अर्नेस्तो “चे” गेवारा (14 जून 1928 ), अर्जेन्टीना के मार्क्सवादी क्रांतिकारी थे जिन्होंने क्यूबा की क्रांति में मुख्य भूमिका निभाई। इन्हें एल चे या सिर्फ चे भी बुलाया जाता है। “चे” गेवारा डॉक्टर, लेखक, गुरिल्ला नेता, सामरिक सिद्धांतकार और कूटनीतिज्ञ भी थे, जिन्होंने दक्षिणी अमरीका के कई राष्ट्रों में क्रांति लाकर उन्हें स्वतंत्र बनाने का प्रयास किया। इनकी मृत्यु के बाद से इनका चेहरा सारे संसार में सांस्कृतिक विरोध एवं वामपंथी गतिविधियों का प्रतीक बन गया है।
चिकित्सीय शिक्षा के दौरान चे पूरे लातिनी अमरीका में काफी घूमे। इस दौरान पूरे महाद्वीप में व्याप्त गरीबी ने इन्हें हिला कर रख दिया। इन्होंने निष्कर्ष निकाला कि इस गरीबी और आर्थिक विषमता के मुख्य कारण थे एकाधिप्तय पूंजीवाद, नवउपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद, जिनसे छुटकारा पाने का एकमात्र तरीका था – विश्व क्रांति। इसी निष्कर्ष का अनुसरण करते हुए इन्होंने गुआटेमाला के राष्ट्रपति याकोबो आरबेंज़ गुज़मान के द्वारा किए जा रहे समाज सुधारों में भाग लिया। उनकी क्रांतिकारी सोच और मजबूत हो गई जब 1954 में गुज़मान को अमरीका की मदद से हटा दिया गया। इसके कुछ ही समय बाद मेक्सिको सिटी में इन्हें राऊल कास्त्रो और फिदेल कास्त्रो मिले और ये क्यूबा की 26 जुलाई क्रांति में शामिल हो गए। चे शीघ्र ही क्रांतिकारियों की कमान में दूसरे स्थान तक पहुँच गए और बातिस्ता के राज्य के विरुद्ध दो साल तक चले अभियान में इन्होंने मुख्य भूमिका निभाई।
क्यूबा की क्रांति के पश्चात चे ने नई सरकार में कई महत्त्वपूर्ण कार्य किए और साथ ही सारे विश्व में घूमकर क्यूबा के समाजवाद के लिए अंतर्राष्ट्रीय समर्थन जुटाया। इनके द्वारा प्रशिक्षित सैनिकों ने पिग्स की खाड़ी आक्रमण को सफलतापूर्वक पछाड़ा।
“चे” गेवारा सोवियत संघ से नाभिकीय प्रक्षेपास्त्र ले कर आए, जिनसे 1962 के क्यूबन प्रक्षेपास्त्र संकट की शुरुआत हुई और सारा विश्व नाभिकीय युद्ध के कगार पर पहुँच गया। “चे” गेवारा ने बहुत कुछ लिखा भी है, इनकी सबसे प्रसिद्ध कृतियाँ हैं – गुरिल्ला युद्ध की नियम-पुस्तक और दक्षिणी अमरीका में इनकी यात्राओं पर आधारित मोटरसाइकल डायरियाँ। 1965 में चे क्यूबा से निकलकर कांगो पहुंचे जहाँ इन्होंने क्रांति लाने का विफल प्रयास किया। इसके बाद ये बोलिविया पहुँचे और क्रांति उकसाने की कोशिश की, लेकिन पकड़े गए और इन्हें 9 अक्टूबर 1967 गोली मार दी गई।
मृत्यु के बाद भी चे को आदर और धिक्कार दोनों ही भरपूर मिले हैं। टाइम पत्रिका ने इन्हें 20वीं शताब्दी के 100 सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों की सूची में शामिल किया। चे की तस्वीर गेरिलेरो एरोइको वीर गुरिल्ला को विश्व की सबसे प्रसिद्ध तस्वीर माना गया है। एजेन्सी