नरेश दीक्षित । अमृतसर के निकट मानव निर्मित रेल घटना को हादसा बताकर केंद्र व राज्य सरकार अपना-अपना पल्ला झाड़ रहीं हैं । राजनैतिक दलों ने इस पर रोटियां सेकना शुरू कर दिया है ।
सरकार, नेता, अधिकारियों को जब इस बात का ही ज्ञान नहीं है कि हादसा और दुघ॔टना में क्या फर्क है तो मृतकों को क्या न्याय मिलेगा ?
सरकार, रेल मंत्रालय अब एक ही बात बार-बार सामने ला रहा है कि आयोजकों ने काय॔क्रम की अनुमति नहीं ली । यह मांनसिक दिवालियों पन ही है जिसे नहीं मालूम कि इस माह समपूण॔ उत्तर भारत में राम की लीलाऐं होती हैं और विजय दशमी के दिन दशहरा पव॔ मनाया जाता है तथा सायं काल से लेकर रात्रि में रावण दहन होता है और यह परंपरा सदियों से चली आ रही है इसमें अनुमति की क्या आवश्यकता थी ?
ऐसा ही रावण दहन का काय॔क्रम अमृतसर के निकट जोडा रेल फाटक के नजदीक एक निजी भूमि पर हो रहा था जो प्रति वष॔ वहां होता है । इसकी जानकारी स्थानीय प्रशासन को थी । वह मेला की सुरक्षा व्यवस्था में लगी थी ।
रेल प्रशासन की यह जिम्मेदारी थी कि रेल ट्रेक की रक्षा सुरक्षा के लिए काय॔रत निरीक्षण दल कहा सोता रहा जब इतना बड़ा रावण का पुतला बनाकर खड़ा किया जा रहा था तो उसकी नजर क्यो नहीं पड़ी ? जिसका दहन दशहरा के दिन होना था और इसे देखने के लिए प्रति वर्ष की भांति भारी भीड़ नजदीक रेल ट्रेक के पास होगी । रेल प्रशासन क्यो सोता रहा, क्यो नही सुरक्षा के कदम उठाए ?
देश के रेल मंत्रालय ने अभी तक ऐसी क्यों गाइड लाइन नहीं बनाईं जो धार्मिक त्यौहारों में जब रेल शहरी आबादी में प्रवेश करे तो उसकी स्पीड नियंत्रित होना चाहिए ,रेल मंत्रालय अपने उस कानून को क्यो नही बदल रही है जो दुघ॔टना के बाद रेल रोकती है, दुघ॔टना के पहले क्यो नही? जोडा रेल फाटक पर हुई दुघ॔टना का यही सबसे बड़ा कारण है । रेलगाड़ी का जब ड्राइवर इंजन की रौशनी से देख रहा था ट्रेक पर भीड़ है तो उसे रेल गाडी रोक देना था । ग्रीन सिंगनल का मतलब यह तो नहीं कि ट्रेक पर खड़ी श्रद्धालु जनता को काट दें?
जब देश के राजनैतिक दलों द्वारा भारत बंद, राज्य बंद जैसे आंदोलन होते हैं तब रेल मंत्रालय का कानून डिब्बे में क्यो बंद हो जाता है? ट्रेक जाम कर दिए जाते हैं रेल यातायात बाधित कर दिए जाते हैं । तब रेल क्यो रोक देते हैं, क्यो नहीं यातायात को प्रभावित करने वालों को रेल के नीचे काट देते है? इस देश के तंत्र की दोहरी वयवस्था के कारण ही जोडा रेल फाटक जैसी दुघ॔टनाएं होती है और वेगुनाह पुरूष, महिला,और अबोध बच्चो को काट दिया जाता है ।
सरकार के आकड़ों के अनुसार जोडा रेल फाटक घटना में 62 की मृत्यु होना बताया जा रहा है तथा 72 घायलों की संख्या जबकि मृतकों व घायलों की संख्या सरकारी आंकड़ों से अधिक बताई जा रही है ।
घटना के बाद नेताओं ने मातमी आंसू बहाना शुरू कर दिया है । पंजाब के मुख्यमंत्री ने प्रत्येक मृतक परिवार को 5 लाख ,घायलों को 1 लाख रूपये की मदद की घोषणा की है। देश के प्रधानमंत्री ने भी प्रत्येक मृतक परिवार को 2 लाख तथा घायलों को 50 हजार की मदद की घोषणा की है । अधिकांश मृतक उतर प्रदेश, बिहार के मजदूर परिवार है जो वहां के औद्योगिक क्षेत्र में मेहनत मजदूरी करते थे और छुट्टी होने के कारण दशहरा उत्सव का आनंद ले रहे थे । घटना में बहुत से परिवार कमाने वालों को खो दिया है परिवार अनाथ हो गए हैं ।
इस ह्रदय विदारक घटना के लिए सिफ॔ रेल मंत्रालय जिम्मेदार हैं जिसने साढ़े चार के भाजपा शासन काल में रेल दुर्घटनाओं का इतिहास रचा है । तरह-तरह के बहाने बनाने से बेहतर है कि घटना की जिम्मेदारी रेल मंत्री, रेल बोर्ड के अध्यक्ष अश्विनी लोहानी को लेना चाहिए और तुरंत स्तीफा दे देना चाहिए तथा रेल मंत्रालय को मृतकों के प्रत्येक परिवार के एक सदस्य को नौकरी देना चाहिए तभी मृतकों के प्रति असली श्रद्धांजली होगी ।/
संपादक समर विचार
