सरकार बॉयोमीट्रिक पहचान को हर मर्ज का इलाज समझ कर बैठी है, ओर इसी के सहारे ‘आधार’ से हर पहचान पत्र को लिंक करने की तैयारी कर रही है, यह कितना मूर्खतापूर्ण साबित हो सकता है खुद समझ लीजिए, अभिषेक अजात बता रहे हैं………..
एसटीएफ ने जिन अभियुक्तों को गिरफ्तार किया उनसे पूछताछ में उनकी माॅडस आपरेंडी का पता चला। वे आधार कार्ड बनाने के लिये मानकों को बाईपास करते हुए बायोमेट्रिक डिवाइस के माध्यम से अधिकृत आपरेटर्स के फिंगर प्रिन्ट ले लेते हैं।इसके बाद उसका बटर पेपर पर लेजर प्रिंटर से प्रिंट आउट निकालते हैं।
तत्पश्चात फोटो पाॅलीमर रेजिन केमिकल डालकर पाॅलीमर क्यूरिंग उपकरण (यू.वी.रेज) मे पहले 10 डिग्री उसके पश्चात 40 डिग्री तापमान पर कृत्रिम फिंगर प्रिन्ट, मूल फिंगर प्रिन्ट के समान तैयार कर लेते है।उसी कृत्रिम फिंगर प्रिन्ट का प्रयोग करके आधार कार्ड की वेबसाइट पर लाॅगिन करते है।आपरेटर के इस कृत्रिम फिंगर प्रिन्ट का उपयोग आपरेटर के अतिरिक्त अन्य व्यक्तियों द्वारा अलग-अलग स्थानों पर करके आधार कार्ड के इनरोलमेंट की प्रकिया पूरी कर लेते है।तैयार किया गया कृत्रिम फिंगर प्रिन्ट आपरेटर के मूल फिंगर प्रिन्ट की भाॅति ही काम करता है।उल्लेखनीय है कि पूर्व में आधार कार्ड बनाने के लिए आॅपरेटर को अपने फिंगर प्रिन्ट के माध्यम से आधार की क्लाइंट एप्लीकेशन को एक्सेस किया जाता था।लेकिन जब हैकर्स द्वारा क्लोन फिंगर प्रिन्ट बनाये जाने लगे तब यूआईडीएआई ने फिंगर प्रिन्ट के अतिरिक्त बायोमेट्रिक में आॅपरेटर के IRIS को भी आॅथेन्टीकेशन प्रोसेस का हिस्सा बना दिया, जिस कारण फर्जी आॅपरेटर्स का एक्सेस नियंत्रित हो गया।इसका भी तोड़ पट्ठों ने निकाल लिया और बायोमेट्रिक एवं IRIS को भी बाइपास करने हेतु नये क्लाइन्ट एप्लीकेशन बना लिये। यह एप्लीकेशन हैकर्स अनधिकृत आपरेटर्स को भेजकर उनसे प्रत्येक से 5-5 हजार रूपये लेने लगे। इस प्रकार एक आपरेटर की (fake UIDAI aadhaar card) आईडी पर अनेक मशीने एक साथ काम करने लगी।पुलिस कितनों तक पहुंच पायेगी ये तो अंदाजा लगा पाना मुश्किल है लेकिन ये फर्जी आधार और हैकिंग साॅफ्टवेयर कितनों तक पहुंच गया होगा और उनसे क्या क्या हो सकता है इसकी भयावहता का अंदाजा लगाइए और वो समझने की कोशिश किजिये जो महीनों से मैं आपका बताना चाह रहा हूँ।