राकेश अचल-मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने क्या सचमुच बेलगाम हो चुकी नौकरशाही के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है,या फिर जो कुछ हो रहा है वो सब उनके अपने मन की घबड़ाहट का नतीजा है ? मुख्यमंत्री ने हाल ही में प्रदेश के आदिवासी बहुल जिले झाबुआ के एसपी और कलेक्टर के खिलाफ फौरी दंडात्मक कार्रवाई करते हुए दोनों को हटा दिया है.झाबुआ के एसपी को तो निलंबित कर दिया है.
झाबुआ के एसपी अरविंद तिवारी झाबुआ से हटाने के साथ ही निलंबित कर दिया गया. तिवारी का मामला पॉलिटेक्निक कॉलेज के छात्रों से गाली गलौज का था.छात्रों के साथ फोन पर ‘ कुत्ता’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल करने पर तिवारी हटाए गए.तिवारी कोई भाषा उनकी अपनी भाषा नहीं है. ये पूरे मध्यप्रदेश पुलिस की भाषा है. आरक्षक से लेकर आई जी तक की भाषा और शब्दकोश एक जैसा है .ये भाषा आज से नहीं है,सनातन काल से है. पुलिस में नीचे से लेकर ऊपर तक ऐसे लोग कम ही हैं जो आम जनता से बेहद भद्र भाषा का इस्तेमाल करते हों.
समय के साथ पुलिस और उसकी भाषा भी बदलना चाहिए ,लेकिन दुर्भाग्य कि इस दिशा में आजतक सूबे की या देश की किसी सरकार ने ध्यान नहीं दिया.सरकारों के पास वक्त ही कहाँ होता है ,ऐसे नाजुक विषयों पर ध्यान देने का ?मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की विवशता थी कि उन्हें झाबुआ एसपी के आडियो वायरल होने के बाद कुछ न कुछ तो करना था,सो उन्होंने सब कुछ कर दिया ,अन्यथा एक सिपाही के निलंबन का आदेश भी इस तरह नहीं दिया जाता जैसा कि एक एसपी के निलंबन और तबादले का दिया गया.
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा की गयी इस कार्रवाई का आम तौर पर स्वागत किया गया है. किया जाना चाहिए,लेकिन सवाल ये है कि क्या एक एसपी के खिलाफ कार्रवाई होने से प्रदेश के मैदानी पोस्टिंग वाले सभी पुलिस वालों की भाषा में सुधार हो जाएगा ? एसपी तिवारी का संवाद मैंने भी सुना.वे सचमुच अभद्रता से बोल रहे थे,लेकिन वे आप से बाहर न थे,बड़े सहज ढंग से बोल रहे थे.सभी पुलिस वाले ऐसे ही बोलते हैं.वे ऐसे न बोलें तो उन्हने पुलिस वाला कौन मानेगा ? पुलिस के पास तो अभद्र भाषा का एक वृहद शब्दकोश होता है.जरूरत इस बात की है कि सरकार एक अरविंद तिवारी के खिलाफ कार्रवाई करने के पूरी पुलिस के प्रशिक्षण का तौर-तरीका ही क्यों नहीं बदल देती ?
झाबुआ के एसपी के बाद ही कलेक्टर सोमेश मिश्रा को हटाया गया.कलेक्टर के खिलाफ सरकारी योजनाओं में भ्रष्ट्राचार की शिकायत थी. साल भर में झाबुआ के छात्र 5 बार आंदोलन कर चुके थे.उन्हें 2 साल से छात्रवृत्ति नहीं मिली तो छात्र 32 किमी. चलकर पैदल झाबुआ कलेक्ट्रेट पहुंचे, लेकिन कलेक्टर छात्रों से नहीं मिले थे. झाबुआ पहुंचकर छात्रों से पांवों में छाले पड़ गए थे. कुछ छात्रों की तबियत खराब हुई और अस्पताल ले जाना पड़ा था.मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की इस कार्रवाई से क्या प्रदेश की पुलिस अपर प्रशासन में बैठी नौकरशाही में हड़कंप मच गया है ? शायद नहीं.ऐसा कुछ नहीं हुआ और न हो सकता है .बहुत से कलेक्टरों का रिकार्ड सोमेश मिश्रा से भी ज्यादा खराब है.
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह का ये चौथा कार्यकाल है.उनके हर कार्यकाल में नौकरशाही बेलगाम हुई है.शीर्ष नौकरशाह भाजपा के शासनकाल में वीडियो कांफ्रेंसिंग तक सीमित हो गए हैं. पुलिस महानिदेशक हों या मुख्यसचिव सचिवालय से बाहर निकलने में अब लजाते हैं.शायद ही पिछले 18 साल में कोई ऐसा पुलिस महानिदेशक और मुख्य सचिव होगा जिसने पूरे मध्य प्रदेश के जिले तो छोड़िये संभाग स्तर पर भी मशीनरी के साथ बैठकर सीधा संवाद किया हो. अब ये अफसर सचिवालय और श्यामला हिल के बीच झेलने के अलावा कुछ नहीं करते .ऐसे में भाषा और भ्र्ष्टाचार पल्ल्वित-पुष्पित तो होगा. पिछले कुछ वर्षों में जिलो कलेक्टर और एसपी की नियुक्ति प्रशासनिक योग्यता के आधार पर नहीं बल्कि राजनीतिक आधार पर होती है और वो भी अघोषित सेवा शुल्क के साथ .जब प्रशासनिक नियुक्तियाँ ठेके के आधार पर की जाएँगी तो आप या मै उनके लोकोन्मुखी होने की उम्मीद कैसे कर सकते हैं ? मै अरविंद तिवारी और सोमेश मिश्रा के प्रति इस मामले में सहानुभूति नहीं रखता किन्तु उनके खिलाफ जो कार्रवाई की गयी उससे मशीनरी सुधरने के बजाय और बिगड़ सकती है . अतीत में भी श्यामला हिल की किचिन से प्रशासनिक अधिकारियों की नियुक्तियां की जाती थी,माननीय अर्जुन सिंह के युग में सचिवालय से ज्यादा उनकी किचन कैबिनेट ज्यादा असरदार थी और आज भी इसमें कुछ बदला नहीं है .आज भी श्यामला हिल की किचिन में जो कुछ पकता है उसे ही सचिवालय में खाना और पचाना पड़ता है .जब तक किचिन और प्रशासन के रिश्ते बेहतर हैं तब तक चाहे तिवारी हों चाहे मिश्रा कोई सुधरने वाला नहीं है .नौकरशाही में सुधार के लिए अकेले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह कुछ नहीं कर सकते .
भोपाल जैसे सुरम्य शहर में पूर्व और वर्तमान नौकरशाहों की जो हैसियत है उसे देखकर आप अनुमान लगा सकते हैं कि वे ही इस कलिकाल के अमीर -उमराव हैं.उनके ऊपर कोई क़ानून लागू नहीं होता.वे चाहे सचिवालय के शीर्ष पर हों या पुलिस मुख्यालय के शीर्ष पर,वे महाबली हैं.उनके खिलाफ शिकायतों पर संज्ञान लेना आसान काम नहीं है.और इसके लिए जिम्मेदार केवल और केवल प्रदेश का राजनीतिक नेतृत्व है ,दूसरा और कोई नहीं.सजा उसे मिलना चाहिए.
बहरहाल तिवारी और मिश्रा के खिलाफ कार्रवाई से नौकरशाही के व्यवहार में रत्ती भर भी तब्दीली आ जाये तो प्रदेश की जनता को राहत मिल सकती है.लेकिन सचमुच में ऐसा होगा इसमें मुझे संदेह है.इस संदेह की वजह मेरा अपना तजुर्बा है.मुमकिन है की आप इसके लिए मुझे भी जिम्मेदार मान लें ,लेकिन ये भी चलेगा,क्योंकि अब हमारी बिरादरी भी भी तो मोथरी हो चुकी है.