कैप्टन विक्रम बत्रा परमवीर चक्र से सम्मानित भारत के सैनिक थे। इन्हें यह सम्मान 1999 में मरणोपरांत मिला। सात जुलाई 1999। कारगिल युद्ध में जम्मू एंड कश्मीर रायफल्स के ऑफिसर कैप्टन विक्रम बत्रा अपने टुकड़ी के साथ प्वाइंट 4875 पर मौजूद दुश्मनों से लोहा ले रहे थे। तभी उनके जूनियर ऑफिसर लेफ्टिनेंट नवीन के पास एक विस्फोट हुआ। इसमें नवीन के दोनों पैर बुरी तरह जख्मी हो गए। कैप्टन बत्रा नवीन को बचाने के लिए पीछे घसीटने लगे, तभी उनकी छाती में गोली लगी और 7 जुलाई 1999 को भारत का ‘शेर शाह’ शहीद हो गया। अलसुबह चोटी पर तिरंगा तो लहराया लेकिन इस देश ने अपना एक जाबांज लाल खो दिया। उनके आखिरी शब्द थे- जय माता दी। आज परमवीर चक्र विजेता शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा की जयंती है।
जंग के मैदान से प्यार की रूहानी जमीन तक, विक्रम बत्रा ने पूरे समर्पण से अपने कर्तव्य का निर्वाह किया। युद्ध के मैदान का देश गवाह है कि कैसे अपनी रणनीति और जांबाजी से उन्होंने कारगिल युद्ध के समय प्वाइंट 5140, प्वाइंट 4750 और प्वाइंट 4875 से दुश्मनों को खदेड़ दिया था। प्यार की गवाह उनकी गर्लफ्रेंड डिंपल चीमा हैं। कारगिल वार से लौटकर वो डिंपल से शादी करने वाले थे। एक न्यूज वेबसाइट को इंटरव्यू देते हुए डिंपल ने बताया था कि जब एक बार उन्होंने विक्रम से शादी के लिए कहा तो उन्होंने चुपचाप ब्लेड से अपना अंगूठा काटकर उनकी मांग भर दी थी। विक्रम वापस तो लौटे लेकिन तिरंगे में लिपटकर। युद्ध के मैदान में कही गई विक्रम बत्रा की बातें पूरे देश में छा गई।
– विक्रम बत्रा का जन्म 9 सितंबर 1974 को हिमाचल प्रदेश के पालमपुर जिले के घुग्गर में हुआ था। उनके पिता का नाम जीएम बत्रा और माता का नाम कमलकांता बत्रा है।– उनकी शुरुआती पढ़ाई गांव में ही हुई। उन्होंने चंडीगढ़ की पंजाब यूनिवर्सिटी से उच्च शिक्षा प्राप्त की। यहीं डिंपल से उनकी पहली मुलाकात हुई थी। 1996 में विक्रम ने इंडियन मिलिटरी एकेडेमी की परीक्षा पास की। उन्हें मर्चेंट नेवी में नौकरी मिली थी लेकिन उन्होंने सेना में जाने का फैसला किया। 6 दिसंबर 1997 को 13 जेके राइफल्स में विक्रम बत्रा को लेफ्टिनेंट के पद पर तैनाती मिली। सेना में तैनाती मिलने के डेढ़ साल के अंदर ही उन्हें कारगिल वार में भेज दिया गया। हम्प और राकी नाब में अदम्य उत्साह से विजय मिलने के बाद उन्हें कैप्टन बना दिया गया। इसके बाद उन्होंने एक के बाद एक कई दुर्गम चोटियां फतेह की। 20 जून 1999 को करीब 3 बजे प्वाइंट 5140 में तिरंग फहराने के बाद उन्होंने कहा था ये दिल मांगे मोर।एजेन्सी।