प्रभात त्रिपाठी। आज पाकिस्तान का स्वतंत्रता दिवस है और कल हमारा, वो बात अलग है कि आजादी का समय दोनों का एक ही था। अनगिनत लोग मारे गए, बेघर हो गए इस दो देशों के सिद्धांत के कारण और अंततः तीन देश पैदा हुए।
आजादी के समय पाकिस्तान ने धर्मराज्य की ओर कदम बढ़ाए और भारत ने लोकतन्त्र और विज्ञान की जड़ों को मजबूत करने की ओर। नतीजा सामने है, पाकिस्तान में आम आदमी का जीवन भारत के मुकाबले कितना दुष्कर है और लगभग सभी पैमानों पर उनकी प्रगति भारत से बहुत पीछे है।
धर्म को वरीयता देने के कारण कट्टरवादी हावी होते गए और कट्टरवादियों में ही संघर्ष चलता रहता है कि ज्यादा कट्टर कौन। जैसा कि कट्टरवाद में हमेशा से होता आया है ज्यादा कट्टर लोग कम कट्टर लोगों पर हावी होते गए। कुछ ज्यादा मुसलमानों ने अपनी बनाई परिभाषा के अनुसार अपने से कुछ कम मुसलमानों को ही मारना शुरू कर दिया जो कभी न खत्म होने वाला सिलसिला लगता है।
इधर कुछ वर्षों में भारत को भी धर्मराज्य की ओर धकेलने की कोशिशें बढ़ गई हैं। धर्म को मानवता से भी ऊपर मानने वाले लोग बढ़ रहे हैं। धार्मिक असहिष्णुता बढ़ रही है। बहुसंख्य समुदाय के कुछ लोगों को अन्य धर्मों के लोग ज्यादा ही खटकने लगे हैं। कुछ ज्यादा हिन्दू लोग अपनी बनाई परिभाषा के अनुसार अपने से कुछ कम हिन्दू लोगों को कोस रहे हैं (बस चले तो मार ही दें जैसे कट्टरवादी मुसलमान अपने ही धर्म वालों के साथ करते हैं) । तर्कसंगत अकाट्य बात करने वालों की हत्या भी की जा रही है।अपनी तुलना अपने से बेहतर देशों से करने के बजाए अपने से बदतर देशों से की जा रही है कि देखो हम उतने नालायक या गिरे हुए नहीं हैं। मुस्लिम आतंकवाद की तर्ज पर भगवा आतंकवाद की आहट कई लोगों को महसूस हो रही है। क्या जिन देशों ने धर्म को आगे रखा वे तरक्की कर पाए? आज आप को विदेश में बसना हो तो आप कोई धर्मराज्य चुनेंगे या फिर धर्म को पीछे रखने वाले राज्य को? क्या हम विश्व में वही ‘सम्मान’ पाना चाहते हैं जो पाकिस्तान के आम लोगों को मिलता है? क्या हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को इस रास्ते पर चल कर बेहतर देश, बेहतर समाज दे पाएंगे? बड़ा सवाल यह है कि क्या हम भी पाकिस्तान ही बनना चाहते हैं?