मुबारक साल गिरह।
अज़रा हिन्दी सिनेमा की अभिनेत्री रही हैं। उनकी फ़िल्मों की संख्या भले ही कम है, लेकिन जितनी भी फ़िल्में उन्होंने की हैं, वह उनकी अभिनय प्रतिभा का परिचय देने के लिए पर्याप्त है। अज़रा को फ़िल्म ‘मदर इंडिया’ (1957), ‘गंगा जमुना’ (1961) और ‘जंगली’ (1961) से खासी पहचान मिली थी।
अज़रा का जन्म 21 सितम्बर को बम्बई में हुआ था। दिल्ली के रहने वाले ‘शेख इमामुद्दीन’ और उनकी पत्नी ‘मुनव्वर जहाँ’ के सात बच्चों में से दो बेटियां ‘रोशन जहाँ उर्फ़ रानी और उनसे छोटी इशरत जहाँ 1930 और 1940 के दशक की फ़ैंटेसी फ़िल्मों की स्टार अभिनेत्रियां थीं। रोशनजहाँ का स्क्रीननेम ‘सरोजिनी’ था। साल 1934 में प्रदर्शित हुई फ़िल्म ‘दीवानी’ से फ़िल्मों में कदम रखने वाली सरोजिनी ने क़रीब 12 साल के कॅरियर में ‘भारत की बेटी’, सुंदरी’, ‘मधु बंसरी’, ‘संसार नैया’, ‘सन ऑफ़ अलादीन’, ‘दीपक महल’, ‘हातिमताई की बेटी’, ‘जादुई कंगन’, ‘संस्कार’, ‘जादुई बंधन’, ‘ताजमहल’, ‘फ़रमान’, ‘नया ज़माना’, ‘श्रीकृष्णार्जुन युद्ध’ और ‘सर्कस किंग’ फ़िल्मों में काम किया। उसी दौरान उन्होंने फैंटेसी फ़िल्मों के लिए मशहूर निर्माता-निर्देशक नानूभाई वक़ील के साथ गुप्त विवाह भी कर लिया था। अज़रा इन्हीं सरोजिनी और नानूभाई वक़ील की बेटी हैं। अज़रा जी के पिता नानूभाई वक़ील का निधन 19 दिसम्बर 1980 को हुआ और उनकी मां सरोजिनी 1993 में गुज़रीं।
अज़रा जी का फ़िल्मों में आना महज़ एक इत्तफ़ाक़ था। उनके अनुसार- “मैं जोगेश्वरी के इस्माईल यूसुफ़ कॉलेज में बी.ए. फ़र्स्ट ईयर में पढ़ रही थी। एक रोज़ मैं सांताक्रुज़ के आर्य समाज मंदिर में किसी शादी में गयी, जहां महबूब ख़ान की पत्नी सरदार अख़्तर भी आयी हुई थीं। वह मेरी मौसी इंदुरानी की सहेली थीं। मुझे देखकर वह मौसी से कहने लगीं, तुम्हारी भांजी तो बहुत सुंदर है, और फिर बात आयी-गयी हो गयी। लेकिन तीन चार दिन बाद सरदार अख़्तर ने मेरे घर पर फ़ोन किया। मैं उस वक़्त कॉलेज गयी हुई थी। उसी शाम मुझे परिवार के साथ अजमेर जाना था, जहां मेरे पिता अपनी किसी फ़िल्म की शूटिंग कर रहे थे। उस फ़िल्म की हिरोइन चित्रा थीं।
सरदार अख़्तर ने मेरे लिए संदेश छोड़ा कि कॉलेज से लौटते ही मैं फ़ौरन महबूब स्टूडियो पहुंच जाऊं।” अज़रा जी महबूब स्टूडियो पहुंचीं तो वहां फ़िल्म ‘मदर इंडिया’की शूटिंग चल रही थी। फ़िल्म में बिरजू (सुनील दत्त) की प्रेमिका ‘चंद्रा’ की भूमिका में जिस लड़की को लिया गया था, वह लखनऊ में थी और बीमार पड़ जाने की वजह से बम्बई नहीं आ पायी थी। ऐसे में सरदार अख़्तर को अज़रा का ख़्याल आया और इस तरह वह बिना किसी योजना के ही अभिनेत्री बन गयीं।
1958 में अज़रा जी की फ़िल्म ‘टैक्सी 555’ प्रदर्शित हुई। प्रदीप कुमार और शकीला की मुख्य भूमिकाओं वाली इस फ़िल्म में वह सहनायिका थीं। 1959 में बनी फ़िल्म ‘घर घर की बात’ में वे नायिका बनीं। इस फ़िल्म का निर्माण उनके मौसा और सलीम शाह के पिता रमणीकलाल शाह ने किया, लेकिन ये दोनों ही फ़िल्में कुछ ख़ास नहीं चल पायीं। 1960 में अज़रा जी की दो फ़िल्में प्रदर्शित हुईं, जिनमें से एक थी ‘फ़िल्मिस्तान’ के बैनर में बनी ‘बाबर’ और दूसरी, ‘फ़िल्मिस्तान’ से अलग हुए शशधर मुकर्जी के बैनर ‘फ़िल्मालय’ की ‘लव इन शिमला’। ‘फ़िल्मालय’ के बैनर में इससे पहले ‘दिल देके देखो’ (1959) और ‘हम हिंदुस्तानी’ (1960) बन चुकी थीं।कई साल पहले फ़िल्मी दुनिया को अलविदा कह चुकी अज़रा मुंबई में रह रही हैं। एजेन्सी।