फ्रेडरिक मैक्समूलर का जन्म 06 दिसम्बर 1823 को डेसो में हुआ। उनके पिता विलहेल्म म्यूलर पुस्तकालयाध्यक्ष थे। फ्रेडरिक मैक्समूलर ने 1841 में निकालाई स्कूल लिपिजिग से, हाईस्कूल और अठारह महीनों से भी कम समय में सितम्बर 1843 को ‘भाषा विज्ञान’ में लिपिजिग विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की डिग्री प्राप्त की।फ्रेडरिक मैक्समूलर को अध्यापक हरमैन ब्रोरवोस ने संस्कृत पढ़ने की प्रेरणा दी।
अप्रैल 1844 में, वह फ्रान्ज़ बाप से तुलनात्मक व्याकरण एवं भाषा विज्ञान और फ्रेड्रिक श्लेगल से दर्शन शास्त्र पढ़ने के लिए बर्लिन विश्वविद्यालय गए तथा 10 मार्च 1845 को पेरिस में प्रोफेसर यूगोन बर्नोफ के पास ऋग्वेद पढ़ने गए । यहाँ फ्रेडरिक मैक्समूलर ने बर्नोफ के सायण भाष्य आधारित वेद पर व्याखयान सुने।फ्रेडरिक मैक्समूलर को फ्रेन्च भाषा न आने के कारण कठिनाई रही तथा जीविका के लिए प्राच्यविदों के लिए संस्कृत के प्राचीन ग्रन्थों का, मिलान करते थे । इधर इसी समय इंग्लैंड में प्रो. एच.एच. विल्सन को युवा संस्कृत विद्वान की आवश्यकता थी, और बर्नोफ ने इसके लिए मैक्समूलर का नाम सुझाया। बेरोन जे. बान बुनसन, जो लंदन में पू्रशियन मिनिस्टर तथा प्रभावशाली व्यक्ति थे ने मैक्समूलर को पिता समान संरक्षण दिया। उन्होंने ‘क्रिश्चियनिटी एण्ड मैनकाइंड’ पुस्तक भी लिखी थी। उनके के सहयोग से फ्रेडरिक मैक्समूलर जून 1845 को लंदन पहुँच गए तथा जीवन भर विभिन्न पदों पर ऑक्सफोर्ड यूनीवर्सिटी से जुड़े रहे।
1859 में उनका विवाह जिओर्जिना एडीलेड ग्रीनफेल से हुभा । उनकी विशेषता थी कि वे सबसे बड़े विदेशी भारतविद् के रूप में जाने जाते थे । उन्हें हिंदी, संस्कृत, अंग्रेजी व जर्मन भाषाओं पर समान अधिकार था । मैक्समूलर काफी हद तक रामकृणा परमहंस से प्रभावित थे । उन्होंने वेदों का भी अनुवाद किया । उन्होंने वेद और भारतीय चिंतन, दर्शन पर अनेक पुस्तकें लिखीं । 28 अक्तूबर, 1900 को उनका निधन ऑक्सफोर्ड में हुआ फ्रेडरिक मैक्समूलर का संबंध अनेक यूरोपीय तथा एशियाई संस्थाओं से था। वो बोडलियन लाइब्रेरी का क्यूरेटर तथा यूनिवर्सिटी प्रेस का डेलीगेट थे। उनकी मृत्यु के बाद 1903 में उनकी रचनाओं का संग्रह प्रकाशित हुआ था। एजेन्सी