स्मृति शेष। शीला दीक्षित राजनीतिज्ञ थीं, जो 1998 से 2013 तक दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं थीं। इसके अतिरिक्त 11 मार्च 2014 से 25 अगस्त 2014 तक वह भारत के केरल राज्य की राज्यपाल रहीं थीं।1984 से 1989 तक कन्नौज से सांसद, और 10 जनवरी 2019 से अपनी मृत्यु तक दिल्ली प्रदेश कांग्रेस समिति की अध्यक्ष रही।
शीला दीक्षित 15 साल के अंतराल के लिए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली राज्य की मुख्य मंत्री थी। वे दिल्ली की दूसरी महिला मुख्य मंत्री थीं, तथा देश की पहली ऐसी महिला मुख्यमंत्री थीं जिन्होंने लगातार तीन बार मुख्यमंत्री पद संभाला। इनको 17 दिसंबर 2008 में लगातार तीसरी बार दिल्ली विधान सभा के लिये चुना गया था। 2013 में हुए विधान सभा चुनाव में कांग्रेस को मिली हार के बाद उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। केरल के राज्यपाल निखिल कुमार के त्यागपत्र देने के पश्चात् उनकी नियुक्ति इस पद पर की गई थी, उन्होंने 25 अगस्त को ही इस पद से त्यागपत्र दे दिया। 2017 के उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में कांगेस पार्टी की मुख्यमंत्री पद लिये उम्मीदवार घोषित की गई थीं, परन्तु बाद में उन्होंने अपना नाम वापस ले लिया। उनका निधन शनिवार 20 जुलाई, 2019 को दिल्ली के एस्कोर्ट अस्पताल में हो गया।
शीला दीक्षित (विवाह पूर्व: कपूर) का जन्म 31 मार्च 1938 कपूरथला में पंजाबी खत्री परिवार में हुआ था। इन्होंने अपनी शिक्षा दिल्ली के कान्वेंट ऑफ जीसस एंड मैरी स्कूल से ली। बाद में स्नातक और कला स्नातकोत्तर की शिक्षा मिरांडा हाउस कालेज से ली। 1970 के दशक की शुरुआत में, दीक्षित यंग वीमेन एसोसिएशन की अध्यक्ष थीं और तब उन्होंने दिल्ली में कामकाजी महिलाओं के लिए दो बड़े छात्रावासों की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थीं। 1978 से 1984 के बीच, वह कपड़ा निर्यातकर्ता संघ के कार्यपालक सचिव पद पर भी रही।
कन्नौज में उनके द्वारा किये गए प्रमुख विकास कार्यों में हरदोई को जिले से जोड़ने के लिए गंगा नदी पर पुल का निर्माण, तिर्वा में दूरदर्शन रिले सेंटर की स्थापना, टेलीफोन एक्सचेंज का मैनुअल से आटोमेटिक में परिवर्तन, तथा लाख बहोसी पक्षी विहार एवं मकरंदनगर में विनोद दीक्षित अस्पताल का निर्माण इत्यादि शामिल हैं। संसद सदस्य के कार्यकाल में, इन्होंने लोक सभा की एस्टीमेट्स समिति के साथ कार्य किया, और भारत की स्वतंत्रता के चालीसवें वर्ष और जवाहरलाल नेहरू शताब्दी के कार्यान्वयन के लिए कार्यान्वयन समिति की अध्यक्षता भी की। उन्होंने पांच साल (1984-1989) के लिए महिलाओं की स्थिति पर संयुक्त राष्ट्र आयोग में भारत का प्रतिनिधित्व किया। इसके अतिरिक्त 1986-1989 के दौरान वे तत्कालीन राजीव गांधी मंत्रिपरिषद का हिस्सा भी रहीं – उन्होंने पहले संसदीय मामलों की राज्य मंत्री और बाद में प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री के रूप में कार्य किया।
1989 में हुए आम चुनावों में शीला दीक्षित को अब जनता पार्टी के प्रत्याशी छोटे लाल यादव के हाथों हार का सामना करना पड़ा था। अगस्त 1990 में, शीला दीक्षित और उनके 82 सहयोगियों को उत्तर प्रदेश में 23 दिनों के लिए राज्य सरकार द्वारा जेल में डाल दिया गया, जब उन्होंने महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ एक आंदोलन का नेतृत्व किया। 1998 में दीक्षित को दिल्ली प्रदेश कांग्रेस समिति का अध्यक्ष बनाया गया था। उसी वर्ष हुए आम चुनावों में, उन्होंने पूर्वी दिल्ली लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से एक बार फिर चुनाव लड़ा, जिसमें उन्हें भारतीय जनता पार्टी के लाल बिहारी तिवारी के हाथों पराजय का सामना करना पड़ा था।
आम चुनावों में हार के बाद, शीला दीक्षित ने 1998 में दिल्ली के विधान सभा चुनावों की ओर रुख किया, और गोल मार्किट निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ा, जहाँ उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी, कीर्ति आज़ाद को पराजित किया।] कांग्रेस ने उस वर्ष दिल्ली में 70 में से 52 सीटें जीती थी, और तब शीला दीक्षित ने मदन लाल खुराना की उत्तराधिकारी के रूप में दिल्ली की छठी मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। सुषमा स्वराज के बाद वह दिल्ली की दूसरी महिला मुख्यमंत्री थी। 2003 के विधानसभा चुनावों में भी दीक्षित ने गोल बाजार विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया, और भाजपा प्रत्याशी, पूनम आज़ाद को पराजित कर दिल्ली की मुख्यमंत्री के रूप में अपना कार्यकाल जारी रखा।
2008 के दिल्ली विधानसभा चुनावों में दीक्षित ने नई दिल्ली विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा, और भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी, विजय जौली को पराजित किया। इन चुनावों में शीला दीक्षित के नेतृत्व में कांग्रेस ने दिल्ली की 70 में से 43 सीटें जीती, और इस बदौलत शीला दीक्षित लगातार तीसरी बार दिल्ली की मुख्यमंत्री बनी।2013 के दिल्ली विधान सभा चुनाव में उनकी पार्टी का सफाया हो गया । उन्होंने 8 दिसंबर 2013३ को मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया, लेकिन 28 दिसंबर 2013 को नई सरकार के शपथ ग्रहण तक दिल्ली की कार्यवाहक मुख्यमंत्री बनी रही।
2019 के आम चुनावों में उन्होंने दिल्ली के उत्तर पूर्वी दिल्ली लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ा, जिसमें उन्हें भाजपा प्रत्याशी मनोज तिवारी के हाथों पराजय का सामना करना पड़ा।
शीला दीक्षित इंदिरा गाँधी स्मारक ट्रस्ट की सचिव भी थी, जो शांति, निशस्त्रीकरण एवं विकास के लिये इंदिरा गाँधी पुरस्कार प्रदान करता है, व विश्वव्यापी विषयों पर सम्मेलन आयोजित करता है। इनके संरक्षण में ही, इस ट्रस्ट ने एक पर्यावरण केन्द्र भी खोला। वह हस्तकला व ग्रामीण कलाकारों व कारीगरों के उत्थान में भी विशेष रुचि लेतीं थी। ग्रामीण रंगशाला व नाट्यशालाओं का विकास, उनका विशेष कार्य रहा।
शीला दीक्षित का विवाह प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी तथा पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल उमा शंकर दीक्षित के पुत्र विनोद दीक्षित से हुआ था। विनोद मूलतः उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के उगु गाँव से थे, और भारतीय प्रशासनिक सेवा में अधिकारी के रूप में कार्यरत थे। रेल यात्रा के दौरान हृदयाघात से उनका निधन हो गया।
शीला दीक्षित की दो संतानें हैं, एक पुत्र व एक पुत्री। उनके पुत्र संदीप दीक्षित पूर्वी दिल्ली से 15 वीं लोकसभा के पूर्व सदस्य हैं। शीला दीक्षित की नवंबर 2012 में एंजियोप्लास्टी हुई थी, और उनका नियमित रूप से फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हार्ट इंस्टीट्यूट में इलाज चलता था। 2018 में भी फ्रांस के लिले में स्थित यूनिवर्सिटी अस्पताल में उनकी हृदय की सर्जरी हुई थी।
19 जुलाई 2019 की सुबह शीला दीक्षित ने सांस में परेशानी की शिकायत की, और उनका दिल भी सामान्य से तेज़ धड़क रहा था। उन्हें तुरंत एस्कॉर्ट्स हार्ट इंस्टीट्यूट ले जाया गया, लेकिन बीच रास्ते में ही हृदयाघात होने के कारण उनकी धड़कनें रुक गयी – भर्ती होने के बाद कुछ ही क्षणों में उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था। उनकी स्थिति थोड़े समय के लिए स्थिर हो गई थी, हालांकि वह कई दौरों से उबर नहीं पाई। शीला दीक्षित का निधन 81 वर्ष की आयु हुआ था । शीला दीक्षित की पार्थिव देह को पूर्वी निजामुद्दीन स्थित उनके आवास पर अंतिम दर्शन के लिए रखा गया था। दिल्ली सरकार ने उनकी मृत्यु पर दिल्ली में दो दिन के राजकीय शोक का ऐलान किया। एजेन्सी।