दुनिया के मंच पर उत्तर कोरिया के जिद्दी राष्ट्रपति किमजोंग उन की खुराफातों ने वर्ष 2017 को आशंकाओं से घेर दिया था। किम जोंग ने दक्षिण कोरिया और जापान को धमकाने का जो सिलसिला शुरू किया था, वह वर्ष के अंत में अमेरिका को धमकी देने पर खत्म हुआ। किम जोंग उत्तर कोरिया के सर्वोच्च नेता हैं। उन्होंने सितम्बर 2011 में स्वयं को तानाशाह नेता बनाकर इसकी सार्वजनिक घोषणा की थी। सबसे पहले वह अपने देश में ही तानाशाही रवैया दिखाते रहे। सेना के कई सीनियर अफसरों को बर्खास्त किया जिसमें उनके चाचा जंग साॅग थीक भी शामिल थे। अपनी दहशत पैदा करने के लिए किम जोंग किसी एक व्यक्ति के गुनाह की सजा उसके पूरे परिवार को देने लगे। यही रवैया अन्तर राष्ट्रीय जगत के प्रति भी रहा और 2017 में उन्होंने जिस तरह से परमाणु बम के परीक्षण और मिसाइलों का प्रक्षेपण किया, उससे यही लग रहा था कि किसी भी समय कोरिया प्रायद्वीप में परमाणु युद्ध छिड़ सकता है। उत्तर कोरिया ने अमेरिका को सीधे-सीधे हमले की धमकी दी तो डोनाल्ड ट्रम्प ने भी उसे जवाब दिया कि ऐसी भूल करने पर उत्तर कोरिया का नामो निशान मिट सकता है। किम जोंग ने फरवरी 2017 में एक लांग रेंज मिसाइल का परीक्षण किया था। इसके बाद सितम्बर 2017 में सबसे खतरनाक हाइड्रोजन बम का परीक्षण किया।
बीता वर्ष विश्व में राजनीतिक बदलाव के लिए भी याद किया जाएगा। अमेरिका, फ्रांस, जापान और चीन में इसी साल चुनाव हुए। अमेरिका में जहां डोनाल्ड ट्रम्प ने बराकओबामा की पार्टी को सत्ता से बेदखल किया, वहीं जापान और चीन में सत्तारूढ़ नेताओं ने फिर से जनता का विश्वास हासिल कर लिया। जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने भ्रष्टाचार के आरोप लगने के कारण समय से पूर्व चुनाव कराये। हालांकि उनकी पार्टी नहीं चाहती थी कि चुनाव हों लेकिन शिंजो आबे ने मध्यावधि चुनाव कराकर ऊपरी सदन हाउस आफ काउंसिल में भी बहुमत प्राप्त कर लिया। दर असल शिंजो आबे ने अपने देश के शांतिवादी संविधान में संशोधन का इरादा जताया है। इसके चलते जापान अब अपनी सेना को दूसरे देशों के साथ युद्धाभ्यास में भेज सकेगा। वर्तमान संविधान दूसरे देशों के साथ युद्धाभ्यास की अनुमति नहीं देता है। यह संशोधन संभवतः अगले साल किया जाएगा। जापान ने इस साल भारत की यात्रा करके बुलेट ट्रेन चलाने में बहुत कम व्याज पर कर्ज दिया और भारत के साथ परमाणु समझौता किया।
अमेरिका से जापान तक हुए चुनावों में मतदाताओं ने राष्ट्रवादी पार्टियों का साथ दिया। इसके बावजूद राष्ट्राध्यक्षों ने मतदाताओं के इस सम्मान की अनदेखी कर दी और उनकी लोकप्रियता कम हुई। अमेरिका के लोगों ने हिलेरी क्ंिलटन की जगह डोनाल्ड ट्रम्प को सत्ता सौंपी लेकिन राष्ट्रपति पद की शपथ लेते ही वह ऐसे फैसले करने लगे जिससे जनता नाराज हो गयी। सबसे पहले महिलाओं ने उनके खिलाफ प्रदर्शन किये। राष्ट्रपति का पद लेने के सिर्फ 8 दिन बाद ही उनकी लोक प्रियता में पचास फीसदी कमी बतायी गयी थी। इसी तरह ब्रिटेन में 2017 बहुत ही उथल-पुथल वाला वर्ष रहा है। यूरोपीय संघ से बाहर निकलने के लिए ब्रिटेन की जनता ने जिस तरह उत्साह दिखाया था लेकिन प्रधानमंत्री थेरेसा मे ने मध्यावधि चुनाव कराकर यही पाया कि उनकी लोकप्रियता कम हो गयी है। दर असल यूरोपीय संघ से ब्रिटेन को निकालने का जो उत्साह था, वह इस आशंका से कम पड़ गया कि यूरोपीय संघ के तमाम सदस्य देशों के बीच उत्पादों की आवाजाही किस तरह रहेगी। इसकी ब्रिटेन को भारी कीमत भी चुकानी पड़ रही है क्यों कि यूरोपीय संघ से बाहर होने के लिए ब्रिटेन को 50 अरब पौण्ड चुकाने पड़ेंगे। टेरेसा मे को भी मध्यावधि चुनाव में 34 फीसद समर्थन ही प्राप्त हो सका।
चीन में शी जिनपिंग ने अपनी तानाशाही जरूर मजबूत की है। उन्हें माओत्से तुंग की तरह ही लगभग सभी अधिकार मिल गये है। दक्षिण एशिया का यह देश अपनी मनमानी आगे भी कर सकता है, यह चिंता 2018 में बनी रहेगी। चीन ने तिब्बत को तो एक तरह से झुका ही लिया और वहां के लोग कहने लगे कि तिब्बत पूरी तरह से आजादी नहीं बल्कि स्वायत्तता चाहता है। दक्षिण चीन सागर में चीन की गतिविधियां बढ़ने के साथ भूटान और भारत की सीमा पर स्थित डोकलाम में भी चीन की नजर अब तक गड़ी हुई है। हालांकि 2017 में भारतीय और चीनी सैनिक जिस तरह आमने-सामने खड़े हो गये थे, उससे चिंतनीय स्थिति पैदा हो गयी थी जो साल बीतते-बीतते सामान्य हो गयी है। वर्ष 2017 में सच्चाई नकारने का रवैया पाकिस्तान ने फिर से दिखाया है। हालांकि उसके लिए यह वर्ष कूटनीतिक विफलता का रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विश्व के मंचों पर पाकिस्तान की आतंकवादी छबि का जिस तरह से प्रचार किया और लोगों को सच्चाई बतायी, उससे विश्व समुदाय में पाकिस्तान पूरी तरह से अलग-थलग पड़ गया। प्रधानमंत्री पद से नवाज शरीफ को पनामा पेपर लीक्स के मामले में हटाया गया। उनके विश्वासपात्र अब्दुल खाकान अब्बासी प्रधानमंत्री बने। नवाज की पत्नी गंभीर बीमारी के चलते अमेरिका में इलाज करा रही थीं लेकिन नवाज शरीफ की सीट पर उनका चुना जाना यही बताता है कि 2017 में पाकिस्तान की जनता का नवाज शरीफ पर ही भरोसा है। सबसे ज्यादा चिंताजनक बात यह रही है कि भारत के मुंबई में आतंकी हमले का सूत्रधार हाफिज सईद नयी राजनीतिक पार्टी बनाने में सफल हुआ। उसका साथ पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ दे रहे हैं। इन दोनों का विरोध भी वहां हो रहा हे। नवाज शरीफ स्वयं कहते हैं कि अगर उन्होंने परवेज मुशर्रफ के खिलाफ राष्ट्रद्रोह का मुकदमा न चलाया होता तो आज उन्हें पीएम की कुर्सी नहीं छोड़नी पड़ती। इस प्रकार पाकिस्तान में अगले साल के लिए आशंकाएं ज्यादा हैं और उम्मीदें कम दिखाई पड़ती हैं।
पाकिस्तान के अलावा हमारे पड़ोसी देशों में बांग्लादेश और श्रीलंका में बीते वर्ष कोई उथल-पुथल नहीं हुआ और भारत के साथ उनके संबंधों में और बेहतरी हुई है। सबसे निकटवर्ती देश नेपाल जरूर राजनीतिक उथल-पुथल से भरा रहा। सरकार बदलने से कुछ गलत फहमियां भी पैदा हुई थीं लेकिन वे ज्यादा दिन चल नहीं पायीं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने नेपाल की यात्रा करके और वहां के नेताओं से मुलाकात कर स्थिति को सामान्य किया। नेपाल में वर्ष के आखिरी महीने में चुनाव हुए जिन में नेपाली कांग्रेस पार्टी पराजित हो गयी और कम्युनिस्टों के नेतृत्व वाले गठबंधन को सफलता मिली है। नेपाली कांग्रेस के साथ ही दो मधेशी पार्टियों- फेडरल सोशलिस्ट पार्टी नेपाल और राष्ट्रीय जनता पार्टी को इतने सदस्य नहीं मिल पाये कि कोई बदलाव कर सकें। वर्तमान चुनाव शेर बहादुर देउबा के नेतृत्व में हुए हैं और पूर्व प्रधानमंत्री ओपी शर्मा ओली के ही पुनः प्रधानमंत्री बनने की संभावना है।
इस प्रकार बीता वर्ष 2017 दुनिया की राजनीति के लिए एक सबक भी दे गया है। राष्ट्राध्यक्ष अगर जनता की भावना का सम्मान नहीं करेंगे तो उन्हें जनता ठुकरा देगी तथा तानाशाहों पर अगर लगाम नहीं लगायी गयी तो युद्ध जैसी स्थिति भी आ सकती है। (हिफी)
