शशिकला ने इंटरव्यू में बताया था कैसे उनके फिल्मी करियर की शुरुआत हुई। ‘मेरे पिता अनंतराव जावलकर सोलापुर में कपड़ा व्यापारी थे। हम छह भाई-बहन थे। मेरे पिता ने अपना लगभग सारा पैसा अपने छोटे भाई को शिक्षा के लिए लंदन भेजने में खर्च किया। हालांकि उन्होंने अपने परिवार की भलाई के लिए यह किया, लेकिन उनके भाई को जब अच्छी सैलरी वाली नौकरी मिली तो वो हम सब को भूल गए। इस बीच, मेरे पिता का व्यवसाय गिर गया और हम दिवालिया हो गए। हमने 8-10 दिन बिना भोजन के गुजारे थे। हम दोपहर के भोजन के लिए किसी का इंतजार करते थे कि कोई हमें खाने के लिए इनवाइट करे, क्योंकि घर में खाना नहीं था। मैं इस तरह की परिस्थितियों में बचपन में एक दिन एक मेला नाटक मंडली की कलाकार बन गई। हमने सोलापुर जिले में कई जगह परफॉर्मेंस दी। हम पौराणिक कथाओं पर आधारित गीत और नृत्य नाटक प्रस्तुत करते। इस तरह से परफॉर्मेंस के लिए मुझे अवॉर्ड और घर को अर्जित अल्प राशि से रोजी रोटी के लिए मदद मिलती गई।
4 अगस्त 1932, सोलापुर- 4 अप्रैल 2021, मुम्बई
शशिकला के पिता को कई लोगों ने कहा था कि बेबी (शशिकला के घर का नाम) बहुत सुंदर है और इतनी अच्छी तरह से काम करती है। उसे फिल्मों में लाना चाहिए। इसी तरह से शशिकला बम्बई अब मुंबई आईं। शशिकला ने बताया था, ‘हम दूर के दोस्तों और परिवार के साथ रहते थे, अक्सर हम काम की तलाश में स्टूडियो से स्टूडियो जाते। जब मैं 11 साल की थी, तब मैं बाल भूमिकाओं के लिए थोड़ी बड़ी था और अडल्ट के लिए बहुत छोटी थी। नूरजहां ने तब मुझे एक बार देखा था। जब वो और उनके पति शौकत हुसैन फिल्म जीनत बना रहे थे, तो उन्होंने मुझे बुलाया था। उन्हें लगता था कि मुझे उनकी बेटी की भूमिका निभानी चाहिए। शौकत साहब के पास मैं बैठी तो उन्होंने कहा कुछ बोलो- खाली पीली काइको बात करना…। वो एक उर्दू फिल्म बना रहे थे और मैंने उनके सामने सोलापुरी हिंदी में बात कर दी थी। हालांकि मुझे उनकी बेटी का किरदार निभाने को नहीं मिला, लेकिन मुझे श्यामा और शालिनी जैसे अन्य लोगों के साथ एक कव्वाली के सीन में शामिल किया गया। तब शौकत साहब ने कहा था कि सर्वश्रेष्ठ कलाकार को इनाम के रूप में 25 रुपये मिलेंगे। और मैंने वो पैसे जीते थे।’
देखते ही देखते शशिकला भारत-पाकिस्तान के बंटवारे से पहले खूब काम पाने लगीं। नूरजहां और शौकत दोनों उन्हें परिवार की तरह प्यार करते थे। उनकी एक बात पर ही शशिकला को काम मिल जाता। ऐसे पी.एन. अरोड़ा, अमिया चक्रवर्ती और अशोक कुमार, करण दीवान, आगा के साथ शशिकला ने काम किया। शशिकला हर महीने 400 रुपये तक कमा लेती थीं जो कि उस दौरान एक बड़ी रकम थी। लेकिन 1947 में बंटवारे के वक्त नूरजहां ने पाकिस्तान में लाहौर जाने का फैसला किया और शशिकला का फिर से काम पाने का संघर्ष शुरू हो गया। हालांकि धीरे-धीरे ही सही लेकिन शशिकला ने इंडस्ट्री में अपने पैर जमा ही लिए।
शशिकला ने 100 से अधिक फिल्मों में अभिनय किया है, जिसमें कई महत्वपूर्ण भूमिकाएं रहीं। मीना कुमारी, अशोक कुमार और प्रदीप कुमार की सह-कलाकार ‘आरती’ (1962) में निगेटिव रोल के लिए उनकी बहुत तारीफ हुई थी। साथ ही ‘खूबसुरत’, ‘अनुपमा’ और ‘आयी मिलन के बेला’ हिट फिल्मों में उनका अभिनय यादगार रहा।
शशिकला ने शाहरुख खान के साथ भी कुछ फिल्मों में काम किया था। उन्होंने ‘बादशाह’ में शाहरुख की मां की भूमिका निभाई जबकि ‘मुझसे शादी करोगी’ में सलमान खान की दादी की भूमिका में दिखाई थीं। उन्होंने जीना इसी नाम, अपनापन, दिल देके देखो और सोन परी जैसे टीवी शोज में भी किया था। साल 2007 में, शशिकला को सिनेमा में उनके योगदान के लिए प्रतिष्ठित पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इसके साथ 2009 में शांताराम लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड और राज कपूर लाइफटाइम कंट्रीब्यूशन अवार्ड से भी शशिकला सम्मानित हो चुकी थीं।
शशिकला ने प्यार में पड़कर 19 साल की उम्र में ओ पी सहगल के साथ विवाह रह लिया था। ‘मैंने सोचा था कि मैं घर बसा लूंगी लेकिन नियति ने मुझे कैमरे में कैद कर रखा था और उनका बिजनेस फैल हो गया था। मेरे द्वारा धन कमाए जाने के बावजूद, मैं निराश और क्रोधित था कि श्यामा जैसी अभिनेत्रियां जिन्हें मैंने जीनत की कव्वाली में 25 इनाम जीतकर हराया था उनको मुख्य भूमिकाएं और मुझे सेकंड लीड रोल कैसे मिल सकता है। जबकि मैं दो शिफ्ट करती थी ताकि मेरे किचन का चूल्हा जलता रहे। बच्चों की आया से शिकायतें और मेरे पति के साथ नियमित होते झगड़े ने मुझे अपनी बेटियों को पंचगनी के एक बोर्डिंग स्कूल में भेजने पर मजबूर कर दिया था।
शशिकला और ओम प्रकाश सहगल की दो बेटियों हुईं। लेकिन बेटियों के जन्म के बाद दोनों अलग हो गए। एक दिन, शशिकला ने अपने परिवार और बेटियों को छोड़ दिया और एक आदमी के साथ विदेश चली गई। शशिकला ने कहा था, ‘जब मानव का समय खराब होता है, तो बुद्धि भी भ्रष्ट हो जाती है। मेरे साथ कुछ ऐसा ही हुआ। जिस व्यक्ति के साथ मैं विदेश गया, उसने मुझे मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया। शायद ही मैं कभी खुद को बचा पाई और बड़ी मुश्किल से लौटकर वापस इंडिया आई। इंडिया आने के बाद शशिकला एकदम टूट चुकी थीं और वो मेंटल ट्रॉमा से गुजर रही थीं। वाद में कोलकाता गई और मदर टेरेसा के साथ नौ साल तक रहीं। वहां उन्होंने लोगों की सेवा की और तब कुछ शांति मिली। इसके बाद शशिकला वापस मुंबई आ गई और फिल्मों में काम करने लगीं। शशिकला अपनी छोटी बेटी और दामाद के साथ रहती थीं और उनकी बड़ी बेटी की कैंसर से मृत्यु हो गई थी।
शशिकला के अनुसार, पति से काफ़ी पहले उनका अलगाव हो चुका था। आम लोगों के बर्ताव में बुरी औरत की अपनी इमेज की वजह से झलकता असर भी उन्हें बेहद खलने लगा था। उधर इंडस्ट्री के बदले हुए माहौल में ख़ुद को ढाल पाना उनके लिए मुश्किल हो चला था। मानसिक दबाव और निराशाएं इतनी बढ़ गयी थीं कि वो विपश्यना के लिए इगतपुरी आश्रम जाने लगीं। उनका झुकाव आध्यात्म की ओर होने लगा। शशिकला का कहना है, 1988 में बनी फ़िल्म घर घर की कहानी के दौरान घटी कुछ घटनाओं ने मुझे ऐसी चोट पहुंचाई कि मैंने फ़िल्मों से अलग हो जाना ही बेहतर समझा। मैंने मुंबई छोड़ दिया और शांति की तलाश में जगह जगह भटकने लगी। चारधाम यात्रा की, ऋषिकेश के आश्रमों में गयी। लेकिन सिर्फ़ द्वारकापुरी और गणेशपुरी के रमन महर्षि के आश्रम में जाकर मुझे थोड़ी-बहुत शांति मिली वरना बाक़ी सभी जगहों पर धर्म को एक धंधे के रूप में ही पाया। शशिकला की छोटी बेटी शैलजा उन दिनों कोलकाता में रहती थीं। एक रोज़ बेटी के पारिवारिक मित्र के ज़रिए शशिकला मदर टेरेसा के आश्रम तक जा पहुंचीं। शशिकला का कहना था, एक तो अभिनेत्री, ऊपर से बुरी औरत की इमेज। पहले तो सभी ने मुझे शक़ की नजर से देखा। कई-कई इंटरव्यू हुए। शिशु भवन और फिर पुणे के आश्रम में मानसिक रोगियों, बीमार बुज़ुर्गों, स्पास्टिक बच्चों और कुष्ठ रोगियों की सेवा में रखकर कुछ दिन मेरा इम्तहान लिया गया। मरीज़ों की गंदगी साफ़ करना, उन्हें नहलाना, उनकी मरहम-पट्टी करना, इस काम में मुझे इतनी शांति मिली कि मैं भूल ही गयी कि मैं कौन हूं। मैं इम्तहान में पास हो गई। और फिर तीन महिने बाद कोलकाता में मदर से जब पहली बार मुलाक़ात हुई तो उनसे लिपटकर देर तक रोती रही। मदर के स्पर्श ने मुझे एक नयी ऊर्जा दी। अब फिर से वो ही दिनचर्या शुरू हुई। शिशु भवन, मुंबई और गोवा के आश्रम, सूरत और आसनसोल के कुष्ठाश्रम, निर्मल हृदय-कालीघाट में मरणासन्न रोगियों की सेवा, लाशें तक उठाईं। उस दौरान मदर के कई चमत्कार देखे। मैं वहां पूरी तरह से रम चुकी थी।1993 में शशिकला घर वापस लौटीं तो पता चला उनकी बड़ी बेटी को कैंसर है। बेटी के बच्चे छोटे थे। दो साल बाद बेटी गुज़र गयी। शशिकला के अनुसार- मदर ने हालात से लड़ने की ताक़त दी। सीरियल जुनून और आह के ज़रिए मैंने फिर से अभिनय की शुरुआत की। सोनपरी और किसे अपना कहें जैसे सीरियलों के अलावा फ़िल्मों में भी मैं काफ़ी व्यस्त हो गयी। शशिकला के मुताबिक़ पति के साथ भी उनके सम्बंध एक बार फिर से काफ़ी हद तक सामान्य हो चले थे, जो नैनीताल में बस चुके थे।एजेंसी