स्वप्निल संसार। लखनऊ। शमील शम्सी । अदीब वॉल्टर।
हज़रत मुहम्मद के चचेरे भाई हज़रत अली की याद में रमज़ान की 19 तारीख को रोज़ा -ऐ -काज़मैन स्थित मस्जिदे कूफा से गिलीम के ताबूत का जुलूस निकाला गया।
हर आँख थी नम, हर जुबान पर था बस एक ही नाम, या अली मौला – हैदर मौला के नारों से गूंज उठा था पुराना लखनऊ
पुराने लखनऊ से उठने वाले इस जुलुस का इतिहास
शमील शम्सी । हज़रत अली का जन्म 15 सितम्बर 601 ई0 को मक्का शहर मे मुसलमानों के सबसे पवित्र स्थल काबा मे हुआ था। ईश्वर के अंतिम संदेशवाहक हज़रत मुहम्मद के चचेरे भाई इस्लाम धर्म मे हज़रत मुहम्मद के पश्चात सबसे उच्च स्थान पर हैं। हज़रत अली महान योद्धा के साथ साथ महान दानी महान ज्ञानी एवं ईश्वर के वली भी थे। हज़रत अली के अधिकांश प्रवचनों का संग्रह क़ुरआन शरीफ के बाद इस्लाम की सबसे विश्वसनीय पुस्तक नैहजुल बलाग़ा के नाम से जानी जाती है।
पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद स0 ने अपने अन्तिम हज से लौटते वक़त ग़दीर नामक स्थान पर हज़रत अली अ0 को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था। परंतु मुहम्मद साहब की मृत्यु के तुरंत बाद इस्लाम धर्म मे घुसचुके सत्ता लोभियों ने मुहम्मद साहब की मर्जी के बग़ैर इस्लाम धर्म का मुखिया हज़रत अबुबकर को बना दिया। हज़रत अबुबकर की मृत्यु के पश्चात ख़लीफा के लिए एक विवादित चुनाव प्रक्रिया कर हज़रत उमर को मुखिया चुना गया। हज़रत उमर की हत्या एक ईरानी योद्धा फिरोज़ द्वारा कर देने के बाद हज़रत उस्मान को ख़लीफा बना दिया गया। परंतु उस्मान का शासन काल बहुत उथल-पुथल वाला रहा लोगों मे उसमान के खिलाफ बग़ावत चरम पर थी उस ही समय कूफा के शासक वलीद जो की उसमान का भतीजा था शराब के नशे मे मस्जिद मे नमाज़ पढाने आगया और नमाज़ मे बेहोश होकर गिर गया।
ये सूचना जब मदीना पहुची तो मुहम्मद स0 की पत्नी हज़रत आएशा ने एक विशाल जन सभा मदीना की मस्जिद ए नबवी मे बुलाई और एक परदे के पीछे से हाथ मे रसूल हज़रत मुहम्मद स0 की जूतियां लेकर कहा “अभी तुम्हारे रसूल की जूतियों का रंग भी नहीं उड़ा और तुमने अल्लाह के दीन का रंग बर्बाद कर दिया” ये सुनने के बाद लोगों ने उसमान के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। और हज़रत उस्मान के घर को घेर लिया। ये सूचना सुनते ही हज़रत अली अ0 ने अपने पुत्र इमाम हसन को ssउस्मान के घर खाना पानी लेकर भेजा। कुछ विद्रोहियों ने पिछे से घर मे घुस कर उस्मान की हत्या कर दी।
उसमान की मृत्यु के बाद अंततः हज़रत अली को ख़लीफा नियुक्त किया गया। एक अंग्रेजी इतिहासकार ने अपनी किताब मे लिखा की हज़रत अली ऎसे एकमात्र शासक थे जिनके राज मे कोई भूखा नहीं सोया हज़रत अली ने इस्लाम के नाम पर किये जा रहे युद्धों मे माल ए ग़नीमत के नाम पर हो रही लूट को प्रतिबंधित कर दिया साथ ही लूटे माल को वापस करने को कहा, जिससे क्षुब्ध मुहम्मद साहब के परिवार के कट्टर दुश्मन रहे अबुसुफियान जिसकी पत्नी हिंदा ने एक युद्ध में हज़रत मुहम्मद के प्रिय चचा हज़रत हमज़ा की लाश से उनका कलेजा निकाल कर खाया था के पुत्र माविया ने कड़ा विरोध किया और उस्मान की मौत का ज़िम्मेदार हज़रत अली और अनके अनुयायियों को ठहराने लगा।
माविया ने मुहम्मद साहब की पत्नी जो की अबुबकर की पुत्री थी को भड़का कर हज़रत अली के विरुद्ध जंग का बिगुल फुकवा दिया। हज़रत आएशा इस युध्द में स्वयं भी मैदान मे ऊंट पर बैठ कर युद्ध करने उतरीं थी ऊंट को अरबी भाषा मे जमल कहा जाता है इस लिए इस एतिहासिकssयुध्द को जंग ए जमल नाम से जाना जाता है। हज़रत अएशा के युध्द में बुरी तरह परास्त होने के बाद हज़रत आएशा ने इसलामी काम काज मे कैई ख़ास दख़ल नहीं दिया।
जमल की साज़िश की नाकामी से बौखलाए माविया ने फिर एकबार हज़रत अली के खिलाफ जंग छेड़ दी बहाना वही पुराना था अबकी उस्मान के रक्त रंजित कुरते का पताका बना कर सिफफीन का युद्ध छेड़ा गया। इस युद्ध में जब माविया की सेना हार ssकी कगार पर थी तब बड़ी चालाकी से भालों की नोकों पर क़ुरआन की प्रतियां उठा कर जान की रहम मांगने लगा। न चाहते हुए भी अपने ही सिपाहियों के कहने पर हज़रत अली अ0 ने माविया से संधि कर ली परंतु जमल और सिफफीन मे मारे गए सैनिकों ने हज़रत अली अ0 के खिलाफ जंग छेड़ दी जिसको जंग ए नहरवान कहा गया।
नहरवान की ज़बरदस्त जंग मे हज़रत अली ने ख़ारजी विद्रोहियों को परास्त कर दिया जिससे ख़ारजी मौला अली के ख़ून के प्यासे हो गए। ख़रजियों की इसबात का फाएदा उठा कर माविया ने अब्दुल रहमान इब्न ए मुलजिम नामक एक ख़ारजी को मौला अली की हत्या के लिए बुलाया 27 जनवरी 661 ई0 मुताबिक़ 19 रमज़ान मस्जिद ए कूफा ईराक मे सुबह की नमाज़ के समय हज़रत अली के सिर पर तलवार के वार से हमला कर घायल कर दिया।