स्मृति शेष।
माखनलाल चतुर्वेदी ख्यातिप्राप्त कवि, लेखक और पत्रकार थे जिनकी रचनाएँ अत्यंत लोकप्रिय हुईं। सरल भाषा और ओजपूर्ण भावनाओं के वे अनूठे हिंदी रचनाकार थे। प्रभा और कर्मवीर प्रतिष्ठत पत्रों के संपादक के रूप में उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ जोरदार प्रचार किया और नई पीढ़ी का आह्वान किया कि वह गुलामी की जंज़ीरों को तोड़ कर बाहर आए। इसके लिये उन्हें अनेक बार ब्रिटिश साम्राज्य का कोपभाजन बनना पड़ा। वे सच्चे देशप्रेमी थे और १९२१-२२ के असहयोग आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेते हुए जेल भी गए। उनकी कविताओं में देशप्रेम के साथ-साथ प्रकृति और प्रेम का भी चित्रण हुआ है, इसलिए वे सच्चे अर्थों में युग-चारण हैं।
माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म ((4 अप्रैल 1889 ) होशंगाबाद जिले में बाबई हुआ था। इनके पिता का नाम नंदलाल चतुर्वेदी था जो गाँव के प्राथमिक विद्यालय में अध्यापक थे। प्राथमिक शिक्षा के बाद घर पर ही इन्होंने संस्कृत, बांग्ला, अंग्रेजी, गुजराती आदि भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया। मात्र 16 वर्ष की आयु में शिक्षक बने
माखनलाल चतुर्वेदी का तत्कालीन राष्ट्रीय परिदृश्य और घटनाचक्र ऐसा था जब लोकमान्य तिलक का उद्घोष- ‘स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है’ बलिपंथियों का प्रेरणास्रोत बन चुका था। दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह के अमोघ अस्त्र का सफल प्रयोग कर कर्मवीर मोहनदास करमचंद गाँधी का राष्ट्रीय परिदृश्य के केंद्र में आगमन हो चुका था। आर्थिक स्वतंत्रता के लिए स्वदेशी का मार्ग चुना गया था, सामाजिक सुधार के अभियान गतिशील थे और राजनीतिक चेतना स्वतंत्रता की चाह के रूप में सर्वोच्च प्राथमिकता बन गई थी। ऐसे समय में माधवराव सप्रे के ‘हिंदी केसरी’ ने 1908 में ‘राष्ट्रीय आंदोलन और बहिष्कार’ विषय पर निबंध प्रतियोगिता का आयोजन किया। खंडवा के युवा अध्यापक माखनलाल चतुर्वेदी का निबंध प्रथम चुना गया। अप्रैल 1913 में खंडवा के हिंदी सेवी कालूराम गंगराड़े ने मासिक पत्रिका ‘प्रभा’ का प्रकाशन आरंभ किया, जिसके संपादन का दायित्व माखनलालजी को सौंपा गया। सितंबर 1913 में उन्होंने अध्यापक की नौकरी छोड़ दी और पूरी तरह पत्रकारिता, साहित्य और राष्ट्रीय आंदोलन के लिए समर्पित हो गए। इसी वर्ष कानपुर से गणेश शंकर विद्यार्थी ने ‘प्रताप’ का संपादन-प्रकाशन आरंभ किया। 1916 के लखनऊ कांग्रेस अधिवेशन के दौरान माखनलालजी ने विद्यार्थीजी के साथ मैथिलीशरण गुप्त और महात्मा गाँधी से मुलाकात की। महात्मा गाँधी द्वारा आहूत 1920 के ‘असहयोग आंदोलन’ में महाकोशल अंचल से पहली गिरफ्तारी देने वाले माखनलालजी ही थे। 1930 के सविनय अवज्ञा आंदोलन में भी उन्हें गिरफ्तारी देने का प्रथम सम्मान मिला। उनके महान कृतित्व के तीन आयाम हैं : एक, पत्रकारिता- ‘प्रभा’, ‘कर्मवीर’ और ‘प्रताप’ का संपादन। दो- माखनलालजी की कविताएँ, निबंध, नाटक और कहानी। तीन- माखनलालजी के अभिभाषण/ व्याख्यान।
1943 में उस समय का हिन्दी साहित्य का सबसे बड़ा ‘देव पुरस्कार’ माखनलालजी को ‘हिम किरीटिनी’ पर दिया गया था। 1954 में साहित्य अकादमी पुरस्कार की स्थापना होने पर हिंदी साहित्य के लिए प्रथम पुरस्कार दादा को ‘हिमतरंगिनी’ के लिए प्रदान किया गया। ‘पुष्प की अभिलाषा’ और ‘अमर राष्ट्र’ ओजस्वी रचनाओं के रचयिता इस महाकवि के कृतित्व को सागर विश्वविद्यालय ने 1959 में डी.लिट्. की मानद उपाधि से विभूषित किया। 1963 में भारत सरकार ने ‘पद्मभूषण’ से अलंकृत किया। 10 सितंबर1967 को राजभाषा हिंदी पर आघात करने वाले राजभाषा संविधान संशोधन विधेयक के विरोध में माखनलालजी ने यह अलंकरण लौटा दिया। जनवरी 1965 को मध्यप्रदेश शासन की ओर से खंडवा में ‘एक भारतीय आत्मा’ माखनलाल चतुर्वेदी के नागरिक सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। तत्कालीन राज्यपाल हरि विनायक पाटसकर और मुख्यमंत्री पं॰ द्वारकाप्रसाद मिश्र तथा हिंदी के अग्रगण्य साहित्यकार-पत्रकार इस गरिमामय समारोह में उपस्थित थे। भोपाल का माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय उन्हीं के नाम पर स्थापित किया गया है। उनके काव्य संग्रह ‘हिमतरंगिणी’ के लिये उन्हें 1955 में हिंदी के ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। माखनलाल चतुर्वेदी की मृत्यु -30 जनवरी 1968 में हुई थी । एजेन्सी