स्वप्निल संसार। प्राण न पागल हो तुम यों, पृथ्वी पर वह प्रेम कहाँ..मोहमयी छलना भर है, भटको न अहो अब और यहाँ.. ऊपर को निरखो अब तो बस मिलता है चिरमेल वहाँ. राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त प्रसिद्ध... Read more
स्वप्निल संसार। लखनऊ। प्राण न पागल हो तुम यों, पृथ्वी पर वह प्रेम कहाँ..मोहमयी छलना भर है, भटको न अहो अब और यहाँ.. ऊपर को निरखो अब तो बस मिलता है चिरमेल वहाँ. राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त प्रस... Read more