युवा होते लड़कों अथवा लड़कियों के जीवन में बड़ा परिवर्तन आता है। उनकी यह अवस्था काफी नाजुक होती है और ऐसे समय में वह काफी नादानियां जो कि जाने-अनजाने में कर जाते हैं और उसका खामियाजा स्वयं तो वह भुगतते हैं। साथ ही घर के सदस्यों को भी झेलना पड़ता है। परंतु युवा होते लड़के अथवा लड़की क्या करें?
वह तो इस अवस्था में आकर अपने को बहुत ही होशियार समझने लगते हैं और वह हमेशा रंगीन सपनों में खोये रहते हैं। उनका मन पंख लगाकर तितलियों की तरह उडऩे का करता है। उन्हें उस समय किसी की भी डांट फटकार पसंद नहीं है। वह अपने मन के राजा होते हैंं। उनके लिए क्या अच्छा है और क्या बुरा। सब ठीक है। ऐसे में उनकी नादानियां बजाय कम होने की बढ़ती जाती हैं और इसी तरह वह कभी-कभी गलत रास्ते की ओर प्रवृत्त भी हो जाते हैं।
देखा जाये तो यह समस्या तो प्रतिदिन आम घरों में देखने को मिलती है। चाहे लड़का हो अथवा लड़की। प्रेम हो जाना तो कोई नई बात नहीं है। परिवार के सदस्य भी तो अपने युवा होती संतानों पर ध्यान नहीं देते हैं बल्कि उन्हें छोटी-मोटी गलतियों पर बड़ा सा लेक्चर दे डालते हैं। जो इन संतानों पर बुरा प्रभाव डालते हैं। युवा होती संतानों के साथ प्रत्येक सदस्य का व्यवहार नरम ही होना चाहिए। क्योंकि इस अवस्था में न जाने किस गलत रास्ते पर पैर फिसल जाये और उसका जीवन नरक बन जाये। वैसे भी इस समय वह साथियों की मदद और सलाह लेना ज्यादा पसंद करते हैं क्योंकि उनकी हर समस्याओं का निदान उनके लिए आसानी से कर लेते हैं। वह घर के सदस्यों से कम ही सलाह लेते हैं। अब सवाल इस बात का उठता है कि युवाओं के मित्र किस तरीके के हैंं अथवा वह उन्हें किस रास्ते की ओर ले जा रहे हैं। क्योंकि बहुत से मित्रों के साथ वह आसमान को छू लेने की ख्वाहिश रखते हैं जो कि गलत है।
युवा होती संतानों में लड़का हो या लड़की माता-पिता को संपूर्ण ध्यान देना अति आवश्यक है। इसमें लड़कियां ज्यादा ही भावुक होती हैं। वह इस अवस्था में आकर जल्दी ही भावुकता में आकर गलत कदम उठा लेती हैं। इसमें यह बात भी ध्यान देना अति आवश्यक है कि युवा बेटे या बेटी को इस समय मित्र बनाने की इच्छा होती है। वही उनके दु:ख-सुख के सच्चे साथी बन जाते हैं। परंतु कभी-कभी गलत मित्रों का साथ पड़ जाने के कारण युवक, युवतियों के पांव बहक भी जाते हैं। या फिर अच्छे मित्रों के साथ रहकर अपनी सही मंजिल की खोज कर लेते हैं। वैसे भी जब बहुत अधिक मित्र होते हैं। तभी गलत रास्ता समझ में जल्दी आता है क्योंकि उनके साथ रहकर वह ड्रग्स लेने को भी पीछे नहीं हटते हैं।
एक माँ अपने युवा बेटे को ज्यादा निकलने नहीं देती थीं उनका बेटा इस बात से बहुत परेशान रहता था। उसने अपने मन की बात अपने मित्र को बताई। उसके मित्रों ने हर प्रकार की सहायता करके धीरे-धीरे उसका विश्वास जीतकर ब्राउनशुगर का आदी बना दिया। अब वह प्रतिदिन घर से चोरी करने लगा। जब तक पता चला काफी देर हो चुकी थी।
युवाओं की ड्रग्स की ओर भागना यह आम समस्या बनती जा रही है। माता-पिता कभी-कभी अपने युवा बच्चों को इतने अनुशासन में रखते हैं कि उसके कारण भी युवाओं में बिगडऩे की ज्यादा प्रवृत्ति देखने को मिलती है। उनमें एक प्रकार का आक्रोश देखने को मिलता है। वह कोई भी गलत बात को नहीं बर्दाश्त कर पाते हैं। कभी-कभी तो जरा-जरा सी बात पर कहीं भी लड़-झगड़ लेते हैंं, जिसके कारण माता-पिता को भी परेशानी सहनी पड़ती है। अपने बेटे-बेटी के कारण लज्जित भी होना पड़ता है। परंतु वह क्या करें? वह स्वयं ही समझ नहीं पाते हैं। बेटे को अगर डांटे तो वह उन्हें अपना शत्रु समझने लगता है और सबसे बड़ी बात यह है कि वह उसी काम को और करेगा। उसी प्रकार लड़कियों को अगर बंधन में रखो तो वह चोरी छिपे यह कार्य जरूर करेंगी और अगर उस समय माता-पिता ने उन पर ज्यादा ध्यान दिया तो वह गलत राह पर चलने में जरा भी समय नहीं लगायेंगी।
युवावस्था भटकाव की अवस्था होती है। युवाओं के अंदर काफी परिवर्तन देखने को मिलते हैं। उस समय उनको बहुत जरूरत होती है सही साथी की जो उनकी हर समस्याओं का निदान कर सकें। उनकी हर बात को सुने और ऐसे समय में माता-पिता का सहयोग मिलना अति आवश्यक है। घर के अन्य सदस्यों के साथ ही माता को बेटी की सहेली बनकर रहना चाहिए। उसे बात-बात पर उलाहना न देकर उसकी बातों को सुनकर उसका शीघ्र ही निदान कर देना चाहिए। क्योंकि इस समय बेटी या बेटा दोनों के सामने बड़ी कठिनाइयां आती हैं। चाहे वह समस्यायें किसी भी क्षेत्र की क्यों न हों। बेटे की समस्या कैरियर के प्रति ज्यादा रहती हैंं। उसको सही राह दिखायें। उसकी इच्छाओं को ध्यान में रखते हुए उसका निदान करना चाहिये। युवा बच्चों को ज्यादा डाटना नहीं चाहिए नहीं तो वह नादानी में गलत कार्य कर जायेंगे। वैसे भी आज के अराजकता भरे माहौल में युवा बिगड़ेगा ही बस जरूरत है, उसे संभालने की। लड़के-लड़कियों का साथ पढऩा या मित्र बनना कोई बुराई नहीं है लेकिन मित्र कम हों और अच्छे होने चाहिए।
इसमें तनिक भी संदेह नहीं है कि आज युवा आधुनिक माहौल में रह रहा है। फैशन की दुनिया को अपना रहा है, जिसके कारण वह इस फैशन की लम्बी दौड़ के साथ भागकर अपने कैरियर की तरफ से पीछे हट रहा है। इसमें दोष माता-पिता का है क्योंकि उन्होंने शुरू से ही इस बात पर ध्यान नहीं दिया। अब दोष किसको दें? लड़के अथवा लड़कियों को फिल्मों का असर भी उनकी छोटी-छोटी नादानियां करने पर मजबूर कर देता है, जो बाद में कड़ी परेशानियां खड़ी कर देती हैं। इस तरह बहुत से कारण
युवाओं को पथ भ्रष्ट करते हैं। परंतु माता-पिता अगर इन पर शुरू से ही उनके साथी बनकर उनका साथ देेंगे तो वह कभी गलत राह पर नहीं जायेगा और न फिर माता-पिता को कभी परेशानियों का सामना करना पड़ेगा और युवा वर्ग कोई नादानी वाला कार्य नहीं करेगा। (हिफी)