वासंतिक नवरात्र का पांचवा दिन स्कन्दमाता का माना गया है। आदिशक्ति माँ पार्वती का ही यह भी एक स्वरूप है और बड़े पुत्र कार्तिकेय को जब गोद में उठाया तो उनका नाम स्कन्द माता पड़ा। माता के इस स्वरूप की उपासना बहुत ही सात्विक मन से की जाती है, इसलिए उपासना से पूर्व दुर्गा सप्तशती में दिये गये कवच का जाप अवश्य कर लेना चाहिए। देवी का कवच हर प्रकार की विघ्न-बाधा से रक्षा करता है। विधि-विधान से देवी का कवच पढ़कर या सुनकर कोई भी कार्य करें तो कार्य की सिद्धि अवश्य होगी।
सर्व मंगल मंगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणी नमोऽस्तुते।।
सृष्टिकर्ता ब्रह्मा से मार्कण्डेय ऋषि ने एक बार पूछा कि पितामह! इस युग में परम गोपनीय तथा मनुष्यों की रक्षा करने वाला कौन सा साधन है, जो अब तक गोपनीय रहा। कृपा करके उस साधन को हमें बतायें। ब्रह्मा जी ने कहा पुत्र! मनुष्यों की सब प्रकार से रक्षा करने वाला तो देवी का कवच ही है जो सम्पूर्ण प्राणियों की रक्षा करने वाला है। ब्रह्मा जी ने बताया कि देवी के नौ रूप होते हैं जिन्हें नौ दुर्गा कहा जाता है। इनके नाम भी ब्रह्मा जी ने बताये। सर्वप्रथम रूप शैलपुत्री का है। इनका दूसरा नाम पार्वती भी है पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण पार्वती नाम पड़ा। पार्वती आदि देव भगवान शंकर की अद्र्धांगिनी हैं और उनका पूर्व जन्म सती के रूप में हुआ था। सती प्रजापति दक्ष की कन्या थीं। सती का भगवान शंकर से विवाह हुआ लेकिन दक्ष प्रजापति की भगवान शंकर से किसी बात पर अनबन हो गयी। इससे दक्ष प्रजापति और भगवान शंकर के संबंध अच्छे नहीं रह गये थे। उसी समय की बात है जब भगवन राम ने पृथ्वी पर अवतार लिया। महान अहंकारी रावण का वध करने के लिए ही वह वनवास कर रहे थे। वन में रावण ने अपने मामा मारीच को मायावी हिरण बनाकर सीता का अपहरण किया। राम और लक्ष्मण सीता को खोजने की नरलीला कर रहे थे। भगवान शंकर ने प्रभु राम को लीला करते देखा तो दूर से ही प्रणाम किया। सती को यह समझ में नहीं आया कि भगवान शंकर ने सामान्य से मनुष्यों को प्रणाम क्यों किया। भगवान शंकर ने सती को बहुत समझाया कि ये मेरे आराध्य राम हैं लेकिन सती ने परीक्षा लेने की ठानी और सीता का रूप धारण किया। भगवान राम ने उनके ज्ञान चक्षु खोल दिये जब सीता के वेश के बावजूद प्रणाम कर पूछा, मां सती भगवान शंकर कहां हैं। सती ने मां सीता का रूप धारण किया था, इसलिए भगवान शंकर ने प्रण किया कि सती के इस शरीर से अब प्रेम नहीं कर सकते। सती भी समझ गयी थीं कि उन्होंने अपने पति परमेश्वर शंकर से कपट किया है, इसलिए जब बिना बुलाये अपने पिता के यज्ञ में पहुंचीं और पति शंकर का अपमान देखा तो योगानल में शरीर को भस्म कर दिया। हिमालय ने भी तपस्या की थी कि मां दुर्गा उनको पुत्री के रूप में प्राप्त हों।
शैलपुत्री के अतिरिक्त मां ब्रह्मचारिणी, चन्द्र घण्टा, कूष्माण्डा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री के रूप में भी मां दुर्गा विराजमान रहती हैं। ब्रह्मा जी ने बताया कि जो मनुष्य अग्नि में जल रहा हो, रणभूमि में शत्रुओ से घिर गया हो, विषम संकट में फंसा हो तो मां दुर्गा की शरण में जाए। उसको किसी प्रकार की विपत्ति नहीं दिखायी देगी और यदि उसने दुर्गा कवच का पाठ किया है तो किसी प्रकार की बाधा पास आ ही नहीं सकती। त्रेता युग की पौराणिक कहानियों में नवरात्र के पीछे यही कहानी बतायी जाती है। भगवान राम को जब हनुमान जी के माध्यम से यह पता चल गया कि रावण ने सीता का अपहरण करके अशोक वाटिका में रखा है तो भगवान राम ने वानरों और भालुओं की सेना एकत्रित करके लंका पर चढ़ाई कर दी और समुद्र पर पुल बना दिया। रावण ने यह समाचार जब सुना तो बहुत हतप्रभ हुआ। रावण अहंकारी तो था लेकिन प्रकाण्ड विद्वान भी था। घोर तपस्या करके वरदान प्राप्त किये जिससे उसे आसानी से पराजित नहीं किया जा सकता था। राम और रावण की सेना में युद्ध हुआ। रावण की सेना के पराक्रमी योद्धा और उसका महाशक्तिशाली पुत्र व भाई भी राम और लक्ष्मण के हाथों मारे गये, तब रावण स्वयं युद्ध करने मैदान पर आया। राम उससे कई दिन संग्राम करते रहे लेकिन उस पर विजय प्राप्त नहीं कर सके। तब भगवान राम ने देवी कवच का पाठ कर नव दिन तक शक्ति की पूजा की। सिद्धिदात्री मां की आराधना कराने में रावण के सिवाय और किसी विद्वान को दक्षता नहीं प्राप्त थी। राम ने रावण को आमंत्रित किया। रावण पूजा कराने आया लेकिन विघ्न डालने का भी प्रयास किया। भगवान राम ने सिद्धिदात्री की आराधना के लिए १०८ कमल के फूल मंगाये थे, रावण ने एक फूल चुरा लिया। बताते हैं अंतिम कमल फूल को न पाकर राम ने अपने नेत्रों को निकाल कर अर्पित करने का प्रयास किया क्योंकि उन्हें कमल नयन कहा जाता था। रावण ने यह देखा तो राम की देवी भक्ति पर प्रसन्न हुआ और कमल का पुष्प देते हुए सिद्धिदात्री मां की आराधना पूर्ण करायी। नवरात्र के पूजन के बाद ही दशमी को रावण का वध करने में भगवान राम को सफलता मिली। ब्रह्मा जी ने कहा कि यदि राम कवच का पाठ न करते तो उनको सिद्धिदात्री की पूजा में संभवत: सफलता न मिल पाती। ब्रह्माजी ने मार्कण्डेय ऋषि से कहा, वत्स! यदि मनुष्य अपने शरीर का भला चाहे तो बिना कवच के एक पग कहीं न जाए। मां दुर्गा के नौ रूप ही शरीर के विभिन्न अंगोंं की विभिन्न दिशाओं से रक्षा करते रहते हैं। पौराणिक कथाएं आस्था के साथ जुड़ी हैं और आस्था को लेकर कोई तर्क नहीं किया जाता। (हिफी)