लेफ्टिनेंट-कर्नल जेम्स टॉड ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी के एक अधिकारी तथा भारतविद थे। इंग्लेंड निवासी जेम्स टाॅड 1817-18 में पश्चिमी राजपूत राज्यों के पाॅलिटिकल एजेंट बन कर उदयपुर आए। इन्होंने 5 वर्ष तक राजस्थान की इतिहास-विषयक सामग्री एकत्र की एवं इंग्लैंड जा कर 1829 में “एनल्स एंड एंटीक्विटीज ऑफ राजस्थान अथवा सेंट्रल एंड वेस्टर्न राजपूत स्टेट्स ऑफ इंडिया” है। इस रचना में सर्वप्रथम ‘राजस्थान’ शब्द का प्रयोग हुआ। कर्नल जेम्स टॉड को राजस्थान के इतिहास-लेखन का पितामह माना जाता है। उनका नाम और काम, इतिहास और यात्रा-साहित्य – दोनों के अध्येताओं में बड़े सम्मान से लिया जाता है।
20 मार्च 1782 को स्कॉटलैंड के इस्लिंगटन में जन्मे टॉड की नियुक्ति केवल 17 बरस की किशोर आयु में ईस्ट इण्डिया कम्पनी में हो गई थी। भारत में कोलकाता, हरिद्वार और दिल्ली उनके प्रमुख कार्यक्षेत्र थे। अपनी गहन अन्वेषण और शोध प्रवृत्ति के कारण इनकी सेना में कमीशंड पद पर सीधी नियुक्ति हो गयी जहाँ वह भौगोलिक मानचित्र बनाने के विशेषज्ञ-अभियंता के रूप में प्रतिष्ठित हुए।
1813 में टॉड को कप्तान के पद पर पदोन्नति मिली। रेज़िडेंट सर रिचर्ड स्ट्रेची ने इन्हें अपना सहायक नियुक्त किया। 1818 से 1822 तक टॉड पश्चिमी राजपूताने के ‘पोलिटिकल एजेंट’ के रूप में कार्यरत रहे। ब्रिटिश राज के राजनैयिक प्रतिनिधि के तौर पर राजस्थान में इनका योगदान उल्लेखनीय था।
- “His successes were plentiful and the Oxford Dictionary of National Biography notes that Tod was… so successful in his efforts to restore peace and confidence that within less than a year some three hundred deserted towns and villages were re-peopled, trade revived, and, in spite of the abolition of transit duties and the reduction of frontier customs, the state revenue had reached an amount never before known. During the next five years Tod earned the respect of both the chiefs and the people; and was able to rescue more than one princely family, including that of the ranas of Udaipur, from the destitution to which they had been reduced by Mahratta raiders.” [1]
1806 में अपनी फौज की नौकरी के दौरान पहली बार वह उदयपुर पहुँचे। राजपूताना और आसपास के प्रदेशों के टोपोग्राफिकल नक़्शे तैयार करते हुए उन्होंने स्थानीय इतिहास के कई मौखिक और अनगिनत लिखित अभिलेखों से साक्षात्कार किया और तय किया कि वह ‘राजपूताना’ पर नया ग्रन्थ लिख कर इस के इतिहास का पुनर्लेखन करेंगे। 1819 में अक्टूबर में जोधपुर पहुँचे कर्नल टॉड ने वहाँ रह कर पुरातत्व पर गहन शोध-कार्य किया और जाते समय टॉड ने मार्ग में कई मुद्राओं और अभिलेखों का संग्रहण किया जो इतिहास लेखन के लिये अत्यंत उपयोगी स्रोत साबित हुए। बाद में अजमेर, पुष्कर, जयपुर, सीकर, झुंझनू, पाली, मेड़ता आदि स्थानों पर रह कर अपने ग्रन्थ के लिए आधार-सामग्री जुटाई। कड़ी और अनथक मेहनत के बाद 14 जनवरी 1823 को मुम्बई से इनका ग्रन्थ ‘ ट्रेवल्स इन वेस्टर्न इण्डिया’ प्रकाशित हुआ। 1829 में इनकी कालजयी रचना ‘एनल्स एंड एंटीक्विटीज़ ऑफ़ राजस्थान ‘ का पहला खण्ड और 1934 में दूसरा खंड प्रकाशित हुआ।
प्रख्यात इतिहासकार गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने (कर्नल)”टॉड साहब का जीवन-चरित्र” शीर्षक से एक लम्बा परिचयात्मक निबन्ध लिखा है जो कर्नल जेम्स टॉड के इतिहास के (पंडित) गिरिधर शुक्ल द्वारा किये गए हिन्दी अनुवाद में प्रकाशित और पुनः २०१२ में ‘साहित्यागार’ द्वारा प्रकाशित ग्रन्थ ‘राजस्थान का इतिहास’ (दो खंड) में पुनर्प्रकाशित किया गया है। जो पाठक कर्नल के जीवन की मुख्य घटनाएं और उनकी तिथियाँ या वर्ष जानना चाहें, उनके लिए इतिहासकार गौरीशंकर हीराचंद ओझा का यह आलेख पठनीय है।
कर्नल टॉड सर्वेक्षण के सिलसिले में अजमेर और उदयपुर के कई स्थानों पर रहे थे- उनमें भीम नामक कस्बे के निकट समुद्र तल से 3281 फिट ऊंचाई पर बसा का एक छोटा सा गाँव बोरसवाडा भी था- जो जंगलों और अरावली-पहाड़ों से घिरा हुआ है। यहाँ से कई किलोमीटर दूर का भूभाग स्पष्ट दिखलाई देता है। उन्हें यह जगह पसंद आई तो उदयपुर के महाराजा भीम सिंह की सहमति से स्वयं के लिए बोरसवाडा में एक छोटा सा किला बनवा लिया। महाराज भीम सिंह ने कर्नल की सेवाओं से प्रभावित हो कर गाँव का नाम टॉडगढ़ रख दिया, जो कालान्तर में टाडगढ़ कहलाने लगा। टाडगढ़ आज अजमेर जिले की एक तहसील का मुख्यालय है। कर्नल टॉड के किले में आज एक सरकारी स्कूल चलता है।इनका विवाह 16 नवम्बर 1826 को लन्दन के डॉ॰ क्लटरबक की बेटी जूलिया क्लटरबक से हुआ। उनके एक पुत्री और दो पुत्र हुए। दिन रात पुस्तकों और अनुसन्धान में डूबे रहने वाले इस अद्वितीय अंग्रेज इतिहासकार की मृत्यु केवल 53 साल की उम्र में,18 नवम्बर 1835 को इंग्लेंड में हो गई।एजेन्सी।