देश में बाल अपराधियों की संख्या बढ़ रही है। जब से मोबाइल व इन्टरनेट का प्रचलन बढ़ा है, इसके साथ ही बाल अपराधियों की संख्या बढ़ गयी है। मोबाइल व इन्टरनेट ने बाल मन को परिपक्व बना दिया है। जिसे बालक 19 वर्ष की उम्र तक भी नहीं जान पाता था, अब किशोर अवस्था में प्रवेश करते ही जान जाता है। बाल अपराधियों की बढ़ती संख्या चिंता का विषय है। यही बालक जब युवावस्था में प्रवेश करते हैं तो बड़े अपराध करते हैं। हिंसक वीडियो गेम्स से बालकों की हिंसक प्रवृत्ति बनती है, बाल्यावस्था में आक्रामकता व हिंसक व्यवहार की देन यही वीडियों गेम, फ्री स्टाइल रेसलिंग व बाक्सिंग है जिसके प्रदर्शन को देखकर बालक उत्तेजित हो जाता है। बालकों में ऐसे हार्मोनों का स्राव होता है जो बालक को हठी, हिंसक, उदंड़ बनाता है। बालक घर व परिवार में झगड़ा करता है। वह अपने सहपाठियों से व मित्रों से मारपीट करता है। ऐसे बालकों में एड्रीनल ग्लैड के स्राव से कम उम्र में उग्रता आ जाती है।
आजकल अखबारों में ऐसी खबरें पढ़ने को मिलती है कि अमुक किशोर ने अपनी सहपाठी को अपहृत करके उसके घरवालों से फिरौती मांगी। कभी किशोर ने किसी सहपाठी को चाकू घोंप दिया या गोली मार दी। ऐसी खबरें पढ़कर मन दुखित होता है और सोचने को विवश होता है कि यदि समाज में भावी पीढ़ी का यही हाल रहा तो इस समाज व देश का क्या हाल होगा। बाल मन चंचल व आक्रामक है तो वह जीवन में गलत कार्य का अनुसरण करेगा ही। किसी बालक की पाठशाला पहले उसके माता-पिता व अभिभावक है, बाद में विद्यालय। यदि बालक पर मां बाप, अभिभावक का नियंत्रण नहीं रहा तो उच्छृंखल हो सकता है। मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि यदि बालकों की अनुचित मांग व इच्छा पूरी करते रहेंगे तो हठी होंगे, मां बाप पर अनुचित दवाब डालकर अवाछित मांग पूरी करने को कहेंगे।
अगर किसी बच्चे को मोबाइल दे दिया जाय तो वह खिलौनों से खेलने के बजाय मोबाइल चलायेगा। मोबाइल से निकलने वाली तरंगें बालकों के मस्तिष्क व शरीर पर कुप्रभाव डालती हैं। बालक का मन पढ़ाई से हट जाता है। उसकी नींद गायब हो जाती है। बाल उम्र में ही बालक मानसिक रोगों के चंगुल में फंस जाता है।
आजकल स्मार्टफोन में फेसबुक पर बालक अपने संदेश साथियों को भेजता है। कभी-कभी फेसबुक पर अश्लील व अभद्र शब्दों का प्रयोग होता है जो बच्चा सीखता है। जब बच्चा घरवालों को स्मार्टफोन पर अंगुलियां चलाना देखता है तो खुद भी ऐसा करता है। जब मोबाइल पर कभी हिंसक, अश्लील व मन को विचलित करने वाली वीडियो देखता है तो उसका उसके मन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। जो उम्र नैतिक व संस्कार वाली बातें सीखने की होती हैं, उसी उम्र में उसके कोमल मस्तिष्क में हिंसक व अनैतिक बातें उसके मन में घर कर जाती है। बालक यौन अपराध करता है। कम उम्र में उसके मस्तिष्क में सेक्स व यौवन के विचार परवान चढ़ने लगते हैं। कई बच्चे गरीब तबके के होते हैं। वे साथियों के पास जो चीजें होती हैं, उन्हें पाने के लिए चोरी, उठाईगिरी व जेबकतरी का काम करने लगते हैं। वे साथियों से रूपये छीन लेते हैं। दुकानों व शोरूम से चीजें उठा ले जाते है, जहां उनमें चोरी व उठाईगिरी की आदत पड़ गयी तो बाद में यही आदत उन्हें गलत धंधों में उतार कर बड़ा अपराधी बना देता हैं।
बालक चरस, गांजा, स्मैक, हीरोइन, ड्रग्स व कच्ची शराब का सेवन शुरू कर देता है। जब कोई बच्चा घर के किसी सदस्य को शराब पीते देखता है तो खुद भी शराब पीने की सोचता है। किसी घटना या विचार का बालक पर गहराई से असर पड़ता है। मनोबैज्ञानिकों का कहना है कि बालक मन पर जो असर पड़ता है वह ताउम्र रहता है। उसे उसके मस्तिष्क से निकालना कठिन होता है।
इसलिए बाल्यावस्था में संरक्षकों द्वारा बालकों को सही मार्ग दर्शन देने की खास जरूरत है। अक्सर माता पिता या अभिभावक अपने बच्चों की ओर से लापरवाह हो जाते हैं, जिसके कारण बच्चे लापरवही करने लगते हैं। इस उम्र में उनके गुमराह होने की अधिक संभावना होती है। यदि बच्चे की पारिवारिक स्थिति डांवाडोल है तो बालक में भय व असुरक्षा की भावना घर कर जाती है। वह इस भय को छिपाने के लिए घर से बाहर दबंग होने का दिखावा करता है और साथियों पर रौब गांठता है। जिन घरों में कलह होती है और बच्चों को मारा पीटा जाता है तो वहां के बच्चे घर से भाग खड़े होते हैं। वे या तो बाल मजदूरी करते हैं या बाल अपराध। इसलिए भटकने से पहले उनका सही मार्गदर्शन जरूरी है। उन्हें घर व स्कूल से अच्छी सीख मिलनी चाहिए ताकि वे कुसंगति में पड़कर गलत रास्ते में न चलें (हिफी)
बच्चों के प्रति निभाएं कर्तव्य
बच्चों को घर पर खाने की आदत डालें, बाजार की चीजें कम से कम खिलाएं।
खाने में हरी सब्जियां, दूध, दही और अंडा दें। शाका हारी हैं तो अंडा खिलाना जरूरी नहीं है लेकिन सभी सब्जियां खाने की आदत डालें।
बच्चे को खेलने का अवसर जरूर दें लेकिन उस पर निगाह भी रखें कि कहां और क्या खेल रहा हैं।
बच्चे को ज्ञानवर्द्धक कहानियां सुनाएं और बाद में इसी तरह की पुस्तकें दें। बच्चे में पुस्तक पढ़ने की रूचि पैदा करें। टीवी और लैपटाॅप पर भी इस तरह की कहानिया बच्चे को दिखाएं।
बच्चे से दोस्ताना व्यवहार रखें लेकिन उसके बात करने के ढंग पर जरूर ध्यान दें।
बच्चे के दोस्तों पर जरूर नजर रखें और स्कूल से वापस आने के बाद उससे यह जरूर पूछें कि स्कूल में क्या पढ़ाया गया, उसकी दोस्तों से क्या बात हुई आदि। कोई गलत आदत पड़ रही है तो उसे उसी समय टोकें।