सुर मुनि को परनायकरि, सुगम करौ संगीत। तानसेन वाणी सरस जान गान की प्रीत। तानसेन या मियां तानसेन या रामतनु पाण्डेय (तन्ना उर्फ तनसुख उर्फ त्रिलोचन) का जन्म हिन्दू परिवार में श्री मकरंद पांडे के यहाँ ग्वालियर के तत्कालीन प्रसिद्ध फ़क़ीर हजरत मुहम्मद गौस ग्वालियरी के वरदान स्वरूप हुआ था। तानसेन ने संगीत की शिक्षा पहले स्वामी हरिदास से ली और बाद में हजरत मुहम्मद गौस ने उन्हें संगीत सिखाया। वो पहले रेवा के राजा रामचंद्र के दरबार में एक संगीतकार थे जिसे बाद में अकबर के नवरत्नों में शामिल कर लिया गया। राजा रामचंद्र तानसेन के जाने से बहुत दुखी हुए। तानसेन ने कई शाष्त्रीय रागों की रचना की। उनकी राग दीपक और राग मल्हार सबसे ज्यादा प्रसिद्ध थे। अकबर तानसेन के संगीत से इतना प्रभावित हुआ कि उसने तानसेन को प्रदेश की सबसे बड़ी उपाधि दे दी। तानसेन अकबर के नवरत्नों में थे । दरबार में गाने के अलावा तानसेन अक्सर अकेले बादशाह के लिए भी गाते थे। उनकी राग से रात में अकबर को नींद आ जाती थे और कुछ मधुर रागों से बादशाह से नींद जाग जाती थी। तानसेन के संगीत की बहुत सी कहानिया मशहूर थी जिसमे उनके संगीत से पशु-पक्षी एकत्रित हो जाते थे। अकबर के दरबार के संगीतकार तानसेन संगीत में इतने उस्ताद थे कि जब वह मेघ राग गाते थे, तो बारिश हो जाती थी, दीपक राग गाने पर दीपक अपने आप जल उठते थे। तानसेन ने भारतीय संगीत को बड़ा आदर दिलाया। उन्होंने कई राग-रागिनियों की भी रचना की।
‘मियाँ की मल्हार’ ‘दरबारी कान्हड़ा’ ‘गूजरी टोड़ी’ या ‘मियाँ की टोड़ी’ तानसेन की ही देन है। तानसेन कवि भी थे। उनकी काव्य कृतियों के नाम थे – ‘रागमाला’, ‘संगीतसार’ और ‘गणेश स्रोत्र’। ‘रागमाला’ के आरंभ में दोहे दिए गए हैं। उनके समय में ध्रुपद गायन शैली का विकास हुआ। अकबर ने तानसेन को ‘कण्ठाभरणवाणीविलास’ की उपाधि से सम्मानित किया था। तानसेन की प्रमुख कृतियाँ थीं-मियां की टोड़ी, मियां की मल्हार, मियां की सारंग, दरबारी कान्हड़ा आदि। सम्भवत: उसने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया था। तानसेन के चार पुत्र तानरस खान, बिलास खान , हमीरसेन और सुरतसेन और एक पुत्री सरस्वती देवी थी। उसके सभी पुत्र और पुत्री संगीतकार थे। सरस्वती देवी ने इस्लाम धर्म कबूल कर अपना नाम हुसैनी रख दिया था। उसने बाद में किशनगढ़ के राजा समोखन सिंह राठोड के पौत्र नौबत खान उर्फ़ अली खान करोरी से विवाह किया । अली खान उस वक़्त आगरा में मुगल सलतनत के वित्त मंत्री थे। अकबर ने उसे खान की पदवी और कारोरी उपनाम दिया था। अली खान को बाद में मुगल बादशाह जहांगीर ने नौबत खान नाम दिया। तानसेन के पुत्र बिलास खान ने तानसेन की मौत के बाद राग बिलक्षनी की रचना की । तानसेन के रक्त वंशज सेनिया घराना को माना जाता है जो कई सदियों से संगीत की ख्याति को बनाये हुए है। उनके अंतिम जीवित वंशज इम्तिआज अली खान और शब्बीर खान है। तानसेन की मौत 1586 में हुयी और अकबर उनकी मौत पर बहुत दुखी हुआ कि उन्होंने महान संगीतज्ञ खो दिया। मियाँ तानसेन को ग्वालियर में दफन किया गया जहा आज भी उनकी कब्र मौजूद है। हर वर्ष उनकी तानसेन की कब्र के नजदीक संगीत महोत्सव का आयोजन होता है । तानसेन समारोह हिन्दुस्तानी संगीत का शीर्ष समारोह है। एजेन्सी