे।फ़ारुख़ का जन्म बम्बई अब मुम्बई के वकील मुस्तफ़ा शेख और फ़रिदा शेख के मुसलमान परिवार में जो बोडेली कस्बे के निकट नसवाडी ग्राम के निकट बड़ोदी गुजरात के अमरोली में हुआ। उनके परिवार वाले ज़मिंदार थे और उनका पालन पोषण शानदार परिवेश में हुआ।उनकी शिक्षा बम्बई अब मुंबई में हुई थी। फारुख शेख ने रुपा जैन से शादी की थी। उनकी दो बेटियां हैं, शाइस्ता और सना।उन्होंने अपने करियर की शुरूआत थिएटर से की।
वह भारतीय जन नाट्य संघ और जाने-माने निर्देशक सागर सरहदी के साथ काम किया करते थे।फारूख ने 1973 में प्रदर्शित फिल्म ‘गरम हवा’ से अपने सिने करियर की शुरुआत की थी।फारुख शेख ने अपनी पहली फिल्म ‘गर्म हवा’ में मुफ्त में काम करने को हामी भरी थी। रमेश सथ्यू यह फिल्म बना रहे थे और उन्हें ऐसे कलाकार की जरूरत थी, जो बिना फीस लिए तारीखें दे दे। इस फिल्म के लिए फारुख शेख को 750 रु. मिले, लेकिन तुरंत नहीं, बल्कि पांच साल बाद। फारूख की किस्मत का सितारा निर्माता-निर्देशक यश चोपड़ा की 1979 में प्रदर्शित फिल्म ‘नूरी’ से चमका। 1981 में फारूख शेख के सिने करियर की एक और सुपरहिट फिल्म ‘चश्मेबद्दूर’ प्रदर्शित हुई। 1987 में प्रदर्शित फिल्म ‘बीवी हो तो ऐसी’ नायक के रूप में फारूख के सिने करियर की अंतिम फिल्म थी इस फिल्म में उन्होंने अभिनेत्री रेखा के साथ काम किया। फारुख शेख ने एक्ट्रेस शबाना आजमी के साथ फिल्म ‘लोरी’, ‘अंजुमन’, ‘एक पल’ और ‘तुम्हारी अमृता’ कई बेहतरीन फिल्मों में अभिनय किया. फारुख शेख के साथ दीप्ति नवल की ऑनस्क्रीन जोड़ी को दर्शकों ने बेहद पसंद किया. यह जोड़ी काफी हिट रही. दीप्ति नवल के साथ फारुख शेख ने करीब 7 फिल्मों में काम किया जिनमें ‘चश्म-ए-बद्दूर’ , ‘कथा’, ‘साथ-साथ’, ‘किसी से ना कहना’, ‘रंग बिरंगी’ फिल्में शामिल थीं. टीवी धारावाहिक भी में फारुख ने अभिनय किया है। फिल्मों में सक्रियता के बावजूद वह रंगमंच से भी जुड़े रहे। शबाना आजमी के साथ उनका नाटक ‘तुम्हारी अमृता’ बेहद सफल रहा। ए.आर. गुर्नी के ‘लव लेटर्स’ पर आधारित इस नाटक में फारुख और शबाना को मंच पर साथ देखना दर्शकों के लिए एक सुखद अनुभूति था। इस नाटक का 300 बार सफल मंचन हुआ।वह एक ऐसे परिपूर्ण कलाकार थे, जो अभिनय के हर मंच और छोटे-बड़े हर किरदार को पूरी वफादारी से निभाते थे। पुरुष प्रधान फिल्मों के दौर में भी फारुख ऐसे अभिनेता थे, जिन्हें अभिनेत्री रेखा पर केंद्रित उमराव जान में छोटा सा किरदार निभाने में भी कोई हिचकिचाहट नहीं थी।
बड़े परदे से मन भरने के बाद वे छोटे परदे की ओर मुखातिब हुए। निर्देशक प्रवीण निश्चल ने शरत बाबू के उपन्यास श्रीकांत पर जो धारावाहिक बना वो लंबे समय तक चला। फारुख ने इतने दिनों तक श्रीकांत के किरदार को अपने दर्शकों के दिल-दिमाग में जीवंत बनाए रखा। कुछ और धारावाहिक करने के बाद फारुख ने काफी परिश्रम और शोध कार्य से अपना टॉक शो जीना इसी का नाम है प्रस्तुत किया। यह अपने ढंग का अनोखा कार्यक्रम था। इसमें प्रस्तुत कलाकार को उसके बचपन के दोस्त-सहपाठी और परिवार के सदस्यों के साथ चौंकl दिया जाता था। ‘लाहौर’ फिल्म के लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। उनकी अंतिम फिल्म ‘क्लब 60’ थी, जो 6 दिसंबर 2013 को रिलीज़ हुई थी। दिल का दौरा पड़ने के कारण 28 दिसंबर 2013 में वह दुनिया को अलविदा कर चले गए, वह भी अपनी धरती से नहीं, परदेस से। लेकिन उनके प्रशंसकों के जेहन में उनकी छवि एक ऐसे अभिनेता के रूप में सदैव जीवित रहेगी, जो सुपरस्टार भले ही न रहा हो, लेकिन अभिनय के मामले में एक स्टार शख्सियत से काफी ऊंचे मुकाम पर रहा।एजेन्सी।