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हिमाचल प्रदेश में भाजपा को मुख्यमंत्री बनाने के लिए किसी ऐसे नेता की तनाश थी जो किसी गुटबंदी में न शामिल हो। राज्य के विधानसभा चुनाव के समय ही यह बात खुलकर सामने आ गयी थी कि कांग्रेस की दुबारा सरकार नहीं बन पाएगी क्योंकि तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह और उनका परिवार भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों में घिरा था। भाजपा ने चुनाव प्रचार में यह बात कही थी कि राज्य में जमानती सरकार चल रही है। भाजपा नेताओं का इशारा वीरभद्र सिंह, उनकी पत्नी और परिवार के सदस्यों की तरफ था जो जमानत पर हैं। दूसरी तरफ भाजपा में भी तीन नेताओं का गुट साफ नजर आ रहा था। एक गुट था केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा का और दूसरा पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल एवं शांता कुमार का। हिमाचल के भाजपा नेता कुछ भी कहें लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का चेहरा ही हिमाचल में जपा की सरकार बनाने में काम आया है। पूर्व मुख्यमंत्री और चुनाव के समय मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार प्रेम कुमार धूमल चुनाव हार गये। इससे भाजपा की बदनामी भी हुई। इसलिए श्री धूमल को मुख्यमंत्री बनाना तो जनादेश का अपमान करना होता। इसी प्रकार जेपी नड्डा और शांता कुमार को मुख्यमंत्री बनाकर राज्य में गुटबंदी और पक्की हो जाती। इसलिए सर्वमान्य नेता जयराम ठाकुर को हिमाचल प्रदेश की कमान सौंपी गयी है।
पिछले महीने 9 नवम्बर को हिमाचल विधानसभा के लिए मतदान हुआ था। हिमाचल और गुजरात दोनों के नतीजे 16 दिसम्बर को घोषित हुए तो हिमाचल में शुरू से भाजपा बढ़त बनाकर चल रही थी और भाजपा ने राज्य विधानसभा की 68 सीटों में 44 पर जीत दर्ज कर दो-तिहाई बहुमत भी हासिल कर लिया। कांग्रेस को सिर्फ 21 सीटों पर संतोष करना पड़ा। मतों के प्रतिशत को देखें तो भाजपा को उतने मत नहीं मिल पाये जितने 2014 के लोकसभा चुनाव में मिले थे। लोकसभा चुनाव में भाजपा को हिमाचल प्रदेश की 53.8 फीसद मतदान करने वाली जनता का समर्थन मिला था जबकि 2017 के विधानसभा चुनाव में 48.8 फीसद मत मिले। कांग्रेस का मत प्रतिशत लगभग उतना ही रहा जितना उसे लोकसभा चुनाव में मिला था। कांग्रेस को उस समय 41.1 फीसद मत मिले थे और इस बार विधानसभा चुनाव में 41.8 फीसद मत मिले हैं। इस प्रकार देखें तो भाजपा को गुटबंदी के चलते कुछ नुकसान भी उठाना पड़ा है और प्रेम कुमार धूमल का पराजित होना भाजपा के लिए शर्म की बात रही। इसके बावजूद प्रेम कुमार धूमल मुख्यमंत्री बनना चाहते थे और उनके समर्थकों ने भरपूर दबाव भी बनाया लेकिन भाजपा के लिए श्री धूमल को मुख्यमंत्री की कुर्सी देना न तो राजनीतिक दृष्टि से अच्छा था और न नैतिक दृष्टि से। इस प्रकार जयराम ठाकुर को मुख्यमंत्री बनाया गया।
मुख्यमंत्री पद के दूसरे सशक्त उम्मीदवार जेपी नड्डा थे। वे केन्द्र में स्वास्थ्य मंत्री हैं। इस प्रकार पहले से ही उनको अच्छा पद मिला हुआ है। श्री नड्डा ने हिमाचल प्रदेश में अपनी भूमिका मजबूत की थी जब उन्होंने राज्य में एम्स की स्थापना के लिए प्रयास किया। चुनाव से पहले ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एम्स का शिलान्यास भी कर दिया था। इसके बाद चुनाव प्रचार में श्री नड्डा ने बहुत समय दिया था। चुनाव के बाद जब मुख्यमंत्री के लिए नाम की चर्चा हुई तो श्री नड्डा का नाम भी सामने आया लेकिन राज्य के विधायक अपने बीच से ही मुख्यमंत्री चाहते थे, इसलिए जयराम ठाकुर को विधायक दल की बैठकमें नेता चुना गया। जयराम ठाकुर के चयन के पीछे राज्य में जाति का समीकरण भी देखा गया। हिमाचल में ठाकुर समुदाय की संख्या ज्यादा है। इसलिए श्री नड्डा की जगह जयराम ठाकुर का पलड़ा भारी हो गया। विधानमंडल दल की बैठक में पूर्व मुख्यमंत्री पे्रम कुमार धूमल ने जयराम ठाकुर को विधायक दल का नेता चुनने का प्रस्ताव रखा। इसके बाद दो अन्य उम्मीदवार बताये जाने वाले शांता कुमार और जेपी नड्डा ने प्रस्ताव का समर्थन किया। किसी और के नाम का प्रस्ताव ही नहीं आया तो जयराम ठाकुर को विधायक दल के नेता के रूप में चयनित किया गया। दरअसल, यह औपचारिकता निभाई जाती है और जयराम ठाकुर को मुख्यमंत्री बनाने का निर्णय ऊपर से हो गया था, इसलिए उसमें कोई बाधा पड़नी ही नहीं थी।
विधायक दल का नेता चुने जाने के बाद जयराम ठाकुर ने सभी को साथ लेकर सरकार चलाने का वादा किया। उन्होंने वरिष्ठ नेताओं के साथ राज्यपाल आचार्य देवव्रत से मुलाकात की और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को धन्यवाद दिया। श्री ठाकुर ने कहा कि जिस उम्मीद से जनता ने हमें जनादेश दिया है और राष्ट्रीय नेतृत्व ने हमसे जो उम्मीद रखी है, हम उसे पूरा करने की कोशिश करेंगे। श्री जयराम ठाकुर अनुभवी राजनीतिक हैं। उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल का आभार प्रकट करने के लिए कई बार उनके नाम का उल्लेख किया और श्री धूमल के पैर छूकर उनका आशीर्वाद भी लिया। श्री ठाकुर जानते थे कि श्री धूमल बहुत खुश नहीं हैं, इसलिए उन्हांेने प्रेम कुमार धूमल का भरपूर सम्मान किया।
श्री जयराम ठाकुर ने 1984 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से छात्र राजनीति शुरू की थी। वह सबसे पहले नेतृत्व के रूप में कक्षा प्रतिनिधि बने थे। यह बहुत छोटा पद था लेकिन उन्होंने संघ का प्रचार जिस कुशलता से किया, उसके चलते 1986 में उन्हों अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की प्रदेश इकाई में संयुक्त सचिव का पद सौंप दिया गया। राज्य के बाहर भी एबीवीपी ने उन्हें महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी और 1989 से 1993 तक जम्मू-कश्मीर इकाई में संगठन सचिव रहकर विद्यार्थी परिषद और संघ के संगठन को मजबूती प्रदान की। संगठन को मजबूत करने की क्षमता देखकर भाजपा ने अपनी युवा शाखा अर्थात् भारतीय जनता पार्टी युवा मोर्चा में उन्हें भेजा। श्री जयराम ठाकुर 1993 से 1995 तक युवा मोर्चे के प्रदेश सचिव और प्रदेश अध्यक्ष भी रहे हैं। इतना अनुभव अर्जित करने के बाद जयराम ठाकुर को 1998 में पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़वाया गया और जनता ने उन्हें विधायक चुना। इसके बाद सन् 2000 से 2003 तक मंडी जिला भाजपा अध्यक्ष रहे। यह वह स्थान है जो कांग्रेस के पंडित सुखराम शर्मा का गढ़ माना जाता है। अब सुखराम शर्मा के बेटे अनिल शर्मा भाजपा में शामिल हो गये हैं और मंडी विधानसभा का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।
संगठन और विधानसभा दोनों का पर्याप्त अनुभव रखने वाले जयराम ठाकुर हिमाचल के मुख्यमंत्री बने हैं। वह 2013 में विधायक रहे थे। वह 2003 से 2005 तक भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष और 2006 में प्रदेश अध्यक्ष बने थे। उन्हें 2007 में विधायक बनने पर धूमल की सरकार में पंचायतीराज मंत्री बनाया गया था। इसके बाद 2012 में जब भाजपा सरकार नहीं बना पायी, तब भी जयराम ठाकुर सिराज विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने गये थे। इस प्रकार जनता के बीच उनकी लोकप्रियता है, संगठन को मजबूत रखने की क्षमता है और विधानसभा का भरपूर अनुभव भी है। इससे भाजपा की सरकार और संगठन दोनों में वह बेहतर तालमेल बनाए रखेंगे। यही सोचकर भाजपा नेतृत्व ने उनका चयन किया है। (हिफी)
