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- लखनऊ। स्वप्निल संसार । संजोग वॉल्टर। सज्जाद बाकर। मेहरा टॉकीज का वज़ूद मिट गया। 2011 में मेहरा टॉकीज बंद हो चुका था। अब यहाँ इस धरोहर का अवशेष भी नहीं है। लखनऊ के सिनेमा व कला प्रेमी इस धरोहर की मौत पर खामोश है। हो सकता है की यह बात कुछ पता हो कुछ को नहीं। जिन्हें पता हो वो इस टॉकीज को मेहरा के नाम से जानते हों। मेहरा टॉकीज लखनऊ की बेशकीमती धरोहर था। क्योंकि यह लखनऊ की नहीं बल्कि पूरे यूपी (संयुक्त प्रान्त)सहित पूरे उत्तर भारत का पहला टॉकीज था। ‘पर्ल थिएटर’ की शुरुआत 1911 में लखनऊ के गुईन रोड पर हुई थी।
कोलकाता में (कलकत्ता अब) 1907 में देश का पहला थिएटर एल्फिस्टन बना था। 1911 में लखनऊ में ‘पर्ल थिएटर’ की शुरुआत के बाद लखनऊ में कैसरबाग में एल्फिस्टन (1970 के आसपास एल्फिस्टन का नाम बदल गया मालिकान भी बदल गए ) अब इसका नाम था (आंनद ) हजरतगंज में प्रिंस ऑफ वेल्स के नाम पर प्रिंस टॉकीज बना । प्रिंस टॉकीज 1980 में तोड़ दिया गया। अब यहाँ प्रिंस मार्केट है। उस दौर में टिकट नहीं था बल्कि हाथ पर मोहर लगती थी।
लखनऊ में रिंग थियेटर था पर यहाँ फिल्मों का प्रदर्शन नहीं होता था इसी रिंग थियेटर में काकोरी के क्रांतिकारियों का मुकदमा 10 महीने तक चला था । जिसमें रामप्रसाद ‘बिस्मिल’, राजेंद्रनाथ लाहिड़ी, रोशन सिंह और अशफाक उल्लाह खां को फांसी की सजा हुई।
खैर बताया जाता है की रिंग थियेटर के मददेनजर राजा उतरौला ने थिएटर को आम हिन्दुस्तानियों के लिए खोल दिया था। बाद में यहाँ मूक फिल्मों का प्रदर्शन शुरू हो चुका था। ‘पर्ल थिएटर का नाम अब कोहिनूर थियेटर था। 1918 में कोहिनूर थियेटर को लुधियाना के राधाकृष्ण धनपत राय ने खरीद लिया। कोहिनूर थियेटर ‘का नाम अब ‘रॉयल थियेटर’ हो गया था। 1933 में ‘रॉयल में पहली बोलती फिल्म आलम आरा का प्रदर्शन हुआ था। अब रॉयल थियेटर का नाम था ‘रॉयल टाकीज़।
कई साल तक यहाँ मूक फिल्में ही रिलीज़ होती थी। ‘राजा हरिश्चंद्र’, ‘पुंडलिक’, ‘लंका दहन’, ‘कलिया मार्डन’, ‘भस्मसुर’, ‘सत्यवानवन-सावित्री’।
इस सिनेमा हॉल के सामने मोहल्ला है जिसका नाम है हाता लाल खां। यही से एक नौजवान नौशाद अली जो ‘रॉयल टाकीज़ में अब इंटरवेल होता था तब वो यहाँ पेटी (हारमोनियम) बजाते थे। नौशाद अली हिंदी सिनेमा के सबसे प्रमुख संगीतकार थे।
टॉकीज’ क्यों कहा जाता था ?
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- लखनऊ। स्वप्निल संसार । संजोग वॉल्टर। सज्जाद बाकर। मेहरा टॉकीज का वज़ूद मिट गया। 2011 में मेहरा टॉकीज बंद हो चुका था। अब यहाँ इस धरोहर का अवशेष भी नहीं है। लखनऊ के सिनेमा व कला प्रेमी इस धरोहर की मौत पर खामोश है। हो सकता है की यह बात कुछ पता हो कुछ को नहीं। जिन्हें पता हो वो इस टॉकीज को मेहरा के नाम से जानते हों। मेहरा टॉकीज लखनऊ की बेशकीमती धरोहर था। क्योंकि यह लखनऊ की नहीं बल्कि पूरे यूपी (संयुक्त प्रान्त)सहित पूरे उत्तर भारत का पहला टॉकीज था। ‘पर्ल थिएटर’ की शुरुआत 1911 में लखनऊ के गुईन रोड पर हुई थी।
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1966 में, रॉयल टॉकीज का नाम ‘मेहरा टॉकीज’ हो गया था। जो 2011 तक चलता रहा। ‘मेहरा टॉकीज’ के पास लखनऊ के किसी भी सिनेमा हॉल से ज्यादा सिल्वर ,गोल्डन प्लेटिनम जुबिली की ट्राफियां थी । ‘मेहरा टॉकीज’ के मालिकान 23 वें, 48 वें और 73 वे हफ़्ते में चल रही रहे फ़िल्म को खरीद लेते थे। सिल्वर ,गोल्डन प्लेटिनम जुबिली की ट्राफी पर ‘मेहरा टॉकीज’ का नाम होता था। ‘मेहरा टॉकीज’ के विज्ञापन में मेहरा (एयर कूल ) में शंकर शंभू शानदार 25वा हफ्ता। एयर कूल का मतलब कूलर से था । तब सिनेमा हालों में एसी नहीं होते थे।