जिम्मी भारद्वाज
आजकल की भागदौड़ वाली जिंदगी, असंतुलित जीवनशैली और कुछ शारीरिक कमी का माता-पिता बनने को लेकर प्रतिकूल असर हो रहा है। कई दंपत्ति संतान सुख से दूर हैं। ऐसे में मां या पिता बनने के लिए उनके पास आईवीएफ यानी इन विट्रो फर्टिलाइजेशन का विकल्प होता है। आजकल आईवीएफ की सफलता की दर काफी तेजी से बढ़ी है, लेकिन कई बार देखा जाता है कि इसकी संभावना कई लोगों में कम होती है या काफी परेशानी आती है। विशेषज्ञों के मुताबिक कभी-कभी इसके सफल न होने की कई वजहें हैं जिस पर आईवीएफ की सफलता निर्भर करती हैं। इसलिए अगर आप आईवीएफ के लिए आगे बढ़ना चाह रहे हैं तो उससे पहले कुछ खास बातों का ध्यान रखना चाहिए। इसमें पहले की प्रेगनेंसी का इतिहास, आपकी उम्र आदि काफी महत्वपूर्ण हैं। आइए इन्हीं कारणों पर यहां हम चर्चा करते हैं।
क्या आपकी उम्र 30 साल या ज्यादा है
यहां आपको यह समझना होगा कि आईवीएफ साइकल की सफलता में उम्र महत्वपूर्ण है। जानकारों के मुताबिक आपके अंडे या वीर्य (स्पर्म) की गुणवत्ता आपकी उम्र पर निर्भर करती है। वैसी महिलाएं जिनकी उम्र 35 साल से कम है, उनमें आईवीएफ की सफलता की संभावना अधिक होती है। जैसे-जैसे आपकी उम्र बढ़ती जाती है, आपके अंडों की गुणवत्ता और मात्रा दोनों घटती जाती हैं। यहां तक कि जीवित जन्मों में 35 साल से कम की महिलाओं में आईवीएफ की सफलता की दर 40 प्रतिशत है।
पहले की प्रेगनेंसी का इतिहास
जब आप आईवीएफ साइकल के लिए जा रहे हैं तो डॉक्टर से पहले की प्रेगनेंसी से जुड़ी सारी बातें अवश्य साझा करें। आईवीएफ की सफलता में उपर्युक्त बातें काफी मायने रखती हैं और अगर वह आपके पहले साथी से हो। बार-बार होने वाले गर्भपात या एक अलग साथी जैसे कारक आईवीएफ सफलता दर कम कर सकते हैं।
प्रजनन समस्यों की समझ
कई बार देखा गया है कि पुरुषों में प्रजनन समस्या की वजह से आईवीएफ की सफलता कम हो जाती है। इनमें गर्भाशय संबंधी असामान्यताएं, डायथाइलस्टिलबेस्
भ्रूण की गुणवत्ता और डब्ल्यूओआई की जांच
भ्रूण की गुणवत्ता और विंडो ऑफ इम्प्लांटेशन (डब्ल्यूओआई) की गुणवत्ता की जांच पहले ही हो जानी चाहिए। अगर इसमें किसी तरह की अक्षमता है और इसे गर्भाशय में गलत समय में डाला जाता है तो दोनों ही आईवीएफ की असफलता की वजह होंगे। कहा जाता है कि रोकथाम इलाज से बेहतर है। इसलिए, सहायता युक्त प्रजनन इलाज शुरू करने से पहले आईजेनोमिक्स के द्वारा एंडोमेट्रियल रिसेप्टीविटी विश्लेषण (ईआरए) करा लेना चाहिए। इससे यह पता चल जाता है कि मरीज को विंडो ऑफ इम्प्लांटेशन (डब्ल्यूओआई) की आवश्यकता है या नहीं।