बापू राष्ट्रपिता महात्मा गांधी। राष्ट्रपिता का संबोधन सबसे पहले नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने ही दिया था। एक सप्ताह पहले ही हमने नेताजी की जयंती मनायी थी। नेता जी सुभाषचन्द्र बोस के कुछ विचार राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से नहीं मिलते थे। गांधी जी के अमोघ अस्त्र थे सत्य और अहिंसा लेकिन सुभाष बाबू भारत से ब्रिटिश हुकूमत को उखाड़ फेंकने के लिए हिंसा का रास्ता ही बेहतर समझते थे। इसीलिए उन्होंने सिद्धांत बनाया कि दुश्मन के दुश्मन को दोस्त बनाओ। नेताजी ने हिटलर और मुसोलिनी से दोस्ती की, अंग्रेजों के खिलाफ बाकायदा सेना बनाकर लड़े लेकिन ब्रिटिश हुकूमत को नहीं हटा पाये। गांधी जी ने घोषित रूप से कोई सेना नहीं बनायी लेकिन पूरा देश उनके पीछे-पीछे चल पड़ा। उनके पीछे चलने वालों के हाथ में कोई शस्त्र नहीं था लेकिन देश की खातिर मर-मिटने की अदम्य ताकत थी। गांधी जी ने नारा दिया करो या मरो, अंग्रेजों भारत छोड़ो। अंग्रेजों ने लाख जतन किये लेकिन उन्हें 15 अगस्त 1947 को भारत छोड़ना ही पड़ा। भारत छोड़ते समय अंग्रेज देश के दो टुकड़े कर गये। बापू बहुत दुखी थे लेकिन पाकिस्तान को अपनी अलग व्यवस्था के लिए करोड़ों रूपये भी दिलवाये। यह बात कई लोगों को अच्छी नहीं लगी। एक तो लाशों के ऊपर से गुजर कर पाकिस्तान बना था। देश के दोनों तरफ। एक तरफ पूर्वी पाकिस्तान जो अब बंगलादेश बन गया है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की तकलीफ को कोई नहीं समझ पा रहा था बल्कि कई लोग जबर्दस्त भ्रम का शिकार थे। उन्हीं में एक नाथूराम गोड्से था – राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का सदस्य उसे लग रहा था कि यह सब बापू के चलते हुआ है। उसने बहुत ही क्रूर निर्णय लिया और 30 जनवरी 1948 को बापू जब प्रार्थना सभा में पहुंचे तो गोडसे ने बापू के चरण स्पर्श करके उन्हें गोलियों से छलनी कर दिया। पूरा देश शोक में डूब गया। हमेशा मुस्कराने वाले पंडित जवाहर लाल नेहरू ने बहुत ही गमगीन होकर राष्ट्र को बताया बापू नहीं रहे।
यह सब याद करते-करते आंखें भर आती हैं, कृतध्नता है हम सभी का सिर झुकजाता है कि अपने राष्ट्रपिता को हमारे ही बीच के एक युवक ने गोलियों से छलनी कर दिया जिनको अपराजेय समझी जाने वाली ब्रितानिया फौज कभी फूल की छड़ी भी लगाने की जुर्रत नहीं कर सकी थी।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का पूरा नाम था मोहनदास कर्मचन्द गांधी। गुजरात के पोरबंदर नामक स्थान पर 2 अक्टूबर 1869 को उनका जन्म हुआ था। पिता का नाम था करमचन्द गांधी। पंजाब में जिस तरह किसी व्यक्ति को उसको गांव के नाम से पहचाना जाता है और गांव का नाम उसके नाम से जुड़ा रहता है, उसी तरह गुजरात में पिता का नाम बेटे के नाम के साथ जोड़ा जाता है।
गांधी जी की माता का नाम पूतलीबाई था और वह धार्मिक विचारों की थीं। बच्चे को पौराणिक कहानियां सुनाया करती थीं और बच्चा उन कहानियों को आत्मसात कर लेता था। सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र की कहानी सुनी तो निश्चय कर लिया कि हमेशा सत्य बोलूंगा। श्रवण कुमार की कहानी सुनी तो तय कर लिया कि जितना संभव हो सकेगा, माता-पिता की सेवा करूंगा। गांधी जी की प्रारभिक शिक्षा स्थानीय स्तर पर हुई। उन्होंने 1887 में मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की और 1891 में बैरिस्टर बन कर लंदन से वापस लौटे। अपने से उम्र में कई साल बड़ी कस्तूरबा से उनका विवाह हुआ।
भारत में बैरिस्टरी कर रहे थे कि 1893 में दादा अब्दुल्ला के अनुरोध पर दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा। दादा अब्दुल्ला की व्यापार कम्पनी के खिलाफ वहां मुकदमा दर्ज हुआ था। इसी मुकदमें के सिलसिले में गांधी जी दक्षिण अफ्रीका गये थे लेकिन वहां पर काले-गोरे के बीच शर्मनाक अन्तर देखकर और अंग्रेजों के अत्याचार से दुखी होकर आंदोलन छेड़ दिया। गांधी जी स्वयं अत्याचार का शिकार हुए। उनको ट्रेन के उस डिब्बे से सामान समेत नीचे फेंक दिया गया जिसमें अंग्रेज परिवार यात्रा कर रहा था। यह बात गांधी जी को चुभ गयी और उन्होंने भारतीय समुदाय के लोगों को एकत्रित करके इण्डियन नेशनल कांग्रेस की स्थापना 1894 में की। वहां ब्रिटिश हुकूमत ने पहचान पत्र साथ में रखना अनिवार्य कर दिया था। रंगभेद तो था ही इसके खिलाफ गांधी जी ने सत्याग्रह आंदोलन शुरू किया।
दक्षिण अफ्रीका में रहकर गांधी जी ने लम्बी लड़ाई लड़ी और वहां के लोगों को कई अधिकार दिलवाए। सत्य के लिए आग्रह अर्थात सत्याग्रह के अहिंसात्मक अस्त्र का सबसे पहले प्रयोग दक्षिण अफ्रीका में ही सफलता पूर्वक किया गया था। महात्मागांधी 1915 में भारत लौटे। उस समय दादा भाई नैरोजी, अबुल कलाम आजाद, विपिनपाल बोस और लाला लाजपत राय जैसे कई स्वाधीनता सेनानी देश को आजाद कराने की लड़ाई लड़ रहे थे। महात्मा गांधी ने गुजरात की साबरमती नदी के किनारे साबरमती सत्याग्रह आश्रम स्थापित किया। यह आश्रम अहमदाबाद में है और आज भी वहां जाने पर गांधी जी की स्मृतियां झलकने लगती हैं। यहां पर कांग्रेस ने उन्हें अपना मार्गदर्शन मान लिया। दक्षिण अफ्रीका से जो शोहरत लेकर गांधी जी लौटे थे, उसके बाद कोई सवाल ही नहीं उठ सकता था। गांधी जी ने अंग्रेज सत्ता के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिये। नमक जैसी अतिआवश्यक चीज पर भी अंग्रेजों का हक था। गांधी जी ने नमक बनाकर अंग्रेजों का कानून तोड़ा। इसके लिए ब्रिटिश सरकार ने उन्हें गिरफ्तार किया लेकिन ज्यादा दिन जेल में नहीं रख सकी। पूरा देश उनके पीछे खड़ा था।
गांधी जी ने देश को आजाद कराना ही एक मात्र लक्ष्य बना रखा था। इसके लिए 1919 में सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू किया गया। ब्रिटिश सत्ता का सकारात्मक रूख नहीं दिखा तो 1920 में असहयोग आंदोलन हुआ लोकमान्य तिलक की 1920 में जब ब्रिटिश फौजों के लाठी चार्ज के चलते मौत हो गयी तो एक तरफ क्रांतिकारियों ने अपना ऐक्शन तेज कर दिया तो दूसरी तरफ राष्ट्रीय सभा का नेतृत्व महात्मा गांधी को सौप दिया गया। गांधी जी ने हरिजन नाम से एक अखबार भी शुरू किया जिसमें ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ देश की जनता को जागरूक किया जाता था। द्वितीय विश्व युद्ध में महात्मा गांधी ने देशवासियों से ब्रिटेन के लिए न लड़ने का आग्रह किया था, इससे अंग्रेज नाराज हुए और गांधी जी को जेल भेज दिया। गांधी जी जेल पहुंचे तो देश में आंदोलन और तेज हो गया। अंततः अंग्रेजो को 1947 में भारत छोड़ना पड़ा।
दुनिया के इतिहास में यह पहली आजादी थी जो अहिंसा के रास्ते मिली कोई युद्ध नहीं हुआ और इस समर के नायक थे बापू-राष्ट्रपिता महात्मा गांधी । (हिफी)
