भारतीय जनता पार्टी ने पूर्वोत्तर भारत में विजय पताका फहराई। उससे पहले गुजरात को बचाया और हिमाचल को कांग्रेस से छीन लिया। इस माहौल को भाजपा के प्रचण्ड रूप में देखा जा रहा था इसलिए मध्य प्रदेश और राजस्थान के उपचुनावों में पराजय का कोई गम भाजपाइयों में नहीं था। इसी बीच उत्तर प्रदेश के दो महत्वपूर्ण लोकसभा उपचुनाव आ गये। इनमें एक था मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के चुनाव क्षेत्र गोरखपुर का और दूसरा डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के क्षेत्र फूलपुर का। प्रदेश के दो बड़े विपक्षी दल सपा और बसपा ने ठीक चुनाव से पहले दोस्ती कर ली और 14 मार्च को जब नतीजे घोषित हुए तब गोरखपुर से सपा प्रत्याशी प्रवीण निषाद ने भाजपा प्रत्याशी उपेन्द्र शुक्ल को 21881 वोटों से पराजित कर दिया, जबकि फूलपुर में सपा प्रत्याशी नागेन्द्र पटेल ने भाजपा प्रत्याशी कौशलेन्द्र प्रताप को 59460 मतों से शिकस्त दी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सधी प्रतिक्रिया थी कि हम ओवर कांफिडेन्स (अतिविश्वास) के कारण हारे हैं, हालांकि विस्तृत रूप से इसकी समीक्षा बाद में होगी।
मुख्यमंत्री श्री योगी की यह प्रतिक्रिया उनके योग की तरह ही गंभीर है यह अतिविश्वास अकारण था या सकारण, इस पर भी विचार करना होगा। भाजपा ने 2014 के चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश में 2017 के चुनाव में संघ और पार्टी कार्यकर्ताओं का जिस तरह से मजबूत जाल बनाया था, क्या इस बार के उपचुनाव में ऐसी ही तैयारी हुई? इसका जवाब तो भाजपा के रणनीतिकार ही दे सकते हैं। कुछ लोगों का मानना है कि जनता और भाजपा कार्यकर्ताओं की उपेक्षा भाजपा के लिए उपचुनावों में भारी पड़ी है लेकिन श्री योगी इसमें भाजपा के अतिविश्वास की बात कैसे कह रहे हैं? यह अतिविश्वास किसको था? श्री योगी को या भाजपा को? निश्चित रूप से श्री योगी को था जो प्रदेश के मुख्यमंत्री का दायित्व संभालने के बाद से गुजरात में अपना प्रभाव दिखाने गये और जिन क्षेत्रों में उन्होंने प्रचार किया, वहां भाजपा को अच्छी सफलता भी मिली। इसके बाद श्री योगी त्रिपुरा में चुनाव प्रचार करने गये जहां गोरक्षपीठ के संस्थापक महंत गोरखनाथ के अनुयायियों की बड़ी संख्या है। भाजपा ने त्रिपुरा में भी प्रचण्ड बहुमत से सरकार बनायी लेकिन उत्तर प्रदेश के जिस पूर्वांचल में कहा जाता था कि पूर्वांचल में रहना है तो योगी-योगी कहना है, वहां भाजपा का प्रत्याशी हार गया। मतदान का 37 फीसद होना खतरे की घंटी था। यह मतदान का प्रतिशत भाजपा और संघ के कार्यकर्ता ही बढ़वाते रहे हैं।
कुछ लोग कहते हैं कि उत्तर प्रदेश की जनता में इस समय सत्ता पक्ष के र्पति घोर नाराजगी है। वह अपने को बुरी तरह उपेक्षित महसूस कर रही है। ऐसी ही नाराजगी भाजपा-कार्यकर्ताओं में भी है। सपा एवं बसपा के शासनकाल की लम्बी यंत्रणा भुगतने के बाद जब उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने और उन्होंने शुरू में अपनी सरकार का जो जबरदस्त इकबाल स्थापित किया, उससे जनता में सुख की लहर व्याप्त थी। उसे लग रहा था कि योगी आदित्यनाथ के रूप में उसे सचमुच मसीहा मिल गया है। प्रदेश की जनता योगी आदित्यनाथ में विराट व्यक्तित्व के धनी नरेंद्र मोदी की छवि देखने लगी थी। लेकिन योगी आदित्यनाथ से चूक यह हुई कि वह अपने उस इकबाल को उसी तरह कायम नहीं रख सके। नरेंद्र मोदी के साथ उनके लिए बहुत लाभदायक बात यह थी कि उन्हें नृपेन्र्द मिश्र एवं अजित डोभाल-जैसे दो ऐसे सहयोगी मिल गए, जिनसे उन्हें बहुत मदद मिली। चूंकि भाजपा ने लोकसभा का पूरा चुनाव नरेंद्र मोदी के बल पर ही जीता था, इसलिए नरेंर्द मोदी को चुनौती दे सकने वाले सारे तत्व किनारे हो गए थे।
उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ को अपनी योग्यता एवं कलाकौशल के बल पर ही अपने इकबाल की छवि कायम रखनी थी। किन्तु उन्होंने अपेक्षित सावधानी नहीं बरती। सपा-बसपा के शासनकाल में घोटालों एवं भ्रष्टाचार द्वारा सैकड़ों व हजारों करोड़ धन बटोरने वाले अफसर पहले की तरह महत्वपूर्ण पदों पर काबिज रहे और मलाई काटते रहे। जनता आशा कर रही थी कि सभी भ्रष्ट अफसर एवं कर्मचारी जेल भेजे जाएंगे तथा उनकी अवैध रूप से अर्जित की हुई समस्त सम्पत्ति जब्त कर ली जाएगी। अब तक के शासनकाल में ईमानदार अफसर एवं कर्मचारी अपनी उपेक्षा के आदी हो चुके थे और किनारे पड़े हुए थे। आशा की जा रही थी कि अब उन्हें महत्व दिया जाएगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसी र्पकार सपा-बसपा के शासनकाल में जिन भ्रष्ट पत्रकारों व अन्य लोगों ने जमकर चांदी काटी, वे योगी के शासनकाल में भी हर जगह महत्व पाते रहे तथा ईमानदार एवं वास्तविक पत्रकारों व अन्य लोगों की पूर्ववत उपेक्षा होती रही। जनता भ्रष्टाचार के विरुद्ध मुख्यमंत्री योगी से जिस जबरदस्त तलवारबाजी की अपेक्षा कर रही थी, वह उसे नहीं मिली। हमारे यहां भ्रष्टाचार ऊपर से नीचे तक चप्पे-चप्पे में जिस गहराई से घुसा हुआ है, उससे जनता भीषण रूप से त्रस्त है। लेकिन योगी ने अपनी एक वर्ष की अवधि में जनता को उस यंत्रणा से मुक्त करने का सुअवसर गंवा दिया।
इन्हीं लोगों के अनुसार जनता में फैले हुए असंतोष का दूसरा सबसे बड़ा कारण यह है कि चाहे भाजपा के सत्तावाले गलियारे में हो अथवा संगठन के क्षेत्र में, सभी जगह जनता की न तो समुचित सुनवाई होती है और न उसकी समस्याओं का कारगर हल निकाला जाता है। भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश मुख्यालय में बड़े बड़ों की भीड़ तो दिखाई देती है, किन्तु आम कार्यकर्ता वहां अपने को पूरी तरह उपेक्षित महसूस करता है। सरकार एवं संगठन, दोनों स्तरों पर निरंतर अपनी उपेक्षा होते रहने से कार्यकर्ता अंत में घर बैठ जाता है तथा न तो स्वयं वोट देने निकलता है और न अन्य मतदाताओं को घर से निकालकर मतदान-केंद्रों तक ले जाता है। जनता की समस्याओं के समाधान के लिए प्रदेश सरकार ने जो पोर्टल बना रखे हैं, वे दिखावटी सिद्ध हो रहे हैं। लोग कहते हैं कि उन्होंने जिस संदर्भ में शिकायत की, वहां शिकायत भेजने एवं उसका समाधान करने के बजाय वह शिकायत ऐसी जगह भेज दी जाती, जिसका उससे कोई सम्बंध नहीं था। जनहित के कई कार्य कराने के लिए कोई कार्रवाई नहीं हुई। जनता की भांति पार्टी के आम कार्यकर्ता भी अपनी समस्याओं के समाधान के लिए इधर-उधर भटकने को मजबूर होते रहे, किन्तु उन्हें निराशा ही हाथ लगी। हाल ही में भाजपा के एक बड़े नेता ने कहा था कि गलत बात नहीं मानी जानी चाहिए, लेकिन सही बात की सुनवाई अवश्यमेव होनी चाहिए तथा इसमें जो भी अफसर या कर्मचारी गफलत करे, उसे कठोर दंड दिया जाना चाहिए।
यह भी माना जा रहा है कि श्री योगी जिस तरीके से सरकार चलाना चाहते थे उस तरह से सरकार नहीं चला पाये। इससे एक बड़ी समस्या यह खड़ी हुई कि गलत काम करने वाले को दंड का कोई भय नहीं रह गया है। सरकार जो भी फैसले करती है, उनका कारगर ढंग से पालन नहीं होता है। उदाहरणार्थ, पूरा प्रदेश अतिक्रमणों एवं अवैध निर्माणों की समस्या से बुरी तरह त्रस्त है। नित्य सड़कों पर भीषण जाम लगा रहता है, जिनमें फंसकर लोगों का कीमती समय तो नष्ट होता ही है, बीमारों की हालत बहुत बिगड़ जाती है। लोगों की जानें भी चली जाती हैं। लेकिन इस गम्भीर समस्या की ओर प्रशासन आंख बंद किए रहता है। जाम से मुक्ति दिलाने के बजाय हमारी पुलिस लोगों के हेलमेट देखने में जुट जाती है। आज भी तारों को बांधकर पतंगें उड़ाई जाती हैं, जिससे बिजली तो गायब होती ही है, लोग गंभीररूप से घायल भी हो जाते हैं।
बहरहाल, भाजपा का केन्द्रीय नेतृत्व इस बात की समीक्षा करेगा कि गोरखपुर और फूलपुर में भाजपा को असफलता क्यों मिली? विशेष रूप से भाजपा की हार सीधे मुख्यमंत्री योगी की प्रतिष्ठा से जुड़ी है और श्री योगी अतिविश्वास की जो बात कह रहे हैं, वह जानबूझकर या अनजाने की लापरवाही ही है। संघ की कार्यप्रणाली में इस प्रकार की लापरवाही नहीं होती है, तो यह कैसे हो गयी? (हिफी)
