एजेंसी। कुंदन शाह ने पुणे के भारतीय फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान से निर्देशन की पढ़ाई की थी और 1983 में आयी ‘जाने भी दो यारो’ से फीचर फिल्मों की दुनिया में कदम रखा था। हालांकि फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल नहीं रही, इसने समय के साथ कल्ट फिल्म का दर्जा हासिल कर लिया।
फिल्म के लिए कुंदन शाह को उनका पहला और एकमात्र राष्ट्रीय पुरस्कार किसी निर्देशक की पहली सर्वश्रेष्ठ फिल्म के लिए इंदिरा गांधी पुरस्कार दिया गया था। समय के साथ ‘जाने भी दो यारो’ भारतीय सिनेमा के इतिहास के सबसे लोकप्रिय व्यंग्यात्मक फिल्म बन गयी। कुंदन शाह ने 2015 में अपने पूर्व संस्थान एफटीआईआई में छात्र विरोध प्रदर्शन के दौरान राष्ट्रीय पुरस्कार लौटा दिया था।
उन्होंने 1986 में ‘नुक्कड़’ धारावाहिक के साथ टेलीविजन की दुनिया में पर्दापण किया था। 1988 में उन्होंने मशहूर हास्य धारावाहिक ‘वागले की दुनिया’ का निर्देशन किया जो कॉर्टूनिस्ट आर के लक्ष्मण के आम आदमी के किरदार पर आधारित थी।कुंदन शाह ऐसे निर्देशक थे, जिन्होंने भारतीय सिनेमा में पहली बार व्यंग्यात्मक कॉमेडी विधा को लोगों के सामने रखा। उनकी फिल्म ‘जाने भी दो यारों’ को भारतीय सिनेमा की क्लासिक फिल्म माना जाता है। पहले फिल्में और फिर कई टीवी सीरियल बनाने के बाद कुंदन शाह ने सिनेमा से सात साल का ब्रेक लिया । कुंदन शाह ने 1993 में शाहरूख खान अभिनीत ‘कभी हां कभी ना’ के साथ बॉलीवुड में वापसी की थी । 2000 में आयी उनकी प्रीति जिंटा, सैफ अली खान की फिल्म ‘क्या कहना’ बॉक्स ऑफिस पर सफल रही थी। इसके बाद भी उन्होंने कुछ फिल्में बनायीं, लेकिन व्यवसायिक सफलता नहीं मिल सकी थी । कुंदन शाह का जन्म 19 अक्तूबर 1947, को हुआ था ,07 अक्तूबर 2017 को दिल का दौरा पड़ने से उनका देहांत हुआ था।