स्मृति शेष। ओपी रल्हन, 21 अगस्त 1928 को स्यालकोट में जन्मे थे। 1946 में फिल्म इंडस्ट्री में दाखिल हुए। जो भी काम मिला, कर लिया। क्लैपर ब्यॉय से लेकर ऑफिस असिस्टेंट तक। और फिर असिस्टेंट डायरेक्टर और स्क्रीनप्ले-डायलॉग राइटर भी। लेकिन मंज़िलें और भी हैं। कभी तो मिलेगी बहारों के मंज़िल राही। आख़िर कामयाबी मिली। प्रोड्यूसर एफ.सी.मेहरा ने ‘मुजरिम’ (1958) में डायरेक्टर का चांस दिया। स्क्रीनप्ले भी रल्हन का। स्टार्स शम्मी कपूर-रागिनी और जॉनी वॉकर। म्यूज़िकल क्राइम थ्रिलर। बॉक्स ऑफिस पर औसत। रल्हन वहीं के वहीं रहे। कोई काम नहीं मिला, बावजूद इस पहचान के कि जुबली स्टार राजेंद्र कुमार की बहन उनसे ब्याही है। आख़िरकार, एक्टिंग में हाथ आज़माया। देवेंद्र गोयल की ‘प्यार का सागर’ (1961) में। राजेंद्र कुमार-मीना लीड में। हीरोइन थे। रल्हन बेहतरीन कॉमेडियन के तौर पर पहचाने गए।
लेकिन रल्हन की मंज़िल तो बेहतरीन प्रोड्यूसर-डाइरेक्टर बनने की थी। साले राजेंद्र कुमार ने मदद ही। 1963 में ‘गहरा-दाग़’ बनाई, राजेंद्र कुमार-माला सिन्हा। हिट रही फिल्म। इस फिल्म में मुमताज़ भी थी। एक्स्ट्रा से प्रोमोट होकर राजेंद्र कुमार की छोटी बहन बनी और कालांतर में फ़िल्म इंडस्ट्री की टॉप क्लास हीरोइन और ‘तांगेवाला’ (1972) में राजेंद्र कुमार के साथ लीड रोल में। रल्हन ने आगे भी कई कलाकारों की किस्मत चमकाई। 1966 में ‘फूल और पत्थर’ बनायी। मीना कुमारी के साथ धर्मेंद्र। उस साल की सुपर-डुपर हिट। इसमें रल्हन खुद भी सड़कराम के किरदार में। धर्मेंद्र की ज़िंदगी बदल गयी। एकाएक ‘ए-ग्रेड’ हीरो हो गए। हिंदी फिल्मों के पहले मस्कुलर ‘ही-मैन’. अब ये एक अलग कहानी है कि धर्मेंद्र से रल्हन खुन्नस रखते थे। वो किसी और को हीरो चाहते थे, लेकिन राजेंद्र कुमार के दबाव में उन्हें रखना पड़ा। कई मौके भी आये ऐसे कि उन्हें धर्मेंद्र को निकालने का और धर्मेंद्र भी कई बार सेट से गुस्सा होकर चले गए। लेकिन बीच में फिर आये राजेंद्र कुमार। आखिर पैसा तो राजेंद्र कुमार का ही लगा था।
रल्हन के अगली मंज़िल थी, तलाश -1969. उस दौर की महँगी फिल्म, एक करोड़। उन दिनों राजेंद्र कुमार का सितारा रसातल की ओर खिसक रहा था, और शर्मीला टैगोर थी, टॉप एक्ट्रेस। एसडी बर्मन का हिट म्युज़िक। 1973 में ‘हलचल’ जिसने बॉक्स ऑफिस पर हलचल भले नहीं मचाई, लेकिन फिल्म इंडस्ट्री को बहुत कुछ दिया। मॉडल कबीर बेदी और मिस इंडिया ज़ीनत अमान। गुज़रे ज़माने की मशहूर एक्ट्रेस सरदार अख़्तर की वापसी हुई। मेन लीड में रल्हन थे। बहुत इंटरेस्टिंग प्लाट था। पीटर बने किरदार रल्हन को पता चला कि कोई महेश जेटली नाम का आदमी अपनी बीवी का खून करने जा रहा है। पीटर को टेलीफोन डायरेक्टरी में तीन महेश जेटली मिले और तीनों की बीवियों को आगाह कर दिया। आखिर में एंटी-क्लाइमैक्स हुआ। ये वो दौर था जब एंटी-क्लाइमैक्स के लिए दर्शक तैयार नहीं था।
1973 में रल्हन ने अमिताभ बच्चन-मुमताज़ को लेकर ‘बंधे हाथ’ बनाई। उस वक़्त तक अमिताभ बहुत बड़ा नाम नहीं थे। लेकिन इसकी रिलीज़ के बाद उनकी बहुत प्रशंसा हुई। ‘ज़ंज़ीर’ इसके बाद रिलीज़ हुई थी। और इसकी कामयाबी के जश्न में रल्हन की ‘बंधे हाथ’ का कंट्रीब्यूशन भुला दिया गया। 1977 में रल्हन ने मल्टी स्टार फिल्म ‘पापी’ प्रोड्यूस की। सुनील दत्त-संजीव कुमार-रीना रॉय-ज़ीनत अमान,-मदन पुरी-प्रेम चोपड़ा। लेकिन डूब गए रल्हन। रल्हन की ज़िंदगी ने एक बार फिर पलटा खाया। कृष्णा शाह के इंटरनेशनल ‘शालीमार’ (1978) में। एक मुद्दत बाद अपने प्रोडक्शन से बाहर की फिल्म में। हॉलीवुड के स्टार रेक्स हैरिसन और धर्मेंद्र-ज़ीनत अमान-शम्मी कपूर। इस मर्डर मिस्ट्री में रल्हन यानी रोमियो हीरे के चक्कर में जान गवां बैठा। इस फिल्म ने 1965 की मिस्ट्री ‘गुमनाम’ की याद दिला दी थी। रल्हन ने 1982 में फिर एक कोशिश की, प्यास। ज़ीनत के साथ नया हीरो कंवलजीत। रल्हन भोला के सहृदय किरदार में। फिल्म बहुत अच्छी थी। लेकिन बात बनी नहीं। रल्हन इसके बाद से गायब हो गए।
20 अप्रैल 1999 में वो तब न्यूज़ बने, जब वो इस दुनिया से विदा हुए। रल्हन की ख़ासियत ये थी कि वो सहज थे लेकिन एक ही तरह की एक्टिंग करते थे। वो बहुत अच्छे कॉमेडियन बन सकते थे, लेकिन उन्होंने प्रोड्यूसर-डायरेक्टर का कैरीयर ज़्यादा पसंद किया और इसमें वो काफी हद तक कामयाब भी रहे।ओपी रल्हन की पत्नी मनोरमा अभिनेता राजेंद्र कुमार की बहन थीं ।ओपी रल्हन के कोई पुत्र नहीं था। उनके पोते अरमान (उनकी बेटी रूपल्ली के बेटे) ने बॉलीवुड में अपने दादा की विरासत को जारी रखने के लिए अपने दादा का अंतिम नाम ‘रल्हन’ लिया है। साभार