भारतीय वायुसेना स्कीन कमेटी द्वारा 1926 में की गई सिफारिश के आधार पर 1 अप्रैल 1933 में भातीय वायुसेना का गठन किया गया था । कुछ Wapiti विमानों,Cranwel प्रशिक्षित कुछ उड़ाकों तथा airmen के छोटे से दल से इस सेना ने कार्यारंभ किया। 1 अप्रैल, 1954 को एयर मार्शल सुब्रोतो मुखर्जी जो भारतीय नौसेना के संस्थापक सदस्य थे, ने प्रथम भारतीय वायु सेना प्रमुख का कार्यभार संभाला था। समय गुजरने के साथ भारतीय वायु सेना ने अपने हवाई जहाजों और उपकरणों में अत्यधिक उन्नयन किए हैं और इस प्रक्रिया के भाग के रूप में इसमें कई नए प्रकार के हवाई जहाज शामिल किए हैं।आज भारतीय वायुसेना राष्ट्र की सुरक्षा की दृष्टि से सशस्त्र सेना का न केवल अपरिहार्य एवं पृथक् अंग हैं, बल्कि यह आधुनिकतम वायुयानों से सुसज्जित एक विस्तारी वायुसेना का उड़ाकू बेड़ा बन गया है।भारतीय वायुसेना का गठन ब्रिटिश कालिन भारत में रॉयल एयरफोर्स के एक सहायक हवाई दल के रुप में किया गया था। भारतीय वायु सेना अधिनियम 1932 को उसी वर्ष 8 अक्टूबर से लागु किया गया जिसके तहत रॉयल एयरफोर्स के वर्दी, बैज और प्रतीक चिन्ह अपनाए गए ।1941 तक स्कवॉड्रन क्र. 1 भारतीय वायुसेना का एकमेव स्कवॉड्रन था जिसमें दो और विमान शामिल कर लिए गये थे। शुरूआत में वायुसेना कि केवल दो शाखाएं थी, ग्राउंड ड्यूटी व रसद शाखा। द्वीतिय विश्व युद्ध के दौरान भारतीय वायुसेना के चिन्ह में से लाल गोला हटा दिया गया ताकि जापानी हिनोमारू (उगता सुरज) के साथ साम्य को टाला जा सकें।1943 में वायुसेना बढ कर सात स्कवॉड्रनस व 1945 तक नौं स्कवॉड्रनस की हो गई जिसमें वल्टी वेंजंन्स गोता बमवर्षक व हरिकेन और ए. डब्लू 15 अटलांटस जिसे 1944 में शामिल कर लिया गया।भारतीय वायुसेना ने बर्मा में बढती हुई जापानी सेना को रोकने में सहायता प्रदान की थी, जहां इसने अपना पहली हवाई हमला अराकन में जापानी सैन्य छावनी पर किया। वायुसेना ने माई हंग सन और उत्तरी थाइलैंड के चैंग माई व चैंग राए में भी जापानी हवाई अड्डों पर हमले किए। अपने योगदान के लिए 1945 में राजा जॉर्ज VI नें इसे रॉयल कि उपाधि दी।
आज़ादी के बाद से अब तक चार अवसरों पर भारतीय वायु सेना की क्षमताओं का परीक्षण हुआ। हर अवसर पर उसने स्वयं को बेजोड़ साबित किया। अक्टूबर, 1962 में देश की सीमा पर भारत-चीन युद्ध की स्थिति पैदा हुई। 20 अक्तूबर से 20 नवंबर तक वायु सेना की परिवहन व हेलिकॉप्टर इकाई पर बहुत दबाव था। चौबीसों घंटे सीमावर्ती चौकियों पर सैन्य दस्तों व वस्तुओं की आपूर्ति की जानी थी। हेलिकॉप्टरों को पहाड़ों के विषम हैलिपैडों पर लगातार चीन के छोटे वायुयान रोधी शस्त्रों के ख़तरे का सामना करना था। इस दौरान भारतीय वायु सेना ने बहुत से अनोखे कार्य किए।1 सितंबर 1965 को छंब क्षेत्र में पाकिस्तानी सेना ने आक्रमण कर दिया। वायु सेना ने थल सेना को ज़मीन पर अपने वैंपायर एफ.बी.एम. के. 52, मिस्टर, कैनबरा, हंटर व नैट द्वारा प्रशंसनीय सहायता प्रदान की और प्रभावी ढंग से पाकिस्तानी सेना के क़दम उख़ाड दिए।दिसंबर 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच फिर युद्ध हुआ और वायुसेना ने दुबारा महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। पश्चिमी मोर्चे पर वायु सेना ने शत्रु की संचार प्रणाली को नुक़सान पहुँचाने के अपने प्राथमिक कार्य को अंज़ाम दिया और उसके ईंधन व गोला-बारूद भंडार को नष्ट कर उसे ज़मीन पर सेना एकत्रित करने से रोक दिया। मई 1999 के कारगिल संघर्ष में पाकिस्तानी घुसपैठियों को नियंत्रण रेखा के पार भेजने के लिए भारतीय थल सेना को विश्व के सर्वोच्च भू-भागों में से एक में युद्ध करना पड़ा। प्रभावी एवं समय पर हवाई सहायता सेना के लिए अनमोल साबित हुई। एजेन्सी।