गुजरात समुद्र के किनारे बसा है, इसलिए वहां हवाएं तेज चलती हैं। जगह-जगह पवन चक्कियां लगी हैं और उनसे बिजली पैदा की जाती है। इन दिनों चुनावी बयार चल रही है। कांग्रेस और भाजपा के साथ आम आदमी पार्टी भी इस हवा से बिजली पैदा करने की कोशिश कर रही है। अभी तक यहां भाजपा और कांग्रेस में ही सीधा मुकाबला होता रहा है। समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने भी बीच-बीच में जोर आजमाइश की है लेकिन 7० के दशक से श्री नरेन्द्र मोदी ने वहां अपनी पकड़ मजबूत बनायी तो सपा-बसपा ने कांग्रेस के ही वोटों में सेंध मारी की। इस बार केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने मुकाबले में शामिल होकर चुनावी संघर्ष को त्रिकोणीय बना दिया है। कांग्रेस पार्टी में पिछले महीने हुए राज्य सभा चुनाव के दौरान बिखराव हो गया और उसके एक दर्जन विधायक अलग हो चुके हैं लेकिन राज्य का एक बड़ा वोट बैंक समझे जाने वाले पटेल समुदाय के युवा नेता हार्दिक पटेल ने कांग्रेस का साथ देने का इरादा जताया है। गत 23 अक्टूबर को कांग्रेस नेता राहुल गांधी अहमदाबाद पहुंचे तो उनकी मुलाकात पाटीदार आंदोलन के नेता हार्दिक पटेल से हुई। ओबीसी एकता मंच के नेता अल्पेश ठाकोर और दलित नेता जिग्नेश मेवानी भी कांग्रेस से जुड़ गये हैं। इससे कंग्रेस मजबूती की स्थिति में दिखाई पडऩे लगी है। भाजपा के सामने एक समस्या यही है कि इस बार श्री नरेन्द्र मोदी गुजरात का प्रतिनिधित्व नहीं कर रहे हैं क्योंकि वे देश के प्रधानमंत्री बन चुके हैं लेकिन इस साल यूपी के विधान सभा चुनाव के बाद ही गुजरात यात्रा पर निकल चुके थे और तब से लगातार वे गुजरात के दौरे कर रहे हैं। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह राज्य की 182 विधानसभा सीटों में से 150 पर जीत हासिल करने का दावा कर रहे हैं।
अब देखना यही है कि गुजरात की चुनावी हवा से किसको कितनी एनर्जी मिलती है। राज्य सरकार ने हार्दिक पटेल पर चल रहे एक मुकदमें को वापस लेकर अपनी तरफ से पहल की थी लेकिन पाटीदार आंदोलन का गुस्सा ठण्डा नहीं पड़ा। हार्दिक पटेल भी इसीलिए कांग्रेस के समर्थन का दावा कर रहे है। एक समाचार चैनल को साक्षात्कार देते हुए हार्दिक पटेल ने गत दिनों कहा था कि कांग्रेस से मुझको कोई प्यार या लगाव नहीं है, मगर अहंकारी शक्तियों को पराजित करने के लिए उसका (कांग्रेस का ) सत्ता में आना जरूरी है। हार्दिक पटेल की इस बात से साफ नजर आता है कि वे गुजरात की भाजपा सरकार से नाराज हैं लेकिन कांग्रेस से भी खुश नहीं हैं। कांग्रेस को समर्थन देना उनकी मजबूरी है। इस बीच यदि भाजपा उनको संतुष्ट कर लेती है तो हार्दिक पटेल राज्य के चुनावी समीकरण को बदल सकते हैं। गुजरात का चुनाव भाजपा के लिए बहुत महत्वपूर्ण बन गया है क्योंकि इसके बाद लगभग एक दर्जन छोटे-बड़े राज्यों में भी चुनाव होने है और गुजरात में भाजपा की पराजय उन राज्यों में भी असर डालेगी। गुजरात की राजनीति में अहम स्थान बना चुकी छोटे-छोटे दलों की तिकड़ी उलटफेर करने की क्षमता रखती है। इस तिकड़ी में पाटीदार आंदोलन के नेता हार्दिक पटेल, दलित नेता जिग्नेश मेवानी और ओवीसी नेता अल्पेश ठाकोर शामिल हैं। दलित नेता जिग्नेश मेवानी को प्रभावित करने की कोशिश उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री सुश्री मायावती भी कर चुकी हैं। वे गुजरात के दौरे पर गयी थीं लेकिन जिग्नेश उनके प्रभाव में नहीं आये। गुजरात प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भारत सिंह सोलंकी ने इसलिए हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवानी और अल्पेश ठाकोर को कांग्रेस से जोडऩे का भरपूर प्रयास किया है। पाटीदार आंदोलन के नेता हार्दिक पटेल की उम्र अभी २४ साल की है, इसलिए वह चुनाव नहीं लड़ सकते लेकिन राज्य में जिस तरह पटेल समुदाय को आरक्षण के लिए उन्होंने आंदोलन चलाया, उससे न सिर्फ पटेल समुदाय बल्कि दूसरे समुदाय के युवा नेता भी उनसे प्रभावित हुए है।
कांग्रेस के गुजरात चुनाव प्रभारी राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत हैं। राजस्थान गुजरात से सटा राज्य है और गुजरात में बहुत लोग ऐसे हैं जो राजस्थान के रहने वाले हैं। श्री गहलोत ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भारत सिंह सोलंकी के साथ अल्पेश ठाकोर को राहुल गांधी से मिलवाया था। इस मुलाकात के बाद ही अल्पेश ठाकोर ने भाजपा के गुजरात मॉडल पर प्रहार किया था। उन्होंने कहा था कि राज्य में किसान कर्जदार है, युवा बेरोजगार हैं और राज्य में शराबबंदी लागू रहने के बावजूद हजारों लोगों की शराब पीने से मौत हो जाती है। अल्पेश ठाकोर बनास कांठा से चुनाव लडऩा चाहते हैं। अल्पेश ठाकोर कांग्रेस के साथ जुड़ गये हैं तो उत्तर गुजरात और सौराष्ट्र में ओबीसी बहुल सीटों पर कांग्रेस को सफलता मिलने की संभावना बढ़ गयी। गुजरात में कांग्रेस ने इस बार मजबूत मोर्चेबंदी की है। गत 18 अक्टूबर को ही कांग्रेस ने यह भी संकेत दिया था कि शरद पवार के नेतृत्व वाली राकांपा और राज्य से जद(यू) के एकमात्र विधायक छोटू भाई बसावा भी कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ेंगे। जद(यू) के विधायक छोटू भाई बसावा शरद यादव के गुटके बताये जाते है और ये उस समय चर्चा में आये थे जब राज्यसभा के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी अहमद पटेल कांग्रेस के ही बागी प्रत्याशी और भाजपा का समर्थन प्राप्त करने वाले बलवंत सिंह राजपूत को एक वोट से पराजित करने में सफल हुए थे। इस प्रकार मोर्चेबंदी करके भारत सिंह सोलंकी का कहना है कि विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी को 182 में से 125 पर विजयश्री हासिल हो सकती है। निश्चित है कि चुनाव पूर्व कांग्रेस का यह गठबंधन भाजपा पर भारी पड़ सकता है।
भाजपा ने भी गुजरात में चुनाव की तैयारी में कोई कसर बाकी नहीं रखी है। पटेलों के गढ़ सौराष्ट्र में सरदार सरोवर बांध का उद्घाटन करके और नर्मदा रक्षा यात्रा के समापन पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जनता को यह समझाने का भरपूर प्रयास किया था कि भले ही गुजरात की राजनीति में वे नहीं हैं लेकिन यहां के प्रति लगाव कम नहीं हुआ हैं गुजरात के कपड़ा व्यवसायी जीएसटी को लेकर नाराज थे और सबसे ज्यादा विरोध प्रदर्शन वहीं हुए। इसलिए श्री मोदी ने गुजरात में लोगों को जीएसटी के बारे में समझाने का कई बार प्रयास किया। पहले द्वारिका में व्यापारियों का सम्मेलन बुलाकर बताया कि जीएसटी से किसी व्यापारी को परेशान होने की जरूरत नहीं है। छोटे व्यापारियों को जीएसटी रिटर्न से छूट भी दी गयी है। गत 22 अक्टूबर को भी श्री मोदी गुजरात दौरे पर थे और दहेज में एक बड़ी रैली को उन्होंने संबोधित किया। श्री मोदी ने कहा कि देश की अर्थव्यवस्था बिल्कुल सही दिशा में चल रही है। नोट-बंदी ने कालेधन को बाहर निकाला। इससे आर्थिक स्वच्छता का अध्याय शुरू हुआ है। इसी प्रकार जीएसटी के बारे में श्री मोदी ने कहा कि इससे देश में नया बिजनेस कल्चर शुरू हुआ है। श्री मोदी ने कहा कि हमने अर्थ व्यवस्था के लिए कड़े फैसले किये है और वित्तीय स्थिरता को बनाये रखने के लिए आगे भी ऐसे ही कदम उठाते रहेंगे। श्री मोदी ने अर्थशास्त्रियों का भी हवाला दिया और कहा कि कई अर्थशास्त्रियों का मानना है कि भारत की अर्थव्यवस्था का आधार मजबूत है। इस बीच राजस्व सचिव हसमुख अधिया ने व्यापारियों को यह कहते हुए आश्वस्त किया है कि जीएसटी में कुछ बदलाव की जरूरत है अर्थात अभी और सुविधाएं मिलेंगी।
इस प्रकार गुजरात के चुनावी महासमर में सेनाएं आमने सामने आ गयी हैं। यह बात तो साफ है कि इस बार का विधान सभा चुनाव 2012 और 2007 से अलग प्रकार का है। आम आदमी पार्टी के नेता अरविन्द केजरीवाल ने भी अपने उम्मीदवारों की घोषणा करनी शुरू कर दी। पहले वे हार्दिक पटेल को अपने साथ जोडऩा चाहते थे लेकिन हार्दिक को कांग्रेस ने झटक लिया है। इसलिए केजरीवाल मुकाबले में तीसरे स्थान पर ही माने जा रहे हैं। त्रिकोणीय मुकाबले में गुजरात के सात करोड़ लोग किसे सत्ता सौंपेंगे, यह कहना अभी आसान नहीं है। (हिफी)