प्रेस स्वतंत्रता दिवस की मनाने की घोषणा 3 मई को 1991 में यूनेस्को और संयुक्त राष्ट्र के ‘जन सूचना विभाग’ ने मिलकर की गयी थी।इस दिवस का मतलब है कि देशों में पत्रकारिता और पत्रकारों को स्वतंत्र रिपोर्टिंग से है। प्रेस किसी भी समाज का आइना होता है। प्रेस की आज़ादी से यह बात साबित होती है कि उस देश में अभिव्यक्ति की कितनी स्वतंत्रता है। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में प्रेस की स्वतंत्रता एक मौलिक ज़रूरत है। आज हम एक ऐसी दुनिया में जी रहे हैं, जहाँ अपनी दुनिया से बाहर निकल कर आसपास घटित होने वाली घटनाओं के बारे में जानने का अधिक वक्त हमारे पास नहीं होता। ऐसे में प्रेस और मीडिया हमारे लिए एक खबर वाहक का काम करती हैं, जो हर सवेरे हमारी टेबल पर गरमा गर्म खबरें परोसती हैं। यही खबरें हमें दुनिया से जोड़े रखती हैं। आज प्रेस दुनिया में खबरें पहुंचाने का सबसे बेहतरीन माध्यम है। लेकिन भारत में पत्रकार और पत्रकारिता दोनों का स्तर गिरता जा रहा है।
अब भारत में स्वतंत्र पत्रकारिता का सपना देखना गुनाह हो गया है! इसका कारण यह है कि राजनीतिक उथल पुथल और गैर पत्रकार लोगों का इस पेशे में आ जाने से यह स्थित बनी हुई है। भारत में आज की पत्रकारिता व्यवसाय हो गयी है उसका जनसरोकार से शायद ही कोई वास्ता रहा हो। गणेश शंकर की पत्रकारिता की नीव पर चलने वाली भारत की पत्रकारिता कब कॉर्पोरेट घरानों की जूती बन गयी पता ही नहीं चला। अंतर्राष्ट्रीय प्रेस स्वतंतत्रा दिवस पर दुनियाभर से आये आंकड़े डराने वाले हैं। साल 2018 में लोकतांत्रिक देशों में करीब 44 पत्रकारों की हत्या हो चुकी है। जिसमें भारत सबसे ऊपर है।
यूनेस्को द्वारा 1997 से हर साल 3 मई को विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर गिलेरमो कानो वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम प्राइज भी दिया जाता है। यह पुरस्कार उस व्यक्ति अथवा संस्थान को दिया जाता है जिसने प्रेस की स्वतंत्रता के लिए उल्लेखनीय कार्य किया हो।