नाटक, नौटंकी, रंगमंच, थियेटर…!!! जो जी चाहे कह सकते हैं। यह मनोरंजन का सबसे पुराना माध्यम है. खासकर, भारत की बात करें तो, आप जानते ही हैं कि, हम लोग मनोरंजन के लिए कितने क्रेजी हैं। मगर पहले सिनेमा नहीं होता था, एंटरटेनमेंट के लिए लोगों के पास थियेटर ऑप्शन था। हमारे पूर्वजों के समय से आजतक ये थियेटर अपना दबदबा बनाए हुए है। इतना ही नहीं आज ओटीटी या फ़िल्मी पर्दे पर नसीरूद्दीन शाह, पंकज त्रिपाठी, मनोज बाजपेयी, नवाजुद्दीन सिद्दीकी जैसे एक्टर्स को देख रहे हैं वो भी थियेटर की दुनिया से ही आये हैं। ऐसे में हम भला विर्ल्ड थियेटर डे को कैसे भूल सकते हैं।
विश्व रंगमंच दिवस’ की स्थापना 27 मार्च 1961 को हुई थी। साथ ही यह भी कि, रंगमंच वह स्थान है जहां नृत्य, नाटक, खेल आदि होते हैं। रंगमंच शब्द रंग और मंच दो शब्दों से मिलकर बना है। एक रंग- जिसके तहत दृश्य को आकर्षक बनाने के लिए दीवारों, छतों और पर्दों पर विविध प्रकार की चित्रकारी की जाती है। साथ ही अभिनेताओं की वेशभूषा और सज्जा में भी विविध रंगों का प्रयोग होता है। दूसरा मंच- जिसके तहत दर्शकों की सुविधा के लिए रंगमंच का तल फर्श से कुछ ऊँचा रहता है। वहीं दर्शकों के बैठने के स्थान को प्रेक्षागार और रंगमंच सहित समूचे भवन को प्रेक्षागृह, रंगशाला या नाट्यशाला कहते हैं। पश्चिमी देशों में इसे थिएटर या ऑपेरा के नाम से जाना जाता है। रंगमंच से संबंधित अनेक संस्थाओं और समूहों द्वारा भी इस दिन को विशेष दिवस के रूप में आयोजित किया जाता है। इस दिवस का एक महत्त्वपूर्ण आयोजन अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच संदेश है, जो विश्व के किसी जाने माने रंगकर्मी द्वारा रंगमंच तथा शांति की संस्कृति विषय पर उसके विचारों को व्यक्त करता है। 1962 में पहला अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच संदेश फ्रांस की जीन काक्टे ने दिया था।एजेन्सी।