यह फिल्म उनका वह सपना थी जिसके लिए उन्होंने गांधी के जीवन पर 20 साल तक अध्ययन किया फिर उस महान फिल्म की शुरुआत की। हालांकि उन्होंने कई फिल्मों का निर्देशन किया लेकिन गांधी को वह अपने जीवन की सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण कृति मानते हैं। गांधी पर फिल्म बनाने के उनके सपने को पूरा होने में इसलिए भी लंबा अरसा लगा कि उनको इसके लिए सरकारी अनुमति देर से मिली। अनुमति मिलने के बाद भी उनको तरह-तरह की दिक्कतों से दो-चार होना पड़ा। उस समय कई नामचीन भारतीय फिल्मकारों ने नाक-भौं सिकोड़ा था कि गांधी के जीवन पर कोई अंग्रेज किस तरह से अच्छी फिल्म बना पायेगा। क्या वह बापू के चरित्र से न्याय कर पायेगा जिनकी आजादी की लड़ाई ही अंग्रेजों के खिलाफ थी।
इसकी भनक रिचर्ड एटेनबरो एटेनबरो को भी मिली और उन्होंने इसको चैलेंज के तौर पर लिया। उन्होंने न सिर्फ गांधी के चरित्र, फिल्म के कथानक और अन्य पक्षों पर बखूबी ध्यान दिया अपितु इस फिल्म को बड़े पैमाने पर विश्व स्तरीय फिल्म बना दिया। पूरी दुनिया में धूम मच गयी। लगा जैसे उन्होंने इस फिल्म के माध्यम से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को फिर जिंदा कर दिया हो। ब्रिटिश नाटकों और अंग्रेजी फिल्मों में काम करने वाले बेन किंग्सले इस पारखी फिल्मकार का संग और फिल्म में प्रमुख गांधी की भूमिका पाकर अमर हो गये। उन्होंने गांधी के चरित्र को इस खूबी से जिया जैसे उन्होंने उस व्यक्तित्व को पूरी तरह से आत्मसात कर लिया हो। इस फिल्म के लिए रिचर्ड एटेनबरो की सारी दुनिया में तारीफ हुई और उनके आलोचक भारतीय फिल्मकारों की भी बोलती बंद हो गयी। ‘गांधी’ को उन्होंने जिस बड़े पैमाने पर बना दिया, शायद ही भविष्य में किसी का साहस ऐसा करने को हो सके।
अपने तकरीबन छह दशक लंबे फिल्मी जीवन में उन्होंने 70 से अधिक फिल्मों में अभिनय किया और कई फिल्मों का निर्माण और निर्देशन किया। इन सभी में वे अपनी फिल्म ’गांधी’ को ही अपने जीवन की सर्वश्रेष्ठ कृति मानते थे। अभिनेता के रूप में उनकी कुछ प्रसिद्ध फिल्में हैं-ब्रिटन रॉक, द ग्रेट स्केप, जुरासिक पार्क, 10 रिलिंग्टन प्लेस, जोसेफ एंड द एमेजिंग टेकनिकलर ड्रीम कोट व अन्य।
29 अगस्त, 1923 को कैंब्रिज में जन्मे एटेनबरो ने अभिनय की शुरुआत नाटकों से की। एक नाटक ‘द माउसट्रेप’ में तो उनके साथ उनकी पत्नी शेला सिम ने भी अभिनय किया था। उन्होंने वीवर फिल्म्स नामक अपनी एक प्रोडक्शन कंपनी भी बनायी थी जिसके बैनर तले उन्होंने ‘द लीग जेंटलमैन’ (1959), ‘द एंग्री साइलेंस’ (1960) ‘द ह्विसिल डाउन द विंड्स’ (1961)। उन्होने फिल्मों का निर्देशन भी किया। उनके निर्देशन में बनने वाली फिल्मे हैं-‘ओ ह्वाट ए लवली वार’, ‘यंग विन्सटन’ ‘ए ब्रिज टू फार’व अन्य। लेकिन सबसे ज्यादा संतुष्टि (ख्याति भी) उन्हें ‘गांधी’ बना कर मिली।
अभिनय के साथ-साथ वे अन्य क्षेत्रों में भी रुचि रखते थे। उनकी खेल में भी रुचि थी और वे लंदन के चेलेसा फुटबाल क्लब से भी डाइरेक्टर के रूप में जुड़े थे। फिल्म और टेलीविजन से संबंधित कई संस्थाओं में भी वे बड़े पदाधिकारी के रूप में अरसे तक जुड़े रहे। एटेनबरो जैसे व्यक्तित्व बिरले ही होते हैं जो जब जाते हैं अपने पीछे ऐसा रिक्त स्थान छोड़ जाते हैं जिसे भरना आसान नहीं होता।
अभिनेता तो अनेक होंगे लेकिन दूसरा एटेनबरो होना नामुमकिन है। क्योंकि उनके जैसा सशक्त अभिनेता और इनसान होना हंसी खेल नहीं। सदियां गुजर जाती हैं तब कहीं आता है ऐसा एक इंसान। दुनिया उनके अभिनय, निर्देशन के उस खजाने से बहुत कुछ सीख सकेगी, जो वे अपने पीछे छोड़ गये हैं। उनकी फिल्में, उनके आदर्श बेहतर कला और बेहतर जिंदगी के लिए पाथेय बनेंगे।
ब्रिटिश अभिनेता, निर्माता, निर्देशक सर रिचर्ड एटेनबरो के निधन का समाचार सुना तो बहुत ही दुख हुआ। उनका 24 अगस्त 2014 को 90 वर्ष की अवस्था में लंदन में निधन हो गया। वे लंबे अरसे से बीमार थे और नर्सों की देखरेख में जिंदगी के बाकी पल बिता रहे थे। वे अपनी पत्नी शेला सिम के साथ रहते थे। शेला से उनकी शादी 1945 में हुई थी। 1943 से लेकर 2007 तक वह फिल्मों में किसी न किसी रूप में सक्रिय रहे, चाहे अभिनय हो या फिल्म निर्माण और निर्देशन।
लेखक राजेश त्रिपाठी कोलकाता के वरिष्ठ पत्रकार हैं। वे अपने ब्लाग कलम का सिपाही http://rajeshtripathi4u.blogspot.in में सम सामयिक विषयों पर लिखते रहते हैं। राजेश त्रिपाठी से tripathirajesh2008@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।