मुबारक साल गिरह। मोना डार्लिंग… इसने ऐसी लोकप्रियता हासिल की है, जिसे ज़ेहन से मिटाना नामुमकिन है. इस डायलॉग के साथ डार्लिंग मोना यानी बिंदु को भी भुलाना मुश्किल है. कभी नायिका तो कभी खलनायिका, कभी आइटम डांसर, तो कभी कुछ और किरदार निभाने वाली बिंदु।
बिंदु का जन्म 17 अप्रैल, 1951 को हुआ था.बिंदु के पिता नानूभाई देसाई फिल्म निर्माता थे और माँ ज्योत्स्ना रंगमंच की अभिनेत्री, लेकिन नानूभाई कतई नहीं चाहते थे कि उनकी बेटी अभिनेत्री बने। वे बिंदु को डॉक्टर बनाना चाहते थे। इनकी सफ़लता का सफ़र आसान नहीं रहा. 11 वर्ष की आयु में ही इनके पिता जी का देहान्त हो गया और परिवार की सारी जिम्मेदारी इनके नन्हें कंधों पर आ गई. बिन्दू ने सबसे पहले फ़िल्म अनपढ (1962) में जवां कालेज गर्ल का रोल किया. फ़िल्म “इत्तेफ़ाक” और “दो रास्ते” से उन्हें आरम्भिक सफ़लता मिली. इसके बाद शक्ति सामंत की फ़िल्म “कटी पतंग” में उन्होंने केबरे डांस “मेरा नाम है शबनम” से फ़िल्मी जगत में हलचल मचा दी. “इम्तिहान” और “हवस” उनकी सफ़लता के अगले पडाव थे।
हवस में उनका डांस आईटम “ये हवस क्या है तू न जानेगा” बहुत प्रसिद्ध हुआ। उन्होंने इस बात को झुठला दिया की शादीशुदा औरत हिन्दी फ़िल्म जगत में सेक्स सिम्बल नहीं बन सकती. “हैलन” और “अरुणा ईरानी” के साथ उन्होंने कैबरे डांस और खलनायिका के रोल को अनूठी ऊंचाई प्रदान की. वह सेक्स सिम्बल से कहीं अधिक हैं यह बात उन्होंने अपनी आने वाली फ़िल्मों “अभिमान”, “चैताली”, “अर्जुन पंडित” और “जंजीर” में सशक्त अभिनय कर साबित की. “जंजीर” की मोना डार्लिंग आज भी सबको याद है।
यह उनका दुर्भाग्य रहा कि 5’6″ लम्बी, गोरी और सुन्दर नयन नक्श वाली होते हुये भी उन्हें कोई लीडिंग रोल आफ़र नहीं किया गया। दुर्भाग्यपूर्ण गर्भपात और डाक्टरों की सलाह पर उन्हें ग्लैमरस खलनायिका की छवि को तिलांजली देनी पडी. परन्तु वह ज्यादा दिन तक फ़िल्मों से दूर नहीं रही और उन्होने “हीरो”, “बीवी हो तो ऐसी” और “किशन कन्हैया ” फ़िल्मों से अपने आप को क्रूर सास के रूप में स्थापित किया।
.बिन्दू ने अपने बचपन के साथी और पडोसी चम्पक जावेरी से शादी की और उनकी कोई सन्तान नहीं है.। उन्होंने तकरीबन 140 हिन्दी फ़िल्मों में अदाकारी निभाई जिनमे से कुछ यादगार हैं. इत्तेफ़ाक(1969), कटी पतंग (1970), दास्तान (1972) , अभिमान (1973), गाय और गोरी (1973), जंजीर (1973) , हवस (1974) , इम्तिहान (1974) , अर्जुन पंडित (1976), शंकर दादा (1976) , राम कसम (1978) , लावारिस (1981), कर्मा (1986), बीवी हो तो ऐसी(1988), किशन कन्हिया (1990), आंखें (1993), हम आपके हैं कौन (1994), जुडवां(1997), एहसास इस तरह (1998), आंटी नं.1 (1998), बनारसी बाबू (1998), मेरे यार की शादी है (2002), मैं हूं ना (2004), ऒम शान्ति ऒम (2007), महबूबा (2008).एजेन्सी।