लखनऊ के ऐतिहासिक स्थल चौक में इस वर्ष भी परम्परागत होरियारों का जुलूस अपनी महक से लखनऊ की सरज़मी को सराबोर कर देगा। विगत 6 दशकों से अनवरत आयोजित होने वाले जुलूस में घोड़ों एवं ऊँटों पर सवार होली के रंगों में मदमस्त होरियारों द्वारा गुलाल, पुष्प वर्षा एवं होली गीतों से सम्पूर्ण क्षेत्र ही गुलाबी हो जाता है जब रंग-बिरंगे गुलाल हवा में उड़ते तो आसमान में एक इन्द्रधनुषी छटा सी छा जाती और क्षेत्र के जनमानस के पटल पर अपनी अमिट छाप छोड़ जायेगी। यह सभी दृश्य देखते ही बनते हैं,चौक कोनेश्वर से प्रारम्भ हुआ जुलूस कमला नेहरू मार्ग, मेडिकल क्रासिंग, विक्टोरिया स्ट्रीट, मेफेयर तिराहा, अकबरी गेट, तहसीन मस्जिद, गोटा बाजार, चौक सर्राफा होता हुआ चौक चौराहे पर विश्राम लेता है। इस जुलूस में होरियारा सम्मान भी दिया जाता है।
होली मेला लखनऊ में नवाब कालीन ऐतिहासिक धरोहर का प्रतीक हैं यह मेला 164 सालों की यादों को अपने में समेटे हुए है। बादशाह गाजीउद्दीन हैदर ने हिन्दू त्यौहारों को धूमधाम से मनाने की परम्परा की शुरुआत की थी। इस मेले ने स्वतः ही लगते-लगते एक विशाल मेले का रूप ले लिया। प्रत्येक वर्ष श्रेत्रीय जनो में सम्मिलित होते हुए हर्श व उत्साह के साथ होली का त्योहार मनाते रहे है और इस वर्ष भी उपस्थित रहने के लिए स्वीकृति प्रदान की है। विभिन्न व्यापार मण्डलों द्वारा ठण्डाई एवं पान खिलाकर लोगों को बधाइयाँ दिये जाने की व्यवस्था की गयी है। बधाइयों का यह सिलसिल देर रात्रि तक अनवरत जारी रहेगा। मेले की व्यवस्था चौक चौराहे से खुन खुन जी रोड होते हुए कोनेश्वर मन्दिर तक की जाती है। जिसमें समस्त वर्गो के नगरीय लोगों का आवागमन व होली मिलकर परस्पर बधाइयां देने का सिलसिला मध्य रात्रि तक चलता रहता है।