मुबारक साल गिरह-
फिल्मी जगत की मशहूर अदाकारा आशा पारेख दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। जिसकी घोषणा 27 सितंबर 2022 को की गई थी । ये सम्मान काफी लंबे समय बाद किसी अभिनेत्री को दिया गया है। आशा पारेख हिन्दी फि़ल्मों की प्रसिद्ध अभिनेत्री निर्देशक और निर्माता हैं। वह 1959 से 1973 तक हिन्दी फि़ल्मों की शीर्ष अभिनेत्रियों में रही हैं। 60 के दशक में अपनी अभिनय प्रतिभा से सभी को अचम्भित कर देने वाली अभिनेत्री आशा पारेख ने शम्मी कपूर शशि कपूर धर्मेन्द्र देवानंद अशोक कुमार सुनील दत्त और राजेश खन्ना मंझे हुए कलाकारों के साथ काम किया। अपने लम्बे फि़ ल्मी कैरियर में आशा पारेख ने विभिन्न भूमिकाएँ निभाईं। संजीदा अभिनेत्री के तौर पर अपनी एक अलग पहचान बनाने वाली आशा पारेख को शास्त्रीय नृत्य में भी दक्षता प्राप्त हैं।
आशा पारेख का जन्म 2 अक्टूबर 1942 को मध्यम वर्गीय गुजराती परिवार में हुआ था। उनके पिता हिन्दू और माता मुस्लिम थीं। इनकी माता सामाजिक कार्यकर्ता और आज़ादी के आन्दोलन में सक्रिय थीं। आशा पारेख का पारिवारिक माहौल बेहद धार्मिक था। विभिन्न धर्मों से संबंध होने के बावजूद उनके माता पिता साईं बाबा के भक्त थे। छोटी सी आयु में ही आशा जी भारतीय शास्त्रीय संगीत सीखने लगी थीं।
बचपन से ही आशा जी को नृत्य का बेहद शौक़ था। पड़ोस के घर में जब भी संगीत बजता तो घर में उनके पैर थिरकने लगते थे। बाद में उनकी माँ ने कथक नर्तक मोहनलाल पाण्डे से उन्हें प्रशिक्षण दिलवाया। बड़ी होने पर पण्डित गोपीकृष्ण तथा पण्डित बिरजू महाराज से भरतनाट्यम् में भी उन्होंने कुशलता प्राप्त की।
आशा पारेख ने फि़ल्म आसमान् 1952 में बाल कलाकार के रूप कार्य करके अपने फिल्मी कैरियर को शुरू किया। इस फि़ल्म के बाद से उन्हें बेबी आशा पारेख् के रूप में पहचान मिलने लगी। एक स्टेज प्रोग्राम में आशा पारेख के नृत्य से प्रभावित होकर निर्देशक विमल रॉय ने बारह वर्ष की आयु में आशा पारेख को अपनी फि़ ल्म बाप बेटी् में ले लिया। इस फि़ल्म को कुछ ख़ास सफलता प्राप्त नहीं हुई। इसके अलावा उन्होंने और भी कई फि़ल्मों में बाल कलाकार की भूमिका निभाई। आशा पारेख ने फि़ ल्मी दुनियाँ में कदम रखते ही स्कूल जाना छोड़ दिया था।
सोलह वर्ष की आयु में आशा पारेख ने दोबारा फि़ल्मी जगत में जाने का निर्णय लिया लेकिन फि़ल्म गूँज उठी शहनाई के निर्देशक विजय भट्ट ने आशा जी की अभिनय प्रतिभा को नजर अंदाज करते हुए उन्हें फि़ल्म में लेने से इनकार कर दिया। लेकिन अगले ही दिन फि़ल्म निर्माता सुबोध मुखर्जी और लेखक निर्देशक नासिर हुसैन ने अपनी आगामी फि़ल्म दिल देके देखो में आशा पारेख को शम्मी कपूर की नायिका की भूमिका में चुन लिया। यह फिल्म आशा पारेख और नासिर हुसैन को एक दूसरे के काफ़ नजदीक ले आई थी। नासिर हुसैन ने उन्हें अपनी अगली छह फि़ल्मों जब प्यार किसी से होता है फिर वही दिल लाया हूँ तीसरी मंजिल बहारों के सपने प्यार का मौसम और कारवाँ् में भी नायिका की भूमिका में रखा।
ख़ूबसूरत और रोमांटिक अदाकारा के रूप में लोकप्रिय हो चुकी आशा पारेख को निर्देशक राज खोसला ने दो बदन चिराग मैं तुलसी तेरे आंगन की फि़ल्मों में एक संजीदा अभिनेत्री के रूप में स्थापित किया। इसी सुची में निर्देशक शक्ति सामंत ने कटी पतंग पगला कहीं का् के द्वारा आशा पारेख की अभिनय प्रतिभा को और विस्तार दे दिया। आशा जी ने गुजराती और पंजाबी फि़ल्मों में भी अभिनय किया।
नासिर हुसैन के अलावा दूसरे बैनर्स में काम करने से आशा पारेख की छवि बदलने लगी थी। उन्हें सीरियसली लिया जाने लगा था। राज खोसला निर्देशित मैं तुलसी तेरे आंगन की दो बदन् और चिराग् तथा शक्ति सामंत की कटी पतंग ने उन्हें गंभीर भूमिकाएँ करने तथा अभिनय प्रतिभा दिखाने के अवसर प्रदान किए। इन सफलताओं ने आशा जी को शोहरत की बुलन्दियों पर पहुँचा दिया था। शम्मी कपूर राजेश खन्ना मनोज कुमार राजेंद्र कुमार धर्मेन्द्र और जॉय मुखर्जी उस दौर के मशहूर सितारों के साथ आशा पारेख ने काम किया। शम्मी कपूर के साथ उनकी कैमिस्ट्री खूब जमी और फि़ल्म तीसरी मंजिल ने तो कई रिकॉर्ड क़ायम किए। आशा जी की समकालीन अभिनेत्री नंदा माला सिन्हा सायरा बानो साधना आदि एक एक कर गुमनामी के अंधेरे में खो गईं लेकिन आशा जी अपनी समाज सेवा तथा इतर कार्यों के कारण लगातार चर्चा में बनी रहीं। अपनी माँ की मौत के बाद आशा पारेख के जीवन में एक शून्यता आ गई।
1995 में अभिनय से निर्देशन के क्षेत्र में कदम रखने के बाद आशा पारेख ने किसी फि़ल्म में अभिनय नहीं किया। उसे समाज सेवा के ज़रिये भरने की उन्होंने सफल कोशिश की। मुंबई के अस्पताल का पूरा वार्ड उन्होंने गोद ले लिया। उसमें भर्ती तमाम मरीजों की सेवा का उन्होंने काम किया और ज़रूरतमंदों की मदद की। फि ़ल्मी दुनिया के कामगारों के कल्याण के लिए लंबी लड़ाइयाँ भी उन्होंने लड़ी हैं। सिने आर्टिस्ट एसोसिएशन की छह: साल तक वे अध्यक्ष रहीं। केन्द्रीय फि़ल्म प्रमाणन मण्डल मुंबई की चेयर परसन बनने वाली वह प्रथम महिला हैं।
आशा पारेख ने अपने लम्बे फि़ल्मी सफर में असंख्य भूमिकाएँ निभाई हैं। उनकी कुछ प्रमुख फि़ल्मों के नाम इस प्रकार हैं, दिल दे के देखो, 1959 घूंघट 196० जब प्यार किसी से होता है, घराना छाया, 1961 फिर वही दिल लाया हूँ, 1963 मेरे सनम, तीसरी मंजि़ल,1965 लव इन टोक्यो,आये दिन बहार के 1966 उपकार 1967 कन्यादान आया सावन झूम के 1969 कटी पतंग, आन मिलो सजना 1970 मेरा गाँव मेरा देश 1971 समाधि 1972 मैं तुलसी तेरे आंगन की 1978 बिन फेरे हम तेरे 1979 कालिया.1981 मंजिल मंजि़ल 1984 हमारा खानदान. हम तो चले परदेस 1988 बँटवारा . 1989 घर की इज्जत 1994 आंदोलन. 1995।
आशा पारेख को फि़ल्मकटी पतंग् के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फि़ल्म फेयर अवार्ड् 1970 पद्मश्री अवार्ड 1992 लाइफ़ टाइम अचीवमेंट अवार्ड 2002 में प्राप्त हुआ।
इसके अतिरिक्त भारतीय फि़ल्मों में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए उन्हें अंतरराष्ट्रीय भारतीय फि़ ल्म अकादमी सम्मान ;2006 भारतीय वाणिज्य और उद्योग मंडल महासंघ फिक्की द्वारा लिविंग लेजेंड सम्मान भी दिया गया। आशा पारेख ने 1990 में गुजराती सीरियल ज्योती के साथ टेलिविजन निर्देशन के क्षेत्र में भी कदम रखा। आकृति प्रोडक्शन कंपनी की स्थापना करने के बाद आशा जी ने कोरा कागज पलाश के फू ल बाजे पायल सीरियल का निर्माण किया। 1994 से 2001 तक आशा पारेख सिने आर्टिस्ट एसोसिएशन की अध्यक्षा और 1998.2001 तक केन्द्रीय सेंसर बोर्ड् की पहली महिला चेयर परसन रहीं।
आशा जी ने विवाह नहीं किया है। वह कहती हैं. यदि शादी हो गई होती तो आज जितने काम वह कर पाई हैं उससे आधे भी नहीं हो पाते। वहीदा रहमान नंदा और आशा इन तीन सहेलियों की दोस्ती पूरी फि़ल्म इंडस्ट्री में मशहूर रही है। अपनी नृत्य कला को आशा पारेख ने जन जन तक फैलाने के लिए हेमा मालिनी एवं वैजयंती माला की तरह नृत्यनाटिकाएँ चोलादेवी एवं अनारकली तैयार कीं और उनके स्टेज शो पूरी दुनिया में प्रस्तुत किए। उन्हें इस बात का गर्व है कि अमेरिका के लिंकन थिएटर में भारत की ओर से उन्होंने पहली बार नृत्य की प्रस्तुति दी थी।एजेन्सी