- मोदी सरकार देश की संस्थाओं से भ्रष्टाचार रोकने में नाकाम!————-
‘देेश के इतिहास में पहला ऐसा मंज़र आया है । जो दल
भ्रष्टाचार समाप्त करने के नाम पर सत्ता रूढ़ हुआ हो उसी की सरकार में उच्य संस्थाओं में सबसे अधिक भ्रष्टाचार उजागर होने से पुरे देश को झकझोर दिया ।
देश की सुप्रीम कोर्ट, रिजर्व बैंक, ईडी, सी वी सी,सी बी आई जैसे संस्थाओं का असली चेहरा देश की जनता के सामने आ गया हो, अब सरकार बचाव के लिए कुछ भी बयान जारी करे संस्थाओं पर लगे दाग़ को मिटाया नहीं जा सकता है ।
देश की जनता के सामने सीबीआई का मामला सरकार की लाख कोशिशों के बाद भी उलझता जा रहा है?
सरकार अपनी लाज बचाने के लिए सीबीआई डाइरेक्टर आलोक व॔मा और स्पेशल डाइरेक्टर राकेश अस्थाना दोनों को हटा कर एम
नागेश्वर राव को अंतरिम निदेशक बना दिया है । लेकिन आलोक व॔मा सरकार के इस कदम के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए हैं कोर्ट ने याचिका स्वीकार कर ली है और शुक्रवार को इसकी सुनवाई हो सकती हैं ।
सी बी आई अब भ्रष्टाचार, और झगड़ो का केंद्र बन गया है । इस घटना क्रम में जो कुछ दिखाई दे रहा है मामला इससे ज्यादा संगीन है । सीबीआई के दोनों गुट एक दुसरे के खिलाफ पिछले कई महीनों से सक्रीय थे तथा केन्द्रीय सत्ता भी अपने अपने गुटों की पैरवी कर रहा था । लेकिन जब भंडा फूटा और मामला मीडिया में आया तो रातों रात सरकार सक्रिय हो गई तथा एक द॔जन से भी अधिक अधिकारियों को हटा दिया गया ।
सुप्रीम कोर्ट ने वष॔ 2013 में सरकार पर एक सख्त टिप्पणी की थी “सीबीआई को स्वंतत्र नहीं किया गया तो हमें दखल देना होगा ” लेकिन कोर्ट की इस टिप्पणी को सत्ता रूढ़ सरकारों ने कभी संज्ञान में नहीं लिया । जिस तोते को मनमोहन सरकार पिंजड़े में बंद किए थी वही तोता मोदी सरकार में भी पिंजड़े में बंद हैं जबकि इन संस्थाओं की स्वायत्ता के लिए मोदी बष॔ 2014 में देश में घुम घुम कर गला फाड़ रहे थे सत्ता में आने पर देश की सभी संस्थाओं को स्वतंत्र होकर काम करने दिया जायेगा । अब पुरा देश खामोशी से इनके दोहरे चाल चरित्र को देख रहा है ।
इस सारे विवाद में सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि कहीं देश के कुछ प्रभावशाली लोग सीबीआई की छवि और उसकी विश्वसनीयता को खराब करने का षडयंत्र तो नहीं कर रहे हैं ?
सरकार के फैसले के खिलाफ उच्य न्यायालय, सुप्रीम कोर्ट में दोनों केसो की सुनवाई करते हुए किस नतीजे पर पहुंचेगी यह अभी एक दो दिन में मासूम हो जायेगा । लेकिन इन सारे विवाद में केन्द्रीय सतर्कता आयोग और डी ओ पी टी भी कम जुम्मेदार नहीं है । जब भ्रष्टाचार का आरोप प्रत्यारोप सीबीआई अधिकारियों में हो रहा था और सब इनके संज्ञान था तो यह क्यो सोते रहे?
सीबीआई की हो रही देश विदेश में बदनामी के कारण सरकार को इस संस्था को तुरंत भंग कर देना चाहिए तथा पुनः नया ढांचा खड़ा करना चाहिए जो अधिक स्वच्छ, सक्षम, स्वायत्ता पूण॔ हो ।
यदि देश की संस्थाओं की साख देश की जनता में गिरती है तो यह स्वच्छ लोक तंत्र के लिए उचित नहीं है।
देश का दुर्भाग्य तो यह है कि जब जब एन डी ए की सरकार सत्ता में आई तब तब सीबीआई की छबि धूमिल करने का प्रयास किया गया । ज्ञातव्य हो वष॔ 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार सत्ता में थी तत्कालीन काय॔वाहक निदेशक को इस लिए हटा दिया गया था कि सरकार से बिना इजाजत अंबानी बंधुओ के ठिकानों पर छापे मारी की थी तथा वहां से भारत सरकार के अति गोपनीय दस्तावेज बरामद हुए थे जिनमें पेट्रोलियम, वित्त, टेलीकाम ,इंसेट डी 1,डी 2 तथा पोखरण विस्फोट जैसे अति संवेदनशील मामलों के दस्तावेज थे । सीबीआई ने यह मामला चीफ मेट्रोपोलिटन कोर्ट में दाखिल किया था तथा उस समय की मजिस्ट्रेट श्रीमती संगीता ढींगरा की कोट॔ ने अंबानी बंधुओ के साथ ही उनके अधिकारियों के खिलाफ वारंट जारी कर दिए थे । सीबीआई की इस काय॔वाही पर दण्ड स्वरूप तत्कालीन निदेशक को हटा दिया गया था । आज भी यह केस कोर्ट की फाइलों में धूल फांक रहा है और कोई भी कार्य वाही नहीं हुई । सरकारों के दोहरे मापदंड के कारण ही सीबीआई जैसी संस्थाओं में भ्रष्टाचार बढ़ा है ।/
नरेश दीक्षित संपादक समर विचार