गिरीश मालवीय
इस लेख के शीर्षक से चौकिए मत , बस ध्यान से पूरी पोस्ट पढ़ जाइये
क्या आपको आश्चर्य नही हो रहा कि जब हरियाणा राजस्थान मध्यप्रदेश राजस्थान में कोई सिनेमाघर फ़िल्म दिखा ही नही रहा है ओर फ़िल्म में ऐसी कोई विवादस्पद बात ही नही है तो यह स्कूल बसो पर हमले , माल के बाहर तोड़फोड़ आगज़नी यानी दहशत का माहौल क्यों बनाया जा रहा है ?, साफ नजर आ रहा है , जातीय अस्मिता के नाम पर एक विशेष समूह को सबल किया जा रहा है ताकि अगले चुनाव से पहले वोटो की फसल जमकर काटी जा सके, लेकिन यह बात आप इतनी आसानी से नही मानेंगे थोड़ा विस्तार से समझते हैं
2018 में आप 90 के दशक वाली बजरंग दल ओर विश्व हिंदू परिषद वाली राजनीति नही कर सकते, अब ओर ज्यादा फाइन ट्यूनिंग की जरूरत है जो करणी सेना के माध्यम से पूरी की जा रही है गेम यह है कि पहले करणी सेना की अच्छे से ब्रांडिंग करो, उसे पीछे से समर्थन दो ओर दो चार लोगों को मीडिया में चिल्लाने के लिए भेजो कि भाजपा पर दोहरी राजनीति कर रही है ताकि आप पर पूरा इल्जाम न आने पाए, पुलिस प्रशासन को मूक दर्शक बना कर रखो, इस से कई उद्देश्य पूरे होते हैं।
पहला : अल्पसंख्यक समुदाय में डर का माहौल बनता है जो चुनाव तक बनाए रखना बहुत जरूरी है यह दंगो से पैदा हुए डर के सब्स्टीट्यूट के रूप में काम करेगा। दूसरा : यह उन लोगो को एकजुट रखेगा जो हमेशा उग्रता ही पसन्द करते है ओर यह तबका अब भाजपा से छिटकने को तैयार ही बैठा था जैसे उदाहरण के लिए महाराष्ट्र में शिवसेना का भाजपा से रिश्ता खत्म कर लेना, करणी सेना एक तरह से महाराष्ट्र की शिवसेना का ही विस्तार है और वह भी अधिक व्यापक रूप में, इसे उसी ट्रेक पे आगे बढ़ाया गया है । तीसरा : यह एक ड्रेस रिहर्सल है एक उदाहरण देता हूँ आपने कभी ध्यान दिया कि आपको कभी ऐसे मैसेज आते हैं कि यह मैसेज दस लोगो तक भेजो आपका बहुत लाभ होगा पुलिस का यह मानना है कि यह एक चेन रिएक्शन के पैटर्न को समझने के लिए कुछ खास किस्म की मार्केटिंग एजेंसियों द्वारा भेजे जाते हैं इसके तेजी से फैलने के पैटर्न से मार्केटिंग कम्पनियों को अपने निष्कर्ष निकलने में सहायता मिलती है………..।
राजनीति में कुछ इसी तरह का पैटर्न सेट किया जाता है, पहले छोटे छोटे गाँवो कस्बों में गोहत्या जैसी अफवाह फैला कर वहाँ वैमनस्य फैलाना, फिर लव जिहाद जैसी बात कर शम्भू रैगर जैसे कांड करना , उसके बाद जातीय अस्मिता के प्रतीक के अपमान को जनमानस में स्टेबलिश करना ओर उसे किसी ऐसे माध्यम से जोड़ देना जो जनता में बेहद लोकप्रिय हो जैसे फ़िल्म, ( आप किसी किताब को फ़िल्म से रिप्लेस नही कर सकते , किताब लोकप्रिय माध्यम नही है ) इसके लिए माध्यम वह वर्ग बनता है जो अधिक पढ़ा लिखा नही है, ओर उस वर्ग को आतंकित किया जाता है जो पढ़ा लिखा है और इनकी हकीकत पहचानता हैं।
अब आप सोच रहे होंगे कि यह सब तो ठीक है लेकिन आखिर इसका उद्देश्य क्या है ? इसका पहला उद्देश्य है जनता का ध्यान मूल समस्याओं से हटाना। ओर दूसरा उद्देश्य है पोलोराइजेशन यानी ध्रुवीकरण, लोगो को अलग अलग खेमे में धकेल देना, यानी ‘डिवाइड एंड रूल’ इसी तरीके को हिटलर ने भी इस्तेमाल किया था।