जयंती पर विशेष स्वप्निल संसार। कानन देवी प्रसिद्ध अभिनेत्री, गायिका और फिल्म निर्माता थीं। उनका मूल नाम कानन बाला था। भारतीय सिनेमा जगत में कानन देवी का नाम एक ऐसी शख्सियत के तौर पर याद किया जाता है, जिन्होंने न केवल फिल्म निर्माण की विधा बल्कि अभिनय और पार्श्वगायन से भी दर्शकों के बीच अपनी खघस पहचान बनाई थी। बगैर प्रशिक्षण हासिल किए कानन ने गायन की दुनिया में प्रवेश किया और अभिनय के क्षेत्र में भी अपनी पहचान बनाई। वह पहली बांग्ला कलाकार थीं, जिन्हें भारतीय सिनेमा में उल्लेखनीय योगदान के लिए 1976 में दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
कानन देवी का जन्म हावड़ा में 22 अप्रैल, 1916 को मध्यम वर्गीय बंगाली परिवार में हुआ था। बाल्यावस्था के दिनों में ही उनके दत्तक पिता रमेश चन्द्र दास की मृत्यु हो गई थी। इसके बाद परिवार की आर्थिक जिम्मेदारी को देखते हुए कानन देवी अपनी माँ के साथ काम में हाथ बंटाने लगीं। कानन देवी जब सिर्फ 10 वर्ष की ही थीं, तब अपने एक पारिवारिक मित्र की मदद से उन्हें ज्योति स्टूडियो द्वारा निर्मित फिल्म जयदेव में काम करने का अवसर मिला। इसके बाद कानन देवी को ज्योतिस बनर्जी के निर्देशन में राधा फिल्म्स के बैनर तले बनी कई फिल्मों में बतौर बाल कलाकार काम करने का मौका मिला। 1934 में प्रदर्शित फिल्म माँ बतौर अभिनेत्री कानन देवी के सिने कैरियर की पहली हिट फिल्म साबित हुई। कुछ समय के बाद कानन देवी न्यू थियेटर में शामिल हो गईं। इस बीच उनकी मुलाकात रायचंद बोराल से हुई, जिन्होंने कानन देवी के सामने हिन्दी फिल्मों में काम करने का प्रस्ताव रखा। तीस और चालीस के दशक में फिल्म अभिनेता या अभिनेत्रियों को फिल्मों में अभिनय के साथ ही पार्श्वगायक की भूमिका भी निभानी पड़ती थी। इस स्थिति को ध्यान में रखते हुए कानन देवी ने भी संगीत की शिक्षा लेनी शुरू कर दी। उन्होंने संगीत की प्रारंभिक शिक्षा उस्ताद अल्लारक्खा और भीष्मदेव चटर्जी से प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने अनादि दस्तीदार से रवीन्द्र संगीत भी सीखा। 1937 में प्रदर्शित फिल्म मुक्ति बतौर अभिनेत्री कानन देवी के सिने करियर की सुपर हिट फिल्म साबित हुई। पी.सी.बरुआ के निर्देशन में बनी इस फिल्म की जबरदस्त कामयाबी के बाद कानन देवी न्यू थियेटर की चोटी की कलाकारों में गिनी जाने लगी थीं। 1941 में कानन देवी ने न्यू थियेटर छोड़ दिया और अब वे स्वतंत्र तौर पर काम करने लगीं। 1942 में प्रदर्शित फिल्म जवाब बतौर अभिनेत्री कानन देवी के सिने करियर की सर्वाधिक हिट फिल्म साबित हुई। इस फिल्म में उन पर फिल्माया गया यह गीत- दुनिया है तूफान मेल, उन दिनों श्रोताओं के बीच काफी लोकप्रिय हुआ। इसके बाद कानन देवी की हॉस्पिटल, वनफूल और राजलक्ष्मी जैसी फिल्में भी प्रदर्शित हुई, जो टिकट खिड़की पर सुपरहिट रहीं। अपनी इस सफलताओं के बाद कानन देवी ने 1948 में फिल्म नगरी मुंबई (भूतपूर्व बम्बई) का रुख किया। 1948 में ही प्रदर्शित फिल्म चंद्रशेखर अभिनेत्री के रूप में कानन देवी की अंतिम हिन्दी फिल्म थी। फिल्म में उनके नायक की भूमिका अशोक कुमार ने निभाई थी। 1949 में कानन देवी ने फिल्म निर्माण के क्षेत्र में भी कदम रख दिया। श्रीमती पिक्चर्स के अपने बैनर तले कानन देवी ने कई सफल फिल्मों का निर्माण किया। 1976 में फिल्म निर्माण के क्षेत्र में कानन देवी के उल्लेखनीय योगदान को देखते हुए उन्हें फिल्म जगत के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। कानन देवी बंगाल की पहली अभिनेत्री बनीं, जिन्हें यह पुरस्कार दिया गया था। अपने तीन दशक लंबे सिने कैरियर में उन्होंने लगभग 60 फिल्मों में अभिनय किया। उनकी अभिनीत उल्लेखनीय फिल्मों में-जयदेव,प्रह्लाद,विष्णु माया,माँ,हरि भक्ति,कृष्ण सुदामा,खूनी कौन,विद्यापति, साथी,स्ट्रीट सिंगर, हार-जीत, अभिनेत्री,परिचय,लगन,कृष्ण लीला,फैसला और आशा आदि शामिल हैं।
कानन देवी ने अपने बैनर श्रीमती पिक्चर्स के तहत कई फिल्मों का निर्माण भी किया। उनकी फिल्मों में कुछ हैं- वामुनेर में (1948) अन्नया (1949) मेजो दीदी (1950) दर्पचूर्ण (1952) नव विद्यान (1954) आशा (1956) आधारे आलो (1957) राजलक्ष्मी ओ श्रीकांता (1958) इंद्रनाथ, श्रीकांता औ अनदादीदी (1959) अभया ओ श्रीकांता (1965) अपनी निर्मित फिल्मों, पार्श्वगायन और अभिनय के जरिए दर्शकों के बीच खास पहचान बनाने वाली कानन देवी 17 जुलाई, 1992 को इस दुनिया को अलविदा कह गईं।