प्रतिनिधि मंडल में रिहाई मंच अध्यक्ष एडवोकेट मुहम्मद शुऐब, पूर्व आईजी एसआर दारापुरी, सलीम सिद्दीकी, सृजनयोगी आदियोग, अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी के पूर्व अध्यक्ष फैजुल हसन, अब्दुल हन्नान, आईएम इस्लाम, सैय्यद शफात अली, नजमुल हसन, शम्षुल हसन, सईद अहमद, वीरेन्द्र गुप्ता, नागेन्द्र यादव, राजीव यादव व पीड़ित परिवार के सदस्य भी शामिल थे। मुलाकात में रासुका में निरुद्ध मुन्ना की पत्नी मुनीरन और उनके बड़े भाई मदारु, नूर हसन की पत्नी अकीला बानो, असलम की पत्नी शन्नो और मकसूद की पत्नी सलीकुन निषां, अरशद के पिता मो0 शाहिद भी शामिल थे।
गौरतलब है कि 2 दिसम्बर 2017 को थाना नानपारा, बहराइच के गुरघुट्टा में हुई घटना को लेकर जमुना प्रसाद ने 35 नामजद और अज्ञात पर मुकदमा पंजीकृत करवाया था। बाद में पांच को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) के तहत निरुद्ध कर दिया गया। रासुका के तहत निरुद्ध व्यक्तियों के परिजनों से मुलाकात और घटना की पड़ताल में यह पाया गया कि गुरघुट्टा गांव में बारावफात के जुलूस के रास्ते को लेकर विवाद हुआ और दोनों समुदाय आमने-सामने आ गए।
प्रतिनिधिमंडल ने कहा कि उन्हें इस बात का संकेत मिला कि इस टकराव के पीछे प्रधानी का चुनाव और जमीन विवाद भी वजह बना। प्राप्त दस्तावेजों के मुताबिक नूर हसन पुत्र बब्बन को 19 फरवरी 2018, असलम पुत्र मुनव्वर को 22 फरवरी 2018, मकूसद रजा पुत्र खलील बेग को 29 जनवरी 2018 समेत मुन्ना और मो0 अरषद को भी रासुका के तहत निरुद्ध किया गया। 29 जनवरी 2018 को रासुका के तहत निरुद्ध किए गए मकसूद रजा की निरुद्ध अवधि को 24 अपै्रल 2018 को अंतिम रुप से परिवर्तित करते हुए छह माह के लिए बढ़ा दिया गया। ठीक इसी तरह मुन्ना, नूर हसन, असलम और मो0 अरशद की भी रासुका अवधि को छह माह तक बढ़ा दिया गया।
मांग पत्रक में कहा गया है कि 2 दिसंबर 2017 को हुए सांप्रदायिक तनाव के बाद दोनों पक्ष नरम हो गए थे जिससे मामला शांत हो गया। इसे मीडिया में आए प्रषासनिक बयानों में भी देखा जा सकता है।
प्रतिनिधि मंडल ने जोर देकर कहा कि इस घटना में जिन व्यक्तियों पर रासुका के तहत कार्रवाई की गई है उनसे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए कहीं से कोई खतरा नहीं है, बल्कि तकरीबन सात महीने से उनके जेल में रहने से उनके परिवार पर जरुर खतरा खड़ा हो गया है। मसलन रासुका में निरुद्ध रिक्शा चलाकर परिवार की गाड़ी चलाते रहे नूर हसन की पत्नी अकीला बानो अपने छोटे-छोटे बच्चों के साथ इंदिरा आवास योजना के तहत जिस मकान में रहती हैं उसमें दरवाजा तक नहीं लग सका है। इसी तरह असलम की पत्नी शन्नो हों या मकसूद की पत्नी सलीकुन निषां, उनकी आर्थिक स्थिति इतनी दयनीय है कि अपने पति से जेल में मिलने के लिए जाने का किराया भी नहीं जुटा पातीं। ऐसे में वो कानूनी लड़ाई लड़ें कि अपने छोटे-छोटे बच्चों के पेट भरने की लड़ाई। कमोवेश इस पूरे क्षेत्र में लगभग सभी की यही हालत है, चाहे वह हिंदू हो या मुसलमान। सबके सब मेहनत मजदूरी करके अपना जीवन चलाते रहे हैं। ये लोग गुमटी, रिक्षा खींचकर, ईंट भट्टे पर मेहनत-मजदूरी कर किसी तरह अपने परिवार का जीवन यापन करते थे। इनकी रिहाई से समाज में भय या नफरत फैलने का कहीं से कोई खतरा नहीं है।
जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक से न्यायहित में मांग की गई कि मुन्ना, नूर हसन, असलम, मकसूद रजा, मो0 अरशद पर लगा रासुका खारिज किए जाने की सिफारिश की जाए। प्रतिनिधिमंडल ने पिछले दिनों गुरघुट्टा के ईदगाह में सूअर बांधे जाने जैसी घटना को लेकर कहा कि इलाके में कुछ शरारती तत्व सांप्रदायिक तनाव पैदा करने की कोशिश में लगे हैं।