रेशमा सितारा-ए-इम्तियाज़ से सम्मानित पाकिस्तानी लोक गायिका थीं। वो भारत में भी काफ़ी लोकप्रिय थी। रेशमा का जन्म राजस्थान की रतनगढ़ तहसील के लोहा गाँव में 1947 में बंजारों के परिवार में हुआ। विभाजन के कुछ दिनों के बाद उनका परिवार पाकिस्तान में जा बसा। रेशमा अनपढ़ थी और अनौपचारिक तरीक़े से बोलती थी। उन्होंने हमेशा भारत-पाकिस्तान मित्रता को बढ़ाने की बात की थी। रेशमा ने तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गान्धी के सामने भी गाया था। रेशमा ठेठ पंजाबी बोलतीं थीं। उनका कहना है कि शास्त्रीय संगीत में उनको कोई शिक्षा हासिल नहीं हुई। रेशमा नें इंटरव्यू में कहा है के “मेरा जन्म बीकानेर राजस्थान के पास क़स्बे में सौदागरों के परिवार में हुआ। जन्म का साल तो मुझे मालूम नहीं लेकिन मुझे बताया गया के जब मुझे 1947 में पाकिस्तान लाया गया तो मेरी चंद माह की ही उम्र थी। मेरे परिवार वाले बीकानेर से ऊँट ले जाकर और जगहों पर बेचते थे और वहां से गाय-बकरियां वापस ला कर घर के पास बेचते थे। मैं बंजारों के एक बड़े क़बीले से हूँ और मेरा परिवार हमेशा इधर से उधर सफ़र ही करता रहता था। हम में से कईं अब लाहौर और कराची में बस गए हैं लेकिन जब भी हमें फिर सफ़र याद आता है हम बोरिया-बिस्तर बाँध के चल देतें हैं।” 1947 के विभाजन के बाद, जनवरी 2006 में जब पंजाब के दोनों हिस्सों के बीच लाहोर-अमृतसर बस पहली बार चली तो सबसे पहली बस पर 26 यात्री थे, जिसमे से 15 पाकिस्तान सरकार के अफ़सर थे। बाक़ी यात्रियों में से 7 रेशमा और उनके परिवारजन थे।
रेशमा रेडियो पाकिस्तान पर गाने गाकर मशहूर हुईं थीं। उनके सब से जाने माने गानों में “दमादम मस्त क़लन्दर”, “हाय ओ रब्बा, नहियो लाग्दा दिल मेरा”, “सुन चरख़े दी मिट्ठी-मिट्ठी कूक माहिया मईनु याद आउंदा”, “वे मैं चोरी-चोरी” और “अक्खियाँ नूं रैह्न दे अक्खियाँ दे कोल” शामिल हैं। “अक्खियाँ नूं रैह्न दे अक्खियाँ दे कोल” को राज कपूर ने 1973 में बनी फ़िल्म बॉबी में हिन्दी में अनुवादित कर के “अक्खियों को रहने दे अक्खियों के पास” के रूप में डाला। धीरे-धीरे रेशमा के गाने सीमा पार कर के भारत में लोकप्रिय होने लगे। रेशमा नें पंजाबी और हिन्दी-उर्दू के अलावा सिन्धी, राजस्थानी, पहाड़ी-डोगरी और पश्तो में गाने गाये थे। 1980-90 के अरसे में जब भारत-पाकिस्तान के दरमयान कलाकारों को आने-जाने की कि अनुमति दी गयी, तो रेशमा नें भारत में गाने गाये। सुभाष घई नें अपनी फ़िल्म ‘हीरो’ में उनसे “लम्बी जुदाई” गवाया जो बहुत प्रसिद्ध हुआ था। उनके गले में कैंसर था जिसने उन्हें लील लिया। उनका 3 नवम्बर 2013 को लाहौर (पाकिस्तान) में निधन हो गया था ।एजेन्सी।