मुबारक साल गिरह- जब भी हम बुरे वक्त से गुजर रहे होते है हमसे कहा जाता है दोस्त सब्र करो ये बुरा वक्त बीत जाएगा। वैसे तो हर बुरा वक्त गुजर जाता है पर उससे पूछिये जिस पर वो बुरा वक्त गुजर रहा होता है. ये बात भी सही है की आगे बढ़ने के लिए बीते हुए कल को पीछे छोड़ना पड़ता है लेकिन ये भी सच है की उस बीते हुए कल की यादें उन दिनों देखे गए सपनो को हमे नही भूलना चाहिए. वो सपने और यादे ही है जो आपका आने वाला कल सवार सकते है। आज की कहानी भी कुछ ऐसी ही है और ऐसे शख्स की है जिसने 14 साल लंबी जद्दोजहद के बाद कामयाबी हासिल की लेकिन जब हम उनके बीते हुए कल को देखते है तो लगता है उन्होंने अपने देखे हुए सपने को पूरा करने के लिए वो तमाम कोशिश की जो उन्हें अपने सपने के और करीब ले जाती है ।
नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी जो अपने असल जीवन में कभी कैमिस्ट बने तो कभी वॉच मैन । 9 भाई बहन के बीच पले बड़े नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी की पैदाइश उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फ्नगर के गांव बुढ़ाना में 19 मई 1974 को ही हुई थी। पढ़ाई करने के बाद उन्हें बड़ोदा की कंपनी में चीफ कैमिस्ट की नोकरी मिल गई। लगभग 1 साल वहा नोकरी करने के बाद नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी को वहा कुछ कमी महसूस हुई उन्हें लगा ये काम उनके लिए नही है।
नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी भी कैमिस्ट की नोकरी छोड़ कर दिल्ली आ गए पर उन्हें पता नही था की दिल्ली में करना क्या है एक दिन उनके किसी दोस्त ने उन्हें थिएटर दिखाया. उस रंग मंच को देख कर नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी को लगा की वो जो करना चाहते है उन्हें मिल गया और वो एक थिएटर ग्रुप के साथ जुड़ गए। लेकिन थिएटर में उन्हें पैसे नही मिलते थे और उन्होंने नोएडा में वॉचमैन की नोकरी मिल गई वो दिन भर वॉचमैन की नोकरी करते और शाम को एक्टिंग की प्रैक्टिस यानी थिएटर करते. लगभग एक साल बीत गया नवाज़ुद्दीन सिद्दी दिन में बड़े लोगो को सलाम ठोकते और शाम को थिएटर करते। थिएटर में मेहनत करने के बाद उन्होंने नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा में एडमिशन लिया।
नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी ने एनएसडी में 3 साल का कोर्स करने के बाद भी ओर 4 साल एनएसडी में गुज़ारे।काम की तलाश ने उन्हें एनएसडी से दूर नही जाने दिया। वो अपने बाकी रंगमंच के कलाकारों के साथ नुक्कड़ नाटक करने लगे जिसमे कुछ पैसे उन्हें मिल जाया करते थे। नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी को ये महसूस हो गया था की वो एक्टिंग की दुनिया का हिस्सा बन सकते है लेकिन सिर्फ नुक्कड़ नाटक और थिएटर से पेट भरना थोडा मुश्किल था। और यही पेट का सवाल उन्हें मुम्बई ले गया। मुंबई में उन्होंने टीवी में हाथ आजमाया लेकिन वहा भी उन्हें अपने रंग रूप के चलते कही जगह नही मिली।
छोटा कद, सावला चेहरा एक हीरो की तस्वीर से कोसो दूर और फिर मुम्बई में भी निराशा ही हाथ लगी। कई साल बीत गए और अब तक नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी को फिल्मो में एक एक सीन मिलने लगा और फिर पैसो के लिए कई फिल्मो में वो भीड़ का हिस्सा बनने लगे. इसके बाद नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी को लगा जैसे किस्मत ने करवट ले ली हो. उन्हें 1999 में आमिर खान की सरफ़रोश में छोटा सा रोल मिला लेकिन वो सरफ़रोश में कब आये और कब गए पता ही नही चला . उसके बाद मनोज वाजपई की ‘शूल’, राम गोपाल वर्मा की ‘जंगल’ और संजय दत्त के साथ ‘ मुन्ना भाई एम बी बी एस’ बड़ी बड़ी फिल्मो में छोटे छोटे किरदार किये।
ब्लैक फ्राइडे फिल्म के दौरान डायरेक्टर अनुराग कश्यप की नज़र नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी पर पड़ी और उन्होंने नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी से वादा किया की वो नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी को लेकर फिल्म जरूर बनायंगे । नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी कामयाबी के एकदम करीब थे लेकिन कामयाबी अभी तक सही मायनो में मिली नही थी लेकिन उनकी मेहनत और उनके हौसला कभी नही टुटा और फिर उन्हें एक फ़िल्म मिली ‘गैंग्स ऑफ़ वासेपुर’। इस फ़िल्म ने नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी की जिंदगी ही बदल दी. वो कहते हैं न ‘बिग ब्रेक’ स्ट्रगल पर ‘बिग ब्रेक’। फिर इसी साल नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी की दूसरी फ़िल्म ‘मिस लवली’ भी रिलीज़ हुई इस फ़िल्म में नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी लीड रोल में थे, इसके बाद तिग्मांशु धुलिया की फ़िल्म ‘पान सिंह तोमर’ ने नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी को अलग पहचान दी , इसके बाद ‘पीपली लाइव और आई ‘कहानी’ फ़िल्म में नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी एक्टिंग को काफी तारीफ मिली। फिर क्या था नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी से बना फैजल खान ने कभी पीछे मुड़ कर नही देखा। अब नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी भीड़ का हिस्सा नही थे और न ही उनको किसी छोटे मोठे रोल के लिए जद्दोजहद करने की जरूरत थी। 2012 में सुजोय घोष की फिल्म कहानी में नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी ने आइबी के कड़क आफिसर का किरदार निभाया। इस फिल्म की सफलता का ज्यादातर क्रेडिट विद्या बालन को मिला लेकिन नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी ने भी अपने अभिनय की कहानी को नया विस्तार दिया। लंच बाक्स में वो इरफान को बेहतरीन टक्कर देते नजर आए। वहीं, तलाश में भी उन्होंने शातिर अपराधी तैमूर का स्वभाविक अभिनय किया। नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी को उनके जानदार अभिनय के लिए 60 वे राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में ज्यूरी के स्पेशल पुरस्कार से नवाजा गया।
गया के रहने वाले दशरथ मांझी के जीवन पर केतन मेहता की फिल्म मांझी द माउंटेनमैन पहली ऐसी फिल्म थी, जिसमें पहली बार वो सोलो हीरो के रूप में आए। दशरथ मांझी ने करीब दो दशक तक पहाड़ का तोड़कर सड़क बनाई थी। यह कहानी फिल्मी पर्दे के लिए बोरिंग कही जा सकती है लेकिन ऐसे विषय पर यह शानदार फिल्म बनाई गई। इसमें नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी ने अपने अभिनय के शानदार रंग दिखाए।
नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी की फिल्म रमन राधव 2.0 कान फिल्म महोत्सव में दिखाई गई। इसमें नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी का अभिनय इतना दमदार रहा कि इसे स्टैंडिंग अवेशन मिला। इस फिल्म के डायरेक्टर भी अनुराग कश्यप हैं। यह फिल्म सीरीयल किलर रमन राघव पर आधारित है। नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी ने फ़िल्म इंडस्ट्री में खुद को साबित करने के लिए 14 साल लम्बा सफ़र तय किया। जिसमे वो कई बार गिरे कई बार टूटे लेकिन उनके हौसले बुलन्द थे जिन हौसलो ने आज उन्हें इस मुकाम पर पहुचा दिया की उनकी एक्टिंग का लोहा आज दुनिया मानती है।एजेन्सी