जयंती पर विशेष
वीर अब्दुल हमीद जिन्होंने अपने सेवा काल में सैन्य सेवा मेडल समर सेवा मेडल और रक्षा मेडल से सम्मान प्राप्त किया था। 1965 में भारत.पाकिस्तान युद्ध में असाधारण बहादुरी के लिए महावीर चक्र और परमवीर चक्र प्राप्त हुआ।
अब्दुल हमीद का जन्म गाजीपुर जिले के धरमपुर गांव के मुस्लिम दर्जी परिवार में 1 जुलाई 1933 को हुआ। आजीविका के लिए कपड़ों की सिलाई का काम करने वाले मोहम्मद उस्मान के पुत्र अब्दुल हमीद की रूचि अपने इस पारिवारिक कार्य में बिलकुल नहीं थी। कुश्ती के दाँव पेंचों में रूचि रखने वाले पिता का प्रभाव अब्दुल हमीद पर भी था। लाठी चलाना कुश्ती का अभ्यास करना पानी से उफनती नदी को पार करना गुलेल से निशाना लगाना एक ग्रामीण बालक के रूप में इन सभी क्षेत्रों में हमीद पारंगत थे। उनका एक बड़ा गुण था सबकी यथासंभव सहायता करने को तत्पर रहना। किसी अन्याय को सहन करना उनको नहीं भाता था।
यही कारण है कि एक बार जब किसी गरीब किसान की फसल बलपूर्वक काटकर ले जाने के लिए जमींदार के 5० के लगभग गुंडे उस किसान के खेत पर पहुंचे तो हमीद ने उनको ललकारा और उनको बिना अपना मन्तव्य पूरा किये ही लौटना पड़ा। इसी प्रकार बाढ़ प्रभावित गाँव की नदी में डूबती दो युवतियों के प्राण बचाकर अपने अदम्य साहस का परिचय दिया।
21 वर्ष के अब्दुल हमीद जीवन यापन के लिए रेलवे में भर्ती होने के लिए गये परन्तु उनके संस्कार उन्हें प्रेरित कर रहे थे सेना में भर्ती होकर देश सेवा के लिए। अत उन्होंने एक सैनिक के रूप में 1954 में अपना कार्य प्रारम्भ किया। हमीद 27 दिसंबर 1954 को ग्रेनेडियर्स इन्फैन्ट्री रेजिमेंट में शामिल किये गये थे। जम्मू काश्मीर में तैनात अब्दुल हमीद पाकिस्तान से आने वाले घुसपैठियों की खबर तो लेते हुए मजा चखाते रहते थे ऐसे ही एक आतंकवादी डाकू इनायत अली को जब उन्होंने पकड़वाया तो प्रोत्साहन स्वरूप उनको प्रोन्नति देकर सेना में लांस नायक बना दिया गया।
1962 में जब चीन ने भारत की पीठ में छुरा भोंका तो अब्दुल हमीद उस समय नेफा में तैनात थे उनको अपने अरमान पूरे करने का विशेष अवसर नहीं मिला। उनका अरमान था कोई विशेष पराक्रम दिखाते हुए शत्रु को मार गिराना। अधिक समय नहीं बीता और 1965 में पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण कर दिया। अब्दुल हमीद को पुन सुअवसर प्राप्त हुआ अपनी जन्मभूमि के प्रति अपना कर्तव्य निभाने का। मोर्चे पर जाने से पूर्व उनके अपने भाई को कहे शब्द पल्टन में उनकी बहुत इज्जत होती है जिन के पास कोई चक्र होता है देखना झुन्नन हम जंग में लड़कर कोई न कोई चक्र जरूर लेकर लौटेंगे। उनके स्वप्नों को अभिव्यक्त करते हैं।
उनकी भविष्यवाणी पूर्ण हुई और 10 सितम्बर 1965 को जब पाकिस्तान की सेना अपने कुत्सित इरादों के साथ अमृतसर को घेर कर उसको अपने नियंत्रण में लेने को तैयार थी अब्दुल हमीद ने पाक सेना को अपने अभेद्य पैटन टैंकों के साथ आगे बढ़ते देखा। अपने प्राणों की चिंता न करते हुए अब्दुल हमीद ने अपनी तोप युक्त जीप को टीले के समीप खड़ा किया और गोले बरसाते हुए शत्रु के तीन टैंक ध्वस्त कर डाले। पाक अधिकारी क्रोध और आश्चर्य में थे उनके मिशन में बाधक अब्दुल हमीद पर उनकी नजर पड़ी और उनको घेर कर गोलों की वर्षा प्रारम्भ कर दी। इससे पूर्व कि वो उनका एक और टैंक समाप्त कर पातेए दुश्मन की गोलाबारी से वो शहीद हो गये। अब्दुल हमीद का शौर्य और बलिदान ने सेना के शेष जवानों में जोश का संचार किया और दुश्मन को खदेड दिया गया।
32 वर्ष की आयु में ही अपने प्राणों को देश पर न्यौछावर करने वाले इस वीर को उसकी शहादत पर नमन किया जाता है। उन्होंने अपनी अद्भुत वीरता से पाकिस्तानी शत्रुओं के खतरनाक कुत्सित इरादों को तो ध्वस्त करते हुए अपना नाम इतिहास में सदा के लिए स्वर्णाक्षरों में अंकित कराया साथ ही एक सन्देश भी दिया कि केवल साधनों के बलबूते युद्ध नहीं जीता जाता। अपने भाई से किया वायदा उन्होंने पूर्ण किया और मरणोपरांत उनको सबसे बड़े सैनिक सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया जो उनकी पत्नी श्रीमती रसूली बीबी ने प्राप्त किया। इसके अतिरिक्त भी उनको समर सेवा पदक सैन्य सेवा पदक और रक्षा पदक प्रदान किये गए।एजेन्सी।