इतिहास में उस दिन एक नया ही सूरज निकला था, जब दूसरे विश्व युद्ध का महा खलनायक जर्मनी के दोनों हिस्सों ने एक बार फिर मिलकर शांति एवं विकास का रास्ता अपनाया। बर्लिन को चार राष्ट्रों ने बाॅट लिया था और तानाशाह हिटलर से ये चारों राष्ट्र-सोवियत संघ अमेरिका, इंग्लैन्ड और फ्रांस – बदला ले रहे थे। पूर्वी जर्मनी और पश्चिमी जर्मनी बन गये थे लेकिन जर्मन के लोगों ने वह दीवार गिरा दी थी। कोरियाई महाद्वीप में ऐसे हालात नहीं थे लेकिन उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया को एक-दूसरे का दुश्मन बनाने में भी इसी तरह की परिस्थितियां थीं। अब उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन और दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जेई के बीच जिस तरह से सौहार्द पूर्ण वार्ता हुई है और दोनों देशों ने परमाणुविक हथियारों की होड़ समाप्त करने का ऐलान किया है, उससे लगता है कि एक और बर्लिन की दीवार टूटने वाली है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प, जर्मनी के चांसलर, संयुक्त राष्ट्र के महासचिव व अन्य राष्ट्राध्यक्षों ने इस मुलाकात की भरपूर सराहना की है और कोरियाई प्रायद्वीप में शांति एवं सम्पन्नता की उम्मीद जतायी है।
दूसरे विश्व युद्ध के खत्म होने के बाद बर्लिन शहर की अजीबोगरीब स्थिति हो गयी थी। यह शहर एक टापू बन गया था जिस पर चार देशों ने कब्जा जमाया। ये चार मुल्क थे सोवियत संघ, अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस। इन राष्ट्रों ने विश्व युद्ध की संभावनाओं को हमेशा हमेशा के लिए खत्म करने की रणनीति के तहत जर्मनी के टुकड़े कर दिये और 1948 में पश्चिम जर्मनी को अस्तित्व में लाने की कोशिशें तेज हुई थीं। स्टालिन को हालांकि इस पर एतराज था। स्टालिन ने बहुत कोशिश की लेकिन 13 अगस्त 1961 को पूर्वी जर्मनी की सीमा पुलिस और सशस्त्र बल सोबियत सेक्टर की सीमाओं पर तैनात कर दिये गये। जल्द बाजी में कंक्रीट के पोल खड़े किये गये, कंटीले तार लगे और लैम्प पोस्ट भी घेराबंदी में आ गये। इस प्रकार बर्लिन की दीवार खड़ी कर दी गयी थी। जर्मनी के निवासियों का यह अपने देश के प्रति लगाव, आपसी सौहार्द और भाई चारा ही था कि 1961 में बनायी गयी बर्लिन की दीवार 1990 में तोड़ दी गयी। इस इतिहास को याद रखने के लिए जर्मन के लोगों ने उस दीवार की जगह दो ईटों की लाइन बिछा दी थी ताकि लोगों को पता चल सके कि उनके देश को कुछ राष्ट्रों ने साजिश करके किस तरह से बंाट दिया था। जर्मनी के लोग जब एक हो सकते हैं तो उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया के लोग एक क्यों नहीं हो सकते – यही सवाल अब कोरियाई प्रायद्वीप में गूंज रहा है। यह सवाल उन कई देशों में भी उठ रहा होगा, जिनकी संप्रभुता को एक साजिश के तौर पर विभाजित किया गया है। हमारा भारत भी उनमें से एक है जिसको आजादी देते समय तीन टुकड़ों में बांट दिया गया था।
कोरियाई प्रायद्वीप के उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया में बैमनस्य पैदा किया गया। उन्हें एक-दूसरे से दूर रखा गया और किम जोंग की तानाशाही ने इस दूरी को और ज्यादा बढ़ा दिया था। भूगोल और इतिहास में परिस्थितियां भी बड़ी भूमिका निभाती हैं। उत्तर कोरिया के शासक किमजोंग के सामने भी कुछ परिस्थितियां ऐसी ही आ गयीं और उन्होंने शांति के मार्ग पर आगे बढ़ने का फैसला कर लिया। इसकी भूमिका दक्षिण कोरिया में शीतकालीन ओलंपिक के समय बनी थी जब मूनजेई ने अपने देश में इस प्रकार के खेल का आयोजन करके उत्तरकोरिया को आमंत्रित किया। उत्तर कोरिया से बड़ा प्रतिनिधि मंडल दक्षिण कोरिया पहुंचा था और उसमें किम जोंग की बहन भी शामिल थीं। दक्षिण कोरिया के अधिकारियों ने किम जोंग की बहन की खातिर भी उसी तरह से की थी जैसी राष्ट्राध्यक्षों की होती है। इससे किम जोंग पर अच्छा प्रभाव पड़ा था। कोरियाई प्रायद्वीप में शांति की यह प्रक्रिया आगे बढ़ती गयी और इसी कड़ी में उत्तर कोरियाई शिखर वार्ता की तारीख तय हो गयी। गत 27 अप्रैल 2018 को किम जोंग ने दोनों देशों की सीमा रेखा को पैदल ही पार किया और दक्षिण कोरिया के लोगों का दिल जीता।
उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन और दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपति मून जेई इन ने उत्तर कोरियाई शिखर वार्ता के दौरान कोरियाई प्रायद्वीप में एक स्थायी शांति समझौते और पूर्ण परमाणु निरस्त्रीकरण पर सहमति जतायी है। इसका मतलब है कि दोनों राष्ट्र अब तनाव के अवसरों को पूरी तरह से समाप्त कर देना चाहते हैं। उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया दोनों कभी एक ही देश हुआ करते थे और समृद्ध भी थे। दक्षिण कोरिया को अमेरिका की भरपूर सहायता मिलती रही है, इसलिए वहां की सम्पन्नता ज्यादा है जबकि उत्तर कोरिया में किम जोंग ने जंग की तैयारियों पर ही ज्यादा ध्यान दिया है। इन दोनों देशों को देखकर इसीलिए जर्मनी की याद आती है। पूर्वी जर्मनी अपेक्षाकृत गरीब था जबकि पश्चिम जर्मनी हर प्रकार से समृद्ध था। अब संयुक्त जर्मनी विश्व का विकसित राष्ट्र है। अब कोरियाई प्रायद्वीप के दोनों देश स्थायी शांति समझौता और प्रायद्वीप के पूर्ण निरस्त्री करण की दिशा में आगे बढ़ने पर सहमत हुए हैं तो विकास की गति तीव्र होना स्वाभाविक है। किम जोंग उन और मून जेई इन ने समझौते पर दस्तखत करके जब एक दूसरे को गले से लगाया तो यह राम और भरत के मिलाप जैसा ही लग रहा था। दोनों नेताओं ने साझा लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रतिबद्धता दर्शायी है।
इस ऐतिहासिक वार्ता और संधि को लेकर संयुक्त राष्ट्रसंघ के महासचिव एंटोनियो गुतारेस ने दोनों नेताओं को बधाई दी और उम्मीद भी जतायी कि कोरियाई प्रायद्वीप में अब युद्ध के बादल संहार नहीं, संजीवनी की बारिश करेंगे। एंटोनियो गुतारेस ने ऐतिहासिक शिखर वार्ता की तारीफ की और उम्मीद जतायी कि दोनों देशों के बीच ईमानदार संवाद और कोरियाई प्रायद्वीप में परमाणु निरस्त्रीकरण समेत जिन मामलों पर सहमति बनी है, उन पर तेजी से अमल भी होगा। इसी प्रकार अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प, जो दोनों देशों के बीच विवाद में एक महत्वपूर्ण कड़ी थे, उन्होंने भी कोरियाई नेताओं को उनकी ऐतिहासिक वार्ता पर बधाई दी। श्री ट्रम्प ने कहा कि मैं रिपब्लिक आफ कोरिया को उत्तर कोरिया के साथ ऐतिहासिक वार्ता के लिए शुभकामनाएं देना चाहता हूं। दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जेई इन के परमाणु निरस्त्रीकरण मंत्र से प्रोत्साहित है और आगामी सप्ताहों में किम जोंग उन से मुलाकात करने वाला हूं।
दक्षिण कोरिया, उत्तर कोरिया और अमेरिका के बीच इस प्रकार का वातावरण बन जाना निश्चित रूप से अच्छी संभावनाओं से भरा हुआ है। हमने पूर्व जर्मनी और पश्चिम जर्मनी का उदाहरण इसीलिए दिया था क्योंकि उसमें भी दोनों जर्मनी के अलावा अमेरिका और सोवियत संघ प्रमुख रूप से भूमिका निभा रहे थे। बड़े राष्ट्रों की भूमिका को नजरंदाज करके भी पूर्वी जर्मनी और पश्चिमी जर्मनी जब एक हो सकते है तो उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया को एक होने से कोई कैसे रोक सकेगा। हालांकि यह बहुत दूर की कौड़ी है और भारत उपमहाद्वीप तक के एकीकरण की चर्चा समय समय पर होती रही है तो यह बात सिर्फ हवा में ही नहीं है। जर्मनी का उदाहरण सामने रखकर एकता की अलख जगाई जा सकती है और इस प्रकार की एकता से समृद्धि आती है। दक्षिण कोरिया और उत्तर कोरिया का प्रयास सफल रहा तो आगे के रास्ते भी खुलते चले जाएंगे। (हिफी)
