जयन्ती पर विशेष। एजेन्सी। उपेन्द्र नाथ अश्क उर्दू एवं हिन्दी के प्रसिद्ध कथाकार तथा उपन्यासकार थे। ये अपनी पुस्तक स्वयं ही प्रकाशित करते थे। उपेन्द्र नाथ अश्क का जन्म जालन्धर, में हुआ था । जालन्धर में प्रारम्भिक शिक्षा लेते समय 11 वर्ष की आयु से ही वे पंजाबी में तुकबंदियाँ करने लगे थे। कला स्नातक होने के बाद उन्होंने अध्यापन का कार्य शुरू किया तथा विधि की परीक्षा विशेष योग्यता के साथ पास की। अश्क जी ने अपना साहित्यिक जीवन उर्दू लेखक के रूप में शुरू किया था किन्तु बाद में वे हिन्दी के लेखक के रूप में ही जाने गए। 1932 में मुंशी प्रेमचन्द की सलाह पर उन्होंने हिन्दी में लिखना आरम्भ किया। 1933 में उनका दूसरा कहानी संग्रह ‘औरत की फितरत’ प्रकाशित हुआ जिसकी भूमिका मुंशी प्रेमचन्द ने लिखी। उनका पहला काव्य संग्रह ‘प्रातः प्रदीप’ 1938 में प्रकाशित हुआ। बम्बई प्रवास में आपने फ़िल्मों की कहानियाँ, पटकथाएँ, सम्वाद और गीत लिखे, तीन फ़िल्मों में काम भी किया किन्तु चमक-दमक वाली ज़िन्दगी उन्हे रास नहीं आई।
उपेंद्रनाथ अश्क ने साहित्य की प्राय: सभी विधाओं में लिखा है, लेकिन उनकी मुख्य पहचान एक कथाकार के रूप में ही है। काव्य, नाटक, संस्मरण, उपन्यास, कहानी, आलोचना आदि क्षेत्रों में वे खूब सक्रिय रहे। इनमें से प्राय: हर विधा में उनकी एक-दो महत्वपूर्ण एवं उल्लेखनीय रचनाएं होने पर भी वे मुख्यत: कथाकार हैं। उन्होंने पंजाबी में भी लिखा है, हिंदी-उर्दू में प्रेमचंदोत्तर कथा-साहित्य में उनका विशिष्ट योगदान है। जैसे साहित्य की किसी एक विधा से वे बंधकर नहीं रहे उसी तरह किसी विधा में एक ही रंग की रचनाएं भी उन्होंने नहीं की। समाजवादी परंपरा का जो रूप अश्क के उपन्यासों में दृश्यमान होता है वह उन चरित्रों के द्वारा उत्पन्न होता है जिन्हें उन्होंने अपनी अनुभव दृष्टि और अद्भुत वर्णन-शैली द्वारा प्रस्तुत किया है। अश्क के व्यक्ति चिंतन के पक्ष को देखकर यही सुर निकलता है कि उन्होंने अपने चरित्रों को शिल्पी की बारीक दृष्टि से तराशा है, जिसकी एक-एक रेखाओं से उसकी संघर्षशीलता का प्रमाण दृष्टिगोचर होता है। 19 जनवरी 1966 को अश्क जी चिर निद्रा में लीन हो गए। उनको 1972 के ‘सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार’ से भी सम्मानित किया गया।