यह है ऐकूलाल संदील,असली कुँवारा बाप,एक मुस्लिम लड़के के पालन पोषण तथा उसकी शिक्षा दीक्षा का अधिकार भारत की सर्वोच्च न्यायालय ने पैतृक माता पिता के रहते इनको दिया है। ऐकूलाल पर भारत के लगभग सभी TV चैनलों ने इसके बलिदान, समर्पण पर कहानी बना कर लाखों रुपये कमाए । आज वह लखनऊ के बलरामपुर हास्पिटल के वार्ड संख्या-2 बेड संख्या 18 पर जीवन की अंतिम सांसे गिन रहे हैं ।
इनके स्वास्थ्य के लिए अब प्रार्थना ही सहारा है।
क्या हैं पूरी दास्ताँ ?
ये कहानी एकूलाल सांदिल की है. एकुलाल को अकबर अपनी दुकान के पास मिला था. उस समय अकबर की उम्र छः साल के आसपास थी. अकबर उस समय बहुत गुमसुम हालत में था और रो रहा था. डॉक्टर के पास के जाने आर पता चला की उसका लीवर कमजोर है, फेफड़ों में इन्फेक्शन है और पैरों में भी इन्फेक्शन है जिसकी वजह से वो चल नहीं पा रहा था. एकुलाल की पडोसी कुसुमावती का भी अकबर के पालन पोषण में बड़ा हाथ रहा. “हम इसको जैसे ही घर लेकर आये इसने रोना शुरू कर दिया. उसने अपना नाम अकबर बताया और जब ये पूछा की वो कहाँ रहता है, उसने कहा की वो पान दरीबा में रहता है.”
कुसुमावती के पांच बच्चे हैं. और वो अकबर का पालन पोषण एक पालक माँ की तरह करती है.
”मै इसको डॉक्टर के पास ले गई और मैंने इसकी मसाज़ भी करी. मुझे लग रहा था की इसका हाथ टूटा हुआ है सो मै इसको इलाज के लिए इटोंजा ले गई “
एकूलाल की खुद की कहानी भी अकबर से मिलती जुलती है. एकुलाल का पालनपोषण भी एक मुस्लिम के द्वारा ही किया गया था.
“मै एक हिन्दू हूँ जिसका पालनपोषण एक मुस्लिम के द्वारा किए गया था. जब मुझे अकबर मिला तो मुझे लगा की अब भगवन मुझसे कह रहे हैं कि अब मेरी बारी है की मै अपने पालक पिता का क़र्ज़ उतारूँ. मुझे कभी भी धर्म बदलने को मजबूर नहीं किया गया तो अब मेरी ज़िम्मेदारी है की मै भी इस बच्चे की ऐसे ही देखभाल करू” – एकूलाल.
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एकूलाल को चौधरी मुजतबा हुसैन ने पालपोस के बड़ा किया था जो की सरकारी कर्मचारी थे और लखनऊ की एतिहासिक बारादरी की देखभाल करना उनकी ज़िम्मेदारी में था. मुजतबा हुसैन ने एकूलाल को इंगलिश, हिंदी और उर्दू लिखाना व पढना सिखाया. एकूलाल खुद तो कभी स्कूल नहीं जा पाए मगर वो नहीं चाहते थे की अकबर के साथ भी ऐसा ही हो इसलिए उन्होंने अपनी कम आय होने के बावजूद अकबर को पढ़ने की ज़िम्मेदारी ली.
“मैंने एकूलाल को तभी से अब्बू के साथ देखा है जब में काफी छोटा था”– चौधरी हसन इमाम, मुजतबा हुसैन के पुत्र।
“अकबर ने प्रार्थमिक विद्यालय, रिफ्यूजी कैंप से पानी शिक्षा शुरू की उसके बाद वो क्वीनस इंटर कॉलेज में आ गया और अब वो मुमताज इंटर कॉलेज, अमीनाबाद में है. मेरी आमदनी बहुत ज्यादा नहीं है मगर मेरी ये कोशिश है की अकबर की स्कूल फीस कभी भी कम न पड़े. “ – एकूलाल
अकबर हर शुक्रवार मस्जिद ज़रूर जाता है. “अभी नमाज़ तो याद नहीं है मगर में जुमे के जुमे मस्जिद ज़रूर जाता हूँ “– अकबर
एकूलाल को अकबर 2002 में मिला था जब की अकबर के माँ-बाप का पता 2007 में चला जब एक न्यूज़ चैनल पर इन दोनों का इंटरव्यू दिखाया जा रहा था. ये इंटरव्यू एक राजनैतिक पार्टी के कैसरबाग ऑफिस में हुआ था.
2002 में छः साल का अकबर उस समय गायब हो गया जब वो अपने पिता के साथ शराब की दूकान पर गया था. नशे में धुत पिता घर वापस आते वक़्त उसको दुकान पर ही भूल आये. अकबर के माता-पिता इलाहबाद में रहते हैं और अकबर इलाहबाद में गुम हुआ था जब की उसको लखनऊ में पाया गया. सबसे अजीब बात ये है की अकबर के गुमशुदा होने के बाद उसके माँ-पिता ने पुलिस में उसकी गुमशुदगी की कोई रिपोर्ट नहीं दर्ज कराई जिसकी वजह से एकूलाल भी अकबर के माँ-बाप को ढूँढने में असमर्थ रहा और इसके बाद उसका दाखिल एक स्कूल में करा दिया. बच्चे का नाम नहीं बदला, वही रखा न की धर्म बदला और इस बच्चे को अपने जीवन का एक मकसद बना कर ये निर्णय लिया की वो शादी नहीं करेगा.
जब अकबर के असली माँ-बाप को अकबर के बारे में पता चला तो उन्होंने अकबर की कस्टडी की मांग की मगर एकूलाल ने मन कर दिया क्यूँ की अकबर एकूलाल को चूर कर कहीं नहीं जाना चाहता था. अकबर के माँ बाप ने एकूलाल पर केस किया की एकूलाल ने अकबर को एक बंधुआ मजदूर की तरह रखा हुआ है. ये मामला 2002 में इलाहबाद हाईकोर्ट में जस्टिस बरकत अली जैदी की अदालत में सुनवाई के लिए आया.
न्यायमूर्ति ने ये आदेश दिया की अकबर एकूलाल के साथ ही रहेगा. बच्चे की माँ का तर्क की बच्चा बंधुआ मजदूर की तरह से रखा गया है, कोर्ट ने सिरे से नकार दिया. उन्होंने अकबर की मार्कशीट पर गौर किया. अकबर की मार्कशीट अच्छी थी और उसके स्कूल में अच्छे नंबर आ रहे थे.
जस्टिस बरकत अली जैदी का कहना था, “अपना देश के धर्मनिरपेक्ष देश है. जाति -धर्म की बातों को न्याय के रस्ते में नहीं आने देना चाहिए. जब अंतर जातीय विवाह हो सकते हैं तो तो अंतर-जातीय या अंतर-धर्म पिता-पुत्र भी हो सकते हैं. “
Allahabad high court appoval |
मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी एकूलाल के पक्ष में ही आया. जस्टिस डी के जैन और एच एल दत्तु की बेंच ने अकबर की जैविक माँ शेहनाज़ से ये सवाल पूछा की जब अकबर के पिता उसको शराब की दूकान पर भूल आये थे और जब अकबर गुम हुआ था उस समय उसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट क्यों नहीं लिखवाई गई? कानूनन अकबर की कस्टडी उसकी माँ को दी जा सकती थी क्यों की इसने कम उम्र के बच्चे की स्वाभाविक गार्जियन उसकी माँ ही होती है मगर बच्चे की मर्ज़ी जानना भी ज़रूरी है, और इस मामले में बच्चा अपने पालक पिता को छोड़ कर नहीं जाना चाहता.
2002 में ऐकूलाल और अकबर को दिल्ली के के एक त्यौहार “फूल वालों की सैर” में पुरस्कृत भी किया गया। “फूल वालों की सैर” एक मुग़ल बादशाह द्वारा शुरू किया गया त्यौहार है। इस त्यौहार को इस्लाम को हिन्दुओं के बीच भी प्रसिद्द करने के लिए शुरू किया गया था। एक प्रसिद्द कहानी के अनुसार मुग़ल बादशाह अपने हिन्दू कर्मचारियों को इसमें आमंत्रित करता था और उनको एक पंखे के आकार की चादर और फूल उसे देता था जिसको वो हिन्दू अपनी देवी योगमाया के मंदिर में ले जाते थे. ये त्यौहार हिन्दू-मुस्लिम की एकता के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है जिसमे एकूलाल और अकबर विशेष आकर्षण के केंद्र थे.
धन्य है हमारा देश जहाँ आज के समय में जातिवाद और धर्मवाद के बीच एकूलाल ने इन सब विषम परिस्थितियों से हट कर अपने आप में एक मिसाल कायम की है।
Inside Stories of Crime Patrol से