स्मृति शेष।-कांशी राम बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक और दलित राजनीति के नेता थे। दलितों के उत्थान छटपटाहट और उनके हाथ में सत्ता होने का सपना देखने वाले कांशी राम ने ही मायावती की क्षमता को पहचाना और उन्हें राजनीति में आने को प्रेरित किया। कांशी राम का जन्म 15 मार्च 1934 को पंजाब के रोपड़ ज़िले में हुआ था। कांशी राम के पिता का नाम एस हरि सिंह था। स्वभाव से सरल और इरादे के पक्के कांशी राम की कर्मयात्रा 60 के दशक से प्रारंभ हुई और 70 के दशक के शुरूआती दिनों में उन्होंने पुणे में रक्षा विभाग की नौकरी छोड़ दी। ऐसा उन्होंने बाबा साहब डा-भीमराव अम्बेडकर का जन्म दिन समारोह बनाने संबन्धी विवाद के चलते किया था, इसके बाद वह महाराष्ट्र में दलितों की राजनीति में दिलचस्पी लेने लगे।
1978 में कांशी राम ने बामसेफ का गठन किया। बामसेफ के माध्यम से सरकारी नौकरी करने वाले दलित शोषित समाज के लोगों से एक निश्चित धनराशि लेकर समाज के हितों के लिए संघर्ष करते रहे। 1981 में उन्होंने दलित शोषित संघर्ष समाज समिति की स्थापना की। डीएसफोर के माध्यम से उन्होंने दलितों को संगठित किया और 1984 में बहुजन समाज पार्टी का गठन किया। उन्होंने बाबा साहब के इस सिद्धांत को माना कि सत्ता ही सभी चाबियों की चाबी है। कांशी राम चुनाव लडने से कभी पीछे नहीं हटे। उनका मानना था कि चुनाव लडने से पार्टी मजबूत होती है,उसकी दशा सुधरती है तथा जनाधार बढ़ता है। उन्होंने इलाहाबाद संसदीय सीट से 1981 में तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह के विरुद्ध चुनाव लड़ा। इस चुनाव में उनके ऊपर वी पी सिंह से रुपये लेकर लड़ने का आरोप लगाया गया। कांशी राम किसी आरोप से विचलित नहीं होते थे। अपने संगठन के द्वारा जो भी धन उनके पास आता था उसमें से उन्होंने कभी भी एक रुपया अपने परिवार वालों को नहीं दिया और न अपने किसी निजी कार्य में खर्च किया। इलाहाबाद के चुनाव में कांशी राम ने 80 हज़ार वोट हासिल किये।
1993 में पहली बार इटावा संसदीय सीट से चुनाव जीतकर लोकसभा में पहुंचे, उस समय समाजवादी पार्टी ने बसपा का साथ दिया था। यहीं से बसपा और सपा की दोस्ती शुरू हुई। 1993 में दोनों पार्टीयों की गठबंधन की सरकार उत्तर प्रदेश में बनी और मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बने परन्तु 1995 में बसपा ने समर्थन वापस ले लिया और सरकार गिर गयी। मायावती को सत्तासीन करने के लिए कांशी राम ने भारतीय जनता पार्टी के सहयोग से राज्य में पहली बार सरकार बनाई, मायावती मुख्घ्यमंत्री बनीं। कांशी राम ने पार्टी और दलितों के हित के लिये समाजवादी पार्टी, भारतीय जनता पार्टी व कांग्रेस सभी का साथ दिया और सहयोगी बने,उन्होंने हमेशा सभी का फायदा उठाया। उनका कहना था कि राजनीति में आगे बढने के लिए यह सब जायज है। कांशी राम ने 1995 में समाजवादी पार्टी को झटका देकर भारतीय जनता पार्टी के साथ जाने में कोई भी परहेज नहीं किया और अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली भाजपा की केन्द्र में जब सरकार गिर रही थी तब सरकार के खिलाफ मतदान किया। कांशी राम का राजनीतिक दर्शन था कि अगर सर्वजन की सेवा करनी है तो हर हाल में सत्ता के करीब ही रहना है। सत्ता में होने वाली प्रत्येक उथल पुथल में भागीदारी बनानी है। बसपा आज भी उनके राजनीतिक दर्शन के साथ है। वह मुख्यमंत्री बनवाते रहे और राजनीतिक दलों को समर्थन देते रहे। केन्द्र सरकार को समर्थन देते रहे लेकिन कभी भी खुद को पद पाने की महत्वाकांक्षा उन्होंने प्रदर्शित नहीं की। 9 अक्टूबर 2006 को कांशी राम का दिल्ली में निधन हो गया। वे 72 साल के थे। बसपा की स्थापना व दलितों को देश की राजनीति में विशेष स्थान दिलाने के लिए कांशी राम को हमेशा याद किया जाएगा।एजेन्सी।